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बिंदाल के मूल स्रोत पर ही हो गया कब्जा

यहीं से बनती है बिंदाल नदी राजपुर के पास, Photo-J.P.Maithani

देहरादून। जेपी मैठाणी

नदी छोटी थी। नदी बूंदों से बनती थी। नदी का नाम था बिंदाल। देहरादून अस्थाई राजधानी के राजपुर कस्बे से छोटी जलधारा के रूप में निकलने वाली बिंदाल आज नाला बन गई है।  इसका भी  हाल रिस्पना की तरह हो गया है। प्रशासन से लेकर सरकार तक किसी का भी ध्यान इस नदी की ओर नहीं है। शहंशाही आश्रम के नीचे और ढाकपट्टी राजपुर के बाईँ ओऱ से बहने वाली बिंदाल नदी भूमाफिया के कब्जे में जकड़ती जा रही है। कुछ स्थानीय लोगों ने कब्जा करके बिंदाल के मूल स्रोत को खत्म करने का प्रयास किया गया। इस पर लगभग 100 मीटर लंबा पुश्ता बना दिया। उससे थोड़ा ऊपर पूर्व की ओर बिंदाल के मुख्य प्रवाह को पाट कर घर बना दिया गया।

ओल मसूरी रोड पर बने होटलों ने कब्जाई बिंदाल के पीछे आरक्षित वन भूमि , फोटो- जे. पे.. मैठाणी

बिंदाल के ठीक मूल स्रौत पर बना मकान, फोटो- रीनू पौल .

यहां से लगभग 200 मीटर पश्चिम दिशा की ओर जहां पूर्व में स्वामी विवेकानंद रहे थे, बिंदाल के दाईं ओर आश्रम और मंदिर है। इसके आसपास कई प्राचीन बावड़ियां होती थीं। उनको कब्जा कर उन पर सीमेंट कंक्रीट के मंदिरनुमा ढांचे और  अवैध रूप से बनाये गए  प्लाटों  के पहुंच मार्ग के लिए रोड बना दी गई है।

स्वामी विवेकानंद की तपस्थली के आस पास हैं कई बावड़ियां और जलकुंड .

सड़क के नीचे कुछ बावड़ियां और बिंदाल के मूल जल स्रोत, जो शहंशाही आश्रम, क्रिश्चियन रीट्रीट सेंटर, राजपुर चौक बाजार, अोल्ड मसूरी रोड, सुरादेवी मंदिर की फारेस्ट रेंज से रीचार्ज  होते थे, इन सारे क्षेत्रों से बिंदाल नदी में छोटी-छोटी जलधाराएं आकर मिलती हैं, लेकिन इस क्षेत्र में कुछ होटल स्वामियों, प्राइवेट संस्थानों, झुग्गी झोपड़ियों ने कब्जे कर लिए हैं।

सहकारी प्रबंधन संस्थान के सामने एक व्यवसायी ने बाउंड्रीवाल बनाकर नाले की जमीन पर कब्जा जमा लिया है और यह नाला जिस पर कब्जा किया गया है, बिंदाल का फीडर नाला है। यही नहीं किशनपुर चुंगी से मसूरी जाने वाली सड़क पर मैक्स हॉस्पिटल से पहले एक पुलिया है। इस पुलिया से राजपुर की तरफ चलने पर बिंदाल के दोनों किनारों पर अवैध कब्जों की भरमार है। इस क्षेत्र में एक अवैध लिंक रोड भी फैलने लगी है।

उत्तराखंड पॉवर कारपोरेशन की जमीन पर व्यवसायी का कब्ज़ा .

बिंदाल के इतिहास और संस्कृति के बारे बहुत अधिक साक्ष्य या संदर्भ तो नहीं मिल पाए हैं, लेकिन मेमोयर अॉफ देहरादून के लेखक जीआरसी विलियम ने लिखा है कि वर्ष 1837 में कर्नल कॉटले को देहरादून में बिंदाल और रिस्पना, आसन के बीच के त्रिभुजाकार क्षेत्र में सिंचाई के लिए नहरें बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। कर्नल कॉटले से 1839 से 1841 के बीच बीजापुर कैनाल का निर्माण किया। बाद में कॉटले को ही रानी कर्णावती द्वारा रिस्पना पर केलाघाट में बनाए गए बैराज से राजपुर नहर निकालने का श्रेय जाता है।

कॉटले ने 1841 मे जाड़ों में नहर निर्माण शुरू किया था, जो 1844 में तीन साल के भीतर ही पूरी कर दिया था। देहरादून मेमोयर में लिखा है कि देहरादून शहर की पूरी पेयजल सप्लाई रिस्पना से होती थी। राजपुर कम्युनिटी ग्रुप की संस्थापन रेनू पॉल ने बताया कि उनकी टीम शुरू से ही

रिस्पना के मूल बहाव हटाकर- बना दिए पुश्ते- जमीनों का गोरखधंधा ! फोटो- रीनू पौल

रिस्पना और बिंदाल को प्रदूषित व कब्जे करने वालों के खिलाफ संघर्षरत है। यही नहीं उनकी टीम ने इस क्षेत्र में अवैध कब्जों की पैमाइश और जांच राजस्व विभाग और एसआईटी से भी कराई, जिसका रिजल्ट यह रहा कि बिंदाल के मूल स्रोत पर MDDA से स्वीकृत करा लिया हाउसिंग प्रोजेक्ट जनविरोध के चलते रोकना पड़ा.

 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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