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इन लोगों का दिमाग हो सकता है कुछ छोटा

नये शोध बताते हैं कि जो व्यक्ति अति सक्रिय होते हैं, उनमें अक्सर ध्यान की कमी होती है। यानि ये व्यक्ति अपने किसी भी काम में ज्यादा देर तक नहीं ध्यान नहीं लगा पाते। साथ ही यह भी प्रमाण पाए गए हैं कि जिन व्यक्तियों में एडीएचडी (अटैंशन डेफिशिएट एंड हायपर एक्टीविटी डिसआर्डर) नामक मनोस्थिति होती है, उनका विकास भी देर से होता है।

डॉ. मार्टिन हूगमैन के शोध अध्ययन बताते हैं कि एडीएचडी से प्रभावित व्यक्तियों के मस्तिष्क की बनावट में थोड़ा अंतर होता है। इस अंतर को पहचान कर एडीएचडी का पता चल सकता है, जिसको अभी तक लाइलाज माना जाता है। साथ ही इससे प्रभावित बच्चे की परवरिश में माता-पिता को सहयोग मिल सकता है। यह स्टडी 1713 एडीएचडी प्रभावित मस्तिष्कों पर की गई, जिसमें यह पाया गया कि 1529 मस्तिष्क पर सामान्य व्यवहार/ परवरिश से ही आसानी से नियंत्रण हो सकता है।

सामान्यतः एडीएचडी को भावावेश और अतिसक्रियता तथा किसी एक कार्य पर पूरे मनोयोग से ध्यान नहीं लगना, इस मनोस्थिति के लक्षण हैं। शोधकर्ता कहते हैं कि समुचित ध्यान न देने से बच्चों की यह समस्या व्यस्क होने तक जारी रहती है। अध्ययन में पाया गया है कि जो भी व्यक्ति इस मनोस्थिति से प्रभावित होता है, उसके मस्तिष्क का स्तर सामान्य की अपेक्षा कम होता है। यह शोध The Lancet phychiatry  (Hoogman et al., 2017). में प्रकाशित हुआ है।

 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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