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जिंदगियां बना रहे इन युवाओं से जरूर मिलिए

अक्सर युवाओं को लेकर यह कहा जाता रहा है कि उनकी दुनिया मोबाइल के इर्दगिर्द है। वो सोशल मीडिया के जरिये दुनिया से जुड़ने में व्यस्त हैं पर उनको यह नहीं मालूम कि आसपास क्या हो रहा है। ब्रांडेड की डिमांड उन पर हावी है। उनका भरोसा क्लिक पर है…. वो दुनिया को मुट्ठी में करने की बजाय खुद बाजार की मुट्ठी में फंस रहे हैं। हो सकता है, यह बात कुछ युवाओं पर फिट बैठती हो, पर जिन युवाओं से मैं मिलता रहा हूं और गणतंत्र दिवस के दिन मिलने का मौका मिला, उनकी पहल विराट और अभिनव बदलाव की ओर है।

करीब 25 साल के युवा हार्दिक शुभम गुप्ता ने तकधिनाधिन की टीम को प्रेमनगर के पास मीठीबेरी में बिल्डिंग ड्रीम फाउंडेशन के बच्चों से मिलने का मौका दिया। दृष्टिकोण समिति के अध्यक्ष व डुगडुगी स्कूल के संस्थापक सदस्य मोहित उनियाल के साथ हम रविवार करीब 12 बजे मीठीबेरी पहुंच गए।

मीठीबेरी का रास्ता चकराता रोड पर आईएमए से ठीक पहले बाई ओर मुड़ता है। यहां दुजेंद्र सिंह जी के आवास पर फाउंडेशन का 42 बच्चों वाला स्कूल है और यहीं पर बच्चों के लिए भोजन पानी का इंतजाम होता है।

रविवार को बच्चे हमारा इंतजार कर रहे थे। हमने देखा कि आंगन में राष्ट्रीय ध्वज लहरा रहा है और बच्चे काफी खुश नजर आ रहे हैं। कुछ देर पहले ही वंदना जी ने बच्चों को बताया था कि गणतंत्र दिवस क्यों मनाया जाता है। गणतंत्र का अर्थ क्या है। बच्चों को राष्ट्रीय ध्वज के बारे में बताया गया। बच्चों और वहां उपस्थित हर शख्स ने राष्ट्रीय ध्वज को सलामी दी ।

गणतंत्र दिवस समारोह में सांस्कृतिक और देशभक्ति के गीतों पर नृत्य किया गया। दुजेंद्र जी की बेटियां वंदना, अर्चना और अरुणा बच्चों को सुबह और शाम की क्लास में पढ़ाते हैं। समय-समय पर वालंटियर्स बच्चों को कुछ न कुछ रचनात्मक और अभिनव सिखाने की पहल करते हैं।

हार्दिक बताते हैं कि जून 2016 से चल रहे बिल्डिंग ड्रीम फाउंडेशन के इस स्कूल में बच्चों को पढ़ाई के साथ व्यवहारिक ज्ञान दिया जाता है, जैसे आपको दूसरों के साथ कैसा व्यवहार करना है। स्वच्छता और स्वास्थ्य को लेकर सजग किया जाता है। यहां तक कि हाथ धोने और खाना खाने का तरीका तक बच्चों के साथ साझा किया जाता है। बच्चे आर्ट, क्राफ्ट से लेकर नृत्य तक सीख रहे हैं। कुल मिलाकर उनके व्यक्तित्व विकास के लिए जरूरी शिक्षा पर फोकस है।

हार्दिक ग्राफिक एरा से बायो टेक्नोलॉजी में बीटेक तथा एमबीए हैं। सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहे हैं और हाल ही में मध्यप्रदेश सिविल सेवा का मेन्स क्वालीफाई किया है। हार्दिक फाउंडेशन के पीआर (पब्लिक रिलेशन) के साथ अन्य महत्वपूर्ण कार्यों को देखते हैं। हमने उनके पिता बीआर गुप्ता जी से भी मुलाकात की।

