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काम में मन नहीं लगा तो गलती आपकी नहीं!

  • एक नई खोज में हुआ खुलासा
    नई दिल्ली

क्या आप ऑफिस में काम पर पूरा फोकस नहीं कर पाते? क्या आप ऑफिस में बार-बार अपना फोन चेक करते हैं या खिड़की के बाहर झांकते रहते हैं? या फिर ये सुनने की कोशिश करते रहते हैं कि आपके सहयोगी क्या बातें कर रहे हैं? क्या आप ऑफिस में अक्सर खोए-खोए रहते हैं? अगर ऐसा है तो आपको बता दें कि इस सबमें आपकी गलती नहीं है। जी हां, एक नई रिसर्च यही कहती है।

रिसर्च के मुताबिक अगर ऑफिस में आपका ध्यान भटकते रहता है तो ये आपका दोष नहीं बल्कि आपके आफिस में बैठने के वाले एरिया के सिटिंग अरेंजमेंट का है। जी हां, रिसर्च के मुताबिक ऑफिस में ओपन एरिया में बैठने से ध्यान भटकना लाजमी है। इसे विजुअल नॉयज कहा जाता है। वॉल स्ट्रीट जर्नल रिपोर्ट्स के मुताबिक, कर्मचारी के आसपास होने वाली गतिविधियां और एक्टिविटी ध्यान भटकाने के लिए काफी है।पिछले सालों में ओपन आफिस का कल्चर तेजी से बढ़ा है। ओपन ऑफिस यानि ऐसा आफिस जहां सबके बैठने की जगह एक ही बड़ी सी खुली जगह में हो। यानि छोटे छोटे केबिन या क्यूबिकल में नही बैठने का कल्चर। ऐसा माना जाता है इससे कम्यूनिकेशन गैप नहीं होता। लेकिन खुले ऑफिस के ऐसे माहौल में महसूस किया जा रहा है कि इससे डिस्ट्रैक्शन भी बहुत बढ़ रहा है। साथ ही काम से ध्यान हट रहा है।
अब कर्मचारी वर्कप्लेस पर विजुअल नॉयज कम करने के तरीकों की खोज कर रहे हैं। यूएस बेस्ड सॉफ्टवेयर कंपनी सेग्मेंट की मार्केटिंग एंड कम्यूनिकेशन डायरेक्टर माया स्पीवक का कहना है कि वो अपने ओपन ऑफिस में बहुत ही मुश्किल से फोकस कर पाती हैं क्योंकि उनके सहयोगियों के मूवमेंट्स से उनको काफी डिस्ट्रैक्शन होता है। ऐसे में वे ऐसी जगह बैठना पसंद करती हैं जहां लोगों का कम आना-जाना हो, शोर कम हो, कॉर्नर हो और दीवारें हो। वे कहती हैं कि इससे उनकी प्रोडक्टिविटी बूस्ट होती है। एन्वायरन्मेंटल साइक्लोजिस्ट सैली ऑस्टिन का कहना है कि सामान्यत लोग जानना चाहते हैं कि उनके आसपास क्या हो रहा है। अगर आफिस में आप साथ काम करने वाले एक ग्रुप को बात करते देखते हैं तो स्वाभाविक सी उत्सुकता होती है कि वे किस बारे में बात कर रहे हैं? ऐसे में कंपनी अपने कर्मचारियों को ये सुविधा दे रही हैं कि वे प्राइवेट रूम में जाकर लैपटॉप पर काम कर सकते हैं या फिर कुछ समय के लिए सोफे पर बैठकर काम कर सकते हैं। (एजेंसी)

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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