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बर्थडे केक की मोमबत्तियों पर फूंक मारना हो सकता है जानलेवा

न्यूयार्क


बर्थडे केक पर लगी मोमबत्तियां बुझाने की प्रथा सदियों पुरानी है। जन्मदिन मनाने वाले लोग केक पर करीने से जमाई गई मोमबत्तियों को बुझाकर ही केक काटते हैं। जन्मदिन समारोह के उत्साह के बीच क्या कभी आपने यह भी सोचा है कि यह परंपरा आपके स्वास्थ्य के लिए कितनी खतरनाक हो सकती है?

हाल ही में किए गए एक शोध में सामने आया है कि केक पर जमाई गई मोमबत्तियों को फूंक मारने से केक जीवाणुओं से भर जाता है। अमेरिका की साउथ कैरोलिना स्थित क्लेमसन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने अपने शोध में पाया कि बर्थडे केक पर लगी मोमबत्तियां बुझाते समय केक पर थूक फैल जाता है। जिसके कारण केक पर 1,400 फीसदी बैक्टीरिया लोड बढ़ जाता है। डॉ. डावसन और उनकी टीम के शोधकर्ता यह देख कर हैरान रह गए। उन्होंने कहा कि खाद्य सुरक्षा के लिहाज से यह बेहद चिंताजनक बात है। शोधर्ताओं ने प्रयोग के दौरान पाया कि मोमबत्ती बुझाते ही केक पर जीवाणुओं की संख्या में आश्चर्यजनक बढ़ोतरी दर्ज की गई।
डॉ. डावसन ने कहा यह बहुत खतरनाक तरीका है। उन्होंने सुझाव दिया खतरों को देखते हुए केक पर मोमबत्ती लगाना ही बंद कर दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि लोगों का मुहं जीवाणुओं से भरा होता है। हालांकिं इनमें से ज्यादातर जीवाणु हानिकारक नहीं होते है।  डॉ. डावसन ने कहा कि अगर कोई बीमार व्यक्ति मोमबत्तियों को बुझा रहा है, तो उस केक को तो कदापि नहीं खाया जाना चाहिए, क्योंकि ऐसा करना जानलेवा भी हो सकता है।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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