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अभिराम राम

उमेश राय

हो निराशा जब प्रबल,तम में घिरा तमाम।
चेतना के परिष्करण, तब याद आए राम ।।

हर दिशाएं, सहमी-सहमी,
संकुचित – सी कुसुम है,
आह गूँजे, राह में फिर लौटकर,
रोशनी की किरन गुम है।
साधुता गढ़कर छले,दुर्जनता सुबह – शाम।
चेतना के परिष्करण, तब याद आए राम ।।

है विकल ‘कल’,आज का डर,
रावणी माया प्रबल है,
संस्कृति का अपहरण नित,
कालिमा का काला दल है।
टूटते जब मूल्य-मानक,दरकते हर धाम।
चेतना के परिष्करण, तब याद आए राम ।।

राजसिक मन-भवन रमता,
अंतस-वैभव छीजता है,
त्याग का हो लोप जैसे,
मानवीय पथ खीजता है।
सच,करूणा,नेह भूले,सिसकते सारे आयाम ।।
चेतना के परिष्करण, तब याद आए राम ।।

शक्ति-पूजा, पद व गरिमा,
उदारमना मिलते कहाँ अब,
हैं घिरे गहरे सभी,
वचन-कर्म का एकक नहीं जब।
दूरियाँ व द्वंद्व मानस,स्वार्थ का गहरा संग्राम।
चेतना के परिष्करण, तब याद आए राम।।

पाँव में छाला पड़ा,
और हाथ में गरमी नहीं है,
प्रेम का है साथ छूटा,
है शुष्कता,हृद-नमी नहीं है।
संवेदना बिन वेद सूखा,रस नहीं अभिराम।
चेतना के परिष्करण, तब याद आए राम।।

सर्वमत को कौन पूछे,
स्व-मत की भी खबर नहीं है,
सच सदा वनवास में प्रिय!
उसे लौटने को घर नहीं है।
काटता है शहर-घर, सुखद आत्म – पथ का ग्राम।
चेतना के परिष्करण, तब याद आए राम।।
-रामनवमी की स्वस्तिकामना..

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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