इसी दौरान हमारी मुलाकात 23 साल के रंजीत बार से हुई। तक धिनाधिन रंजीत के विजन और बच्चों के भोजन व शिक्षा के लिए किए जा रहे प्रयासों को तहेदिल से सलाम करता है। रंजीत सुबह छह बजे से देर रात तक सिर्फ और सिर्फ बच्चों की पढ़ाई और भोजन के लिए कार्य कर रहे हैं।

बताते हैं कि वर्तमान में देहरादून में साढ़े तीन हजार लोगों तक खाना पहुंचाना हमारी प्रमुख जिम्मेदारी है। इस जिम्मेदारी को निभाने के लिए 50 से ज्यादा युवाओं की टीम काम कर रही है। हमारी टीम को फोन पर सूचना मिल जाती है कि कहां किसी समारोह या भंडारा आदि में भोजन बचा है। हम भोजन को बच्चों तक सुरक्षित पहुंचाते हैं। बीडीएस डॉ. सुरभि जायसवाल, शैलेंद्र, नवजोत सिंह, राधा देवी लगातार इस मुहिम का आगे बढ़ाने में प्रयासरत हैं।

रंजीत बताते हैं कि बच्चों को पढ़ाने की बात तो बाद में आती है, पहले उनके लिए पौष्टिक भोजन व कपड़ों की व्यवस्था होनी अनिवार्य है।

बच्चों को स्कूलों में एडमिशन दिलाना भी प्राथमिकता में है। वर्तमान में नंदा की चौकी, ठाकुरपुर, मीठी बेरी, प्रेमनगर में लगभग 200 बच्चों को पढ़ाया जा रहा है, उनके लिए बुनियादी संसाधनों को जुटाया जा रहा है। हम चाहते है कि हर बच्चा स्कूल जाए और जिंदगी में वो बने, जो वह चाहता है। आपको बता दूं कि इन बच्चों के लिए कार्य करते हुए रंजीत की बीटेक की पढ़ाई बीच में ही छूट गई, उन्होंने अपने सेमेस्टर की फीस बच्चों के लिए भोजन औऱ पढ़ाई के सामान पर खर्च कर दी थी।

मीठी बेरी स्थित स्कूल की शुरुआत को लेकर बड़ी रोचक जानकारियां मिलीं। रंजीत ने बताया कि जब भी बच्चों को स्कूल आकर पढ़ने के लिए कहते तो वो हमसे दूर भागते। हमने तय कर लिया था कि इनको एक दिन स्कूल भेजकर रहेंगे। कभी एक तो कभी दो बच्चे क्लास में आते। हमारे किसी भी साथी ने हिम्मत नहीं हारी।

बस एक बात का ध्यान रखा कि क्लास में एक बच्चा आए या दो, तीन या चार, पांच… या फिर दस, हम पढ़ाई में उनकी रूचि को प्राथिमकता देंगे। हमने बच्चों को पढ़ाने और सिखाने में अपनी पसंद नहीं, बल्कि उनकी पसंद का ध्यान रखा और परिणाम सामने हैं, वर्तमान में 42 बच्चे यहां आ रहे हैं, वो भी नियमित तौर पर।

बच्चों को पढ़ाई के लिए निशुल्क कमरा और खेलने के लिए घर का आंगन देने वाले दुजेंद्र जी बताते हैं कि बिल्डिंग ड्रीम फाउंडेशन की टीम बच्चों को पढ़ाने के लिए कमरा तलाश रही थी। जानकारी मिली तो हमने उनको कमरा दिखाया, उनको पसंद आ गया और बच्चे यहां पढ़ने लगे। उनके घर में बच्चों की चहलकदमी होती है, जो बहुत अच्छी बात है।

