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मुख्यमंत्री और उनके परिवार