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रूटीन से रहने वाले बच्चे रहते हैं फिट

छोटी उम्र से ही बच्चे का एक रुटीन बनाकर चलने के बेहद फायदे कई हैं। अगर बच्चा एक तय समय पर सोता है, तय समय पर जागता है और उसके खेलने का समय भी तय है, तो ऐसे बच्चों की हेल्थ ताउम्र अच्छी बनी रहती है। यही नहीं, समय पर सोने वाले बच्चे मोटापे से भी बचे रहते हैं। अमेरिका के ओहियो स्टेट विश्वविद्यालय के लेखक सारा एंडरसन ने कहा, ’इस रिसर्च से साबित होता है कि छोटी उम्र के बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए जरूरी है उनका रूटीन बनाना और उसे उनसे फॉलो करवाना।’ रिसचर्स ने तीन साल की आयु वाले 3000 बच्चों के रूटीन का निरीक्षण किया। उनके समय से सोने जाने, समय से खाने और उनके समय से टीवी या फिल्म देखने (एक घंटे या कम) का विश्लेषण किया गया। इसमें रिसचर्स ने पैरेंट्स की रिपोर्ट से बच्चों के दो प्वाइंट्स पर फोकस किया। इसमें शामिल किया गया एक ही उम्र के बच्चों को। इस रिसर्च का प्रकाशन पत्रिका ’ओबेसिटी’ में भी किया गया। एंडरसन ने कहा, ’हमने पाया कि जिन बच्चों को तीन साल की उम्र में एक शेडयूल के तहत नहीं चलाया गया, उनमें 11 साल की उम्र में मोटापे की संभावना ज्यादा रही।’ रिसचर्स ने पाया कि समय से रोजाना बिस्तर पर नहीं जाने वाले बच्चों में 11 साल की उम्र में मोटापे की संभावना ज्यादा पाई गई। यही नहीं, इस रिसर्च में यह भी पता चला कि जिन बच्चों का सोने का कोई समय नहीं होता, उनका आगे चलकर मोटापे का शिकार होना तय है। वहीं समय पर सोने वाले बच्चे हमेशा हेल्दी और स्लिम ट्रिम होते हैं। इस रिसर्च में यह निकलकर आया कि रुटीन पर चलने वाले बच्चे हमेशा पॉजिटिव होते हैं और उनका कॉन्फिडेंस लेवल भी दूसरों के मुकाबले हाई होता है।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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