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किनगोड यानि औषधियों का भंडार

उत्तराखंड में किनगोड जंगलों में और रास्ते के किनारे बहुतायत में देखा जाता है। वैसे तो इसका औषधि के अलावा अन्य कोई उपयोग नहीं है, केवल राहगीर व स्कूली बच्चे इसके फलों को खाते हैं।

डॉ. राजेन्द्र डोभाल महानिदेशक, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद्,उत्तराखंड 

किनगोड का वैज्ञानिक नाम Berberis aristata है तथा यह Berberidaceae कुल का पौधा है। यह 1000 से 25000 समुद्र तल से ऊपर तक पाया जाता है। इसे आयुर्वेद में दारूहल्दी के नाम से भी जाना जाता है। आयुर्वेद में किनगोड को विभिन्न बिमारियों के निवारण के लिये प्रयुक्त किया जाता है तथा शरीर Mineral deficiency के साथ-साथ किनगोड Anti- inflammatory गुण तथा Immune Potent Plant भी है। किनगोड वैसे तो यूरोप, अफ्रिका, एशिया, उत्तरी अमेरीका, कैनडा कोलम्बिया मे भी पाई जाती है। पूरे विश्व मे किनगोड की लगभग 1700 जेनेरा 656 प्रजातिया पाई जाती है। भारत में किनगोड की 3 जेनरा लगभग 68 प्रजातियाँ पाई जाती है तथा 95% प्रजातियाँ केवल हिमालयी क्षेत्रों में पाई जाती है। कुल 656 प्रजातियां में 77 प्रजातियां भारत में ही पाई जाती है तथा केवल उत्तराखण्ड में ही किनगोड की लगभग 22 प्रजातियां पाई जाती है।

आयुर्वेद में किनगोड से “Rasaot” नामक दवा बनाई जाती है जिसको Piles के लिये भी प्रयोग किया जाता है। सबसे महत्वपूर्ण किनगोड में मौजूद सक्रिय घटक “Berberine 2.23%” मधुमेह के निवारण के लिये प्रयुक्त किया जाता है। Berberine शरीर में Insulin स्राव को बढ़ाता जो कि लीवर में Glycogen के स्तर को कम करता है। पारम्पारिक रूप से किनगोड त्वचा रोग, अतिसार, जॉन्डिस, आंखों के संक्रमण, जीवाणु, विषाणु नामक व अन्य कई बिमारियों के निवारण के लिये लाभकारी पाया जाता है। Global journal of pharmacology (2009) के अनुसार किनगोड में कुछ Alkaloids के उपस्थिति से इसे Colon Cancer के उपचार हेतु भी प्रयोग किया जाता है। जहां तक किनगोड में मौजूद पोषक तत्व तथा मिनरल्स की बात की जाय तो इसमें प्रोटीन-3.3% फाइबर-3.12% कार्बोहाइडेटस-17.39mg/100gm, विटामिन-C 6.90 mg/100gm, मैग्निशयम 8.4mg/100gm पाये जाते है। 

किनगोड भारत में ही नहीं अपीतु चीन में भी प्रचीन समय लगभग 3000 वर्ष पूर्व से ही औषधि तथा विभिन्न औषधि निर्माण में प्रयोग की जाती है। आयुर्वेद औषधि में वर्तमान समय में किनगोड की मांग लगातार बढ़ती जा रही है। आयुर्वेद औषधि निर्माण में किनगोड का इतना महत्व है कि एक ही किनगोड से न जाने कितने तत्व निकाले जाते है। जैसे किनगोड की जड़ तथा तने की छाल से Berberine, Aromolin, Palmotine, Oxycanthine, जड़ से Calumbamine, Umballiatine, तथा Hydrastine, Karachine, फल से Citric Acid तथा Mallic acid फूल से E-caffic acid, quercetin, Rutin, Heart word से n-docosane lanost -5-en-3 beta-ol को आयुर्वेद मे औषधि निर्माण में औद्योगिक रूप से उपयोग किया जाता है।

आज भारत विश्व बाजार मे आयुर्वेद तथा आयुर्वेदिक उत्पादों में अग्रणी स्थान रखता है। किनगोड को ही भारत मे नही अपितु सारे विश्व मे उत्पाद बनाये जाते है व कच्चे रूप में भी वेचा जाता है। Nature & Nature, health care, green Health products, Herbal health care, etc. अन्य कई कंपनियों द्वारा किनगोड के 100-1500 /Kg की दर से बेचा जाता है। अंतरराष्ट्रीय बाजार मे किनगोड का पाउडर 10-15 डालर प्रति Kg की दर से बेचा जाता है। वर्तमान दौर मे Plant Based Drugs बढ़ती मांग न केवल भारत के ही अपीतु पूरे विष्व भर मे है, इसके परिणामस्वरुप किनगोड जैसे बहुगुणी औषधीय पौधे की महत्ता काफी बढ जाती है जो प्रदेश की आर्थिकी का बेहतर साधन बन सकती है। वैकल्पिक चिकित्सा (Herbal markets) विगत कुछ दषको से विश्व में आर्यूवेद औषधि तथा कच्ची Plant material की मांग लगातार बढ रही है ।Afro-Assian तथा Latin American जैसे देशो मे जो विश्व हर्बल उत्पाद मे मुख्य भूमिका रखते हैं।

वर्षा 2001 के एक अध्ययन के अनुसार हर्बल का बाजार 62 Billion अमेरीकी डालर रहा था, चीन मे विश्व बाजार national policy on Traditional Chinese medicine की वजह से सबसे ज्यादा निर्यातक देश रहा है। जबकि भारत विश्व बाजार मे हर्बल निर्यातको मे दूसरे स्थान पर रहा है। भारत में हर्बल क्षेत्र व उत्पादक होने के बावजूद भी Value addition मुख्या समस्या रही है जिससे विश्व बाजार मे निर्यात कम हो रहा है। विश्व का कुल हर्बल बाजार 75.9/Million अमेरिकी डालर रहा है जिसमे चीन 200 million निर्यात के साथ प्रथम निर्यातक देश तथा Hong_Kong 17 प्रतिशत, चीन 21 प्रतिशत, अमेरीका 14 प्रतिशत, जापान 10 प्रतिशत योगदान है। हर्बल उत्पाद का विश्व मे सबसे बडा बाजार यूरोप तत्पश्चात फ्रांस, यू0 के0 तथा इटली रहे है। यूरोप विश्व की सबसे बडी हर्बल उत्पाद Industry जर्मनी मे स्थित है।

अभी भी विश्व की 80 प्रतिशत जनसंख्या पारंपरिक औषधियां ही प्रयोग करती है। विकसित देशो मे 1990 से वैकल्पिक चिकित्सा हर्बल सहित 60 प्रतिशत की दर से बढी है। वर्ष1990 मे अमेरिका मे ही हर्बल उत्पाद का वाजार 5 प्रतिशत से भी कम था जो वर्ष 2004 तक 60 प्रतिशत बढ रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की 2000 की रिपोर्ट के अनुसार हर्बल उत्पाद का बाजार 62 Billion अमेरिकी डॉलर था जो वर्ष 2050 तक 50 Trillion अमेरिका डॉलर तक पहुंच जाएगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन वर्तमान के अनुसार विश्व हर्बल बाजार 7 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से बढ़ रहा है। भारत में ही किनगोड की जड़ो का हर्बल उत्पादों के लिये लगभग 500 टन की खपत होती है तथा भारत सरकार 60-70 टन किनगोड की जड़ो का प्रतिवर्ष निर्यात करती।

किनगोड का प्रचीन समय से ही आयुर्वेद में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। पारंपरिक रूप से विभिन्न बिमारियों के इलाज के साथ-साथ आयुर्वेद के विभिन्न प्रकार के औषधि में मुख्य अवयव के रूप में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ब्रिटिश Pharmacopoeia ने भी किनगोड से Orisol नामक दवाई बनाई है जो किडनी दर्द तथा किडनी Stone के निवारण के लिये प्रयोग की जाती है। किनगोड से Cisplatin तथा Rasaut नामक दवाई बनाई जाती है जो कि मूत्र रोग निवारण में प्रयुक्त की जाती है। Dermocept नामक आयुर्वेदिक क्रीम विभिन्न त्वचा रोगों के इलाज के लिये प्रयोग की जाती है। किनगोड की जड़ सिर्फ Berberine के उत्पादन के लिये किनगोड की जड़ का 600-700 टन उत्पादन प्रतिवर्ष किया जाता है। वर्ष 2008 में हर्बल उत्पाद का भारत 3 Million अमेरिकी डॉलर के निर्यात करता था ।

उत्तराखण्ड तो सम्पूर्ण प्रदेश ही हर्बल प्रदेश है जिसमे किनगोड के साथ-साथ अन्य कई हजार प्रकार की औषधीय गुणों वाले पौधे बहुतायत में पाये जाते है। यदि किनगोड को वैज्ञानिक विधि से उत्पादन तथा संरक्षित रूप से उगाया जाय तो उत्तराखण्ड भारत मे ही नहीं विश्व मे भी हर्बल उत्पाद मे अग्रणी स्थान पा सकता है तथा प्रदेश की राजस्व, रोजगार, पलायन की समस्या के सामाधान का एक महत्वपूर्ण साधन बन सकता है।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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