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आर्टिफिशियल जीभ बताएगी शराब असली है या नकली

बर्लिन


अब यदि शराब में मिलावट की गई है तो आर्टिफिशियल जीभ के जरिए इसका पता लगाया जा सकता है। वैज्ञानिकों ने एक ‘कृत्रिम जीभ’ तैयार की है , जो नए शराब पीने वालों को स्कॉटिश माल्ट व्हिस्की और आयरिश ब्लेंड के बीच का अंतर पता करने में सहायक हो सकती है। सिंथेटिक जीभ व्हिस्की में विभिन्न गुणों का पता लगाएगी।  फ्लोरोसेंट डाइज का उपयोग करके शराब के ब्रांड, वह कब बनी थी और किस देश में बनी थी, इसका पता चल सकेगा।

शोधकर्ताओं ने कहा कि यह प्रक्रिया मौजूदा तरीकों की तुलना में अधिक विश्वसनीय और सस्ती है। जर्मनी में हीडलबर्ग यूनिवर्सिटी में उवे बुन्ज ने बताया कि हम नकली व्हिस्की का पता लगाने के लिए इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। यदि आप महंगी व्हिस्की के व्रेट खरीदते हैं, तो आप यह जांच सकते हैं कि क्या यह वास्तव में वही है, जो सोचकर आपने इसे खरीदा था। वर्तमान में मौजूद तकनीकी में मास स्पेक्ट्रोस्कोपी का उपयोग किया जाता है, जो व्हिस्की में मौजूद केमिकल्स की पहचान करता है।

हालांकि, नई सिंथेटिक जीभ 22 विभिन्न फ्लोरोसेंट डाईज के संयोजन का इस्तेमाल करती है। इसे जब व्हिस्की के साथ मिलाया जाता है, तो प्रत्येक डाई की चमक पूरी तरह बदल जाती है। यह उस पेय के लिए विशिष्ट स्वाद प्रोफाइल का खुलासा करती है। 33 अलग-अलग व्हिस्की पर रंगों का परीक्षण करते हुए शोधकर्ताओं ने पाया कि यह कृत्रिम जीभ उन सब को अलग-अलग पहचान बता सकती है। स्कॉटलैंड में डिस्टिल्ड विस्की, आयरलैंड या अमेरिका से अलग दिखती है। वहीं, ब्लैंड व्हिस्की में सिंगल माल्ट्स की तुलना में एक अलग फिंगरप्रिंट होता है।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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