दुजेंद्र जी हर रविवार बच्चों के लिए घर पर ही भोजन की व्यवस्था करते हैं। सभी बच्चे खाने से पहले भोजन मंत्र का उच्चारण करते हैं। बच्चों को सिखाया गया है… उतना ही लेंगे थाली में, व्यर्थ न जाए नाली में। बच्चे इस नियम का शतप्रतिशत पालन करते हैं।

हां, तो एक बार फिर बच्चों से मुलाकात के बारे में जिक्र करते हैं। हमने बच्चों से पूछा कि अगर हर वस्तु, यहां तक की पहाड़, पेड़ और जीव, सभी एक ही रंग के होते तो क्या होता। बच्चों ने कहा, कुछ भी अच्छा नहीं लगता। अलग-अलग रंगों की वस्तुएं, फूल, पेड़-पौधे, जीव दिखने में अच्छे लगते हैं।

हमने पूछा, क्या रंगों और विविधता को बनाए रखना चाहिए या नहीं। बच्चों ने कहा, विविधता बनी रहनी चाहिए। हमें सभी का सम्मान करना चाहिए, सभी को साथ लेकर चलना चाहिए। हमने बच्चों को सतरंगी का अभिमान कहानी के माध्यम से यह बताने की कोशिश की कि इस दुनिया में सभी समान हैं, कोई छोटा या बड़ा नहीं है। जितना महत्व उजाले का है, उतना ही महत्वपूर्ण अंधेरा है। रागिनी ने सतरंगी का अभियान कहानी को अपने शब्दों में सुनाया।

बच्चों के साथ कहानी पेड़ घूमने क्यों नहीं जाता, साझा की। बच्चों ने बताया कि वो पौधों और पर्यावरण का ध्यान रखते हैं, हमारे सर और मैडम ने उनको ऐसा करना सिखाया है। नेहा कुमारी ने हमें मीठी बेरी स्कूल के शुरुआत से लेकर अब तक के सफर के बारे में बताया।

नेहा बताती है कि शुरू में हम लोग यहां आए तो हमें कुछ भी समझ में नहीं आता था। रंजीत सर शुरू में हमें यहां पेड़ के नीचे बैठाकर पढ़ाते थे। सर को कुछ लोग गाली देते थे। फिर सर ने हमें पढ़ाने के लिए अंकल जी (दुजेंद्र जी) से कमरा लिया। हमें पढ़ाने के साथ डांस की प्रैक्टिस भी कराई गई। हमें पिक्चर भी दिखाई जाती है। सर और मैडम ने हमें पढ़ाने में बहुत मेहनत की। सर ने हमारे लिए बहुत कुछ किया है, यही हमारे लिए बहुत अच्छा है। मीनू कुमारी ने भी स्कूल के सफर को साझा किया।

रागिनी कुमारी ने इतनी शक्ति हमें देना दाता… गीत सुनाया, जो बच्चे नियमित रूप से गाते हैं। अभी हाल में ही बच्चों ने छपाक फिल्म देखी है। रागिनी ने हमें छपाक फिल्म की कहानी बताई। तकधिनाधिन कार्यक्रम में रवि कुमार, प्रिंस, अंकित, रुद्र, किशन कुमार, विकास, पवन, विशाल, राजा, रमन कुमार, मीनू कुमारी, किशोर कुमार, आंचल, प्रीति, काजल, जूली कुमारी, संजुला, रागिनी कुमारी, अंशु कुमारी, नेहा, कामिनी कुमारी, वर्षा कुमारी, रुद्राक्ष आदि शामिल हुए।

बिल्डिंग ड्रीम फाउंडेशन के संचालक रंजीत जी और पूरी टीम से विदा लेकर हम देहरादून की ओर रवाना हुए। अगले पड़ाव पर फिर मिलेंगे, तब तक के लिए बहुत सारी खुशियों और शुभकामनाओं का तकधिनाधिन।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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