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उत्तराखंड में पर्यावरण शिक्षा पर कैंब्रिज के पीटर का नजरिया

देहरादून। टिहरी बांध निर्माण से प्रभावित हुए गांवों के लोगों और उन गांवों के विस्थापित स्कूलों में पर्यावरण शिक्षा को कितना महत्व दिया जाता है, इसका अध्ययन करने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के जाने माने रिसर्च स्कॉलर पीटर सुतोरिस आजकल उत्तराखंड में है। अपने प्रवास के दौरान उनके शोध कार्य को अागे बढ़ाने के लिए पर्यावरण मित्र कार्यक्रम के प्रभावों का अध्ययन कर रहे हैं। पर्यावरण मित्र कार्यक्रम वन एवं पर्यावरण मंत्रालय औऱ पर्यावरण शिक्षण केंद्र ने आर्सेलर मित्तल के सहयोग से उत्तराखंड में भी चलाया था। उत्तराखंड में इस कार्यक्रम को लगभग सभी 13 जिलों में चलाया गया था। इसमें अलग-अलग जिलों की जिम्मेदारी अलग-अलग संस्थाओं को दी गई थी। चमोली और रुद्रप्रयाग जिले में यह कार्यक्रम आगाज फैडरेशन ने संचालित किया था।

कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के छात्र पीटर ने अपनी पीएचडी का विषय उत्तराखंड के पर्यावरण और इसके लिए आज तक चलीं मुहिम को बनाया है। इसके साथ ही पीटर दुनिया को बताना चाहते हैं कि उत्तराखंड की भावी पीढ़ी पर्यावरण को लेकर कितनी सजग है। वो यह इसलिए भी जानना चाहते हैं, क्योंकि पर्यावरण के संरक्षण को लेकर उत्तराखंड के लोग हमेशा संघर्ष करते रहे हैं। चाहे वो वनों को बचाने के लिए गौरा देवी का विश्वविख्यात चिपको आंदोलन हो या टिहरी बांध निर्माण का विरोध रहा हो। आज भी उत्तराखंड में पर्यावरण संरक्षण बड़ा मुद्दा बनकर उभरता रहा है और यह न केवल वनों को बचाने के लिए है, बल्कि यह रोजगार और प्रकृति के प्रति गहरी आस्था, प्रेम और सामाजिक, सांस्कृतिक, संवेदना का विषय है।

पीटर ने www.newslive24x7.com को अभी तक के अध्ययन के बारे में बताया कि उत्तराखंड में जिस प्रकार से पर्यावरण से संबंधित वैश्विक महत्व के आंदोलन और जनजागरुकता अभियान चले हैं, उस अनुपात में सरकारी और गैरसरकारी स्कूलों के पाठ्यक्रमों में पर्यावरण शिक्षा को सही स्थान नहीं मिल पाया है। स्कूली पाठ्यक्रमों में पर्यावरण शिक्षा को सिर्फ वैकल्पिक विषय ही बनाया गया हैै। इस बात पर उनका सवाल है कि राज्य की पर्यावरणीय और भौगोलिक स्थिति को देखते हुए पर्यावरण को सबसे महत्वपूर्ण विषय क्यों नहीं बनाया जा सकता। पर्यावरण को पढ़ना, समझना और व्यवहार में लाना उत्तराखंड जैसे प्रदेश के लिए तो बहुत ही जरूरी है। यह तब ही संभव हो सकता है, जब भावी पीढ़ी को इसका महत्व फौरी नहीं बल्कि आवश्यक रूप से बताया जाए। इस विषय के अंकों को अोवर आल रिजल्ट में शामिल किया जाना चाहिए। अगर यह वैकल्पिक ही रहा तो भावी पीढ़ी में पर्यावरण का महत्व कम हो जाएगा, जबकि पर्यावरण को लेकर राज्य के लोग हमेशा सजग रहे हैं। वो स्कूलों में पर्यावरण पढ़ाने वाले शिक्षकों को भी पर्यावरण से संबंधित व्यवहारिक प्रशिक्षण की पैरवी करते हैं। पीटर इन दिनों ऋषिकेश के पशुलोक स्थित टिहरी विस्थापित सरकारी स्कूल में बच्चों में पर्यावरण पर डाक्यूमेंट्री बनाने की संभावनाओं को तलाश रहे हैं।

कौन हैं पीटर- मूल रूप से स्लोवाकिया के रहने वाले पीटर अमेरिका और इंग्लैंड में अपनी पढ़ाई कर रहे हैं। वर्तमान में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के फैकल्टी अ़ॉफ एजुकेशन में 2015 से रिसर्च स्कॉलर पीटर का प्रमुख कार्य अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रोजेक्ट मैनेजमेंट, म़ॉनिटरिंग करना औऱ सलाह देना है। साउथ एशिया, यूरोप और अमेरिका में कई परियोजनाओं में काम कर चुके पीटर फिल्म और फोटोग्राफी की कई अभिनव प्रयोग कर चुके हैं। उन्होंने नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी और फिल्मकार श्याम बेनेगल के साथ कार्य करते हुए पीटर ने एक पुस्तक विजन्स अॉफ डेवलेपमेंट- फिल्म डिवीजन अॉफ इंडिया एंड द इमेजिनेशन अॉफ प्रोग्रेस, 1948-75 लिखी है।

पीटर के बारे में पढ़ें- http://www.petersutoris.com/

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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