Short story- Moral Values

सारस और लोमड़ी की दोस्ती

चालाक लोमड़ी सभी से मीठा बोलकर उनका विश्वास जीत लेती थी। किसी भी जीव को अपने जाल में फंसाने से पहले वह उनके साथ अच्छा व्यवहार करती। एक दिन उसकी सारस से दोस्ती हो जाती है। वह सारस को अपने घर दावत पर बुलाती है। सारस दावत वाले दिन लोमड़ी के घर पहुंच जाता है।

लोमड़ी सारस से माफी मांगते हुए कहती है कि दोस्त, मैं तुम्हारे लिए कुछ खास पकवान नहीं बना पाई। केवल सूप बना पाई हूं, आप स्वीकार कीजिए। सारस कहता है- कोई बात नहीं, आप सूप ही ले आओ। चालाक लोमड़ी एक प्लेट में सूप ले आती है, जिसे देखकर सारस मन की मन निराश हो जाता है। क्योंकि सारस तो लंबी चोंच वाला जीव है, वह प्लेट में सूप पी ही नहीं सकता। सारस लोमड़ी की चाल को भांप जाता है और प्लेट पर चोंच लगाकर पीछे हट जाता है।

इस पर लोमड़ी उससे पूछती है कि क्या आपको सूप अच्छा नहीं लगा। सारस ने जवाब दिया- ऐसा नहीं है, आज मेरे पेट में दर्द हो रहा है। मैं अब और सूप नहीं पी सकता। थोड़ी देर में सारस लोमड़ी से विदा लेकर अपने घर लौट आता है। वह भूखा रह जाता है और घर आकर कुछ इंतजाम करता है।

एक दिन सारस ने लोमड़ी को अपने घर आमंत्रित किया। लोमड़ी भी दावत के लिए सारस के घर तय समय पर पहुंच जाती है। सारस भी सूप लेकर किचन से बाहर निकला तो लोमड़ी को अपनी चाल पर पछतावा होने लगा। सारस ने लोमड़ी को सुराई जैसे बर्तन में सूप परोसा था। सारस ने अपनी लंबी चोंच सुराई में डालकर सूप का जायका लिया और लोमड़ी से पूछा कि आप को सूप कैसा लगा। लोमड़ी ने सोचा कि इस तरह के बर्तन में वह सूप कैसे पी सकती है। भूखी लोमड़ी काफी शर्मिंदा हुई और पेट में दर्द का बहाना बनाकर बोली, लगता है मुझे जल्दी घर जाना पड़ेगा। कुल मिलाकर यह कहानी कहती है कि दूसरों के साथ वैसा व्यवहार करो, जैसा आपको खुद के लिए पसंद है। अच्छा व्यवहार करोगे तो अच्छा फल मिलेगा, खराब करोगे तो खराब।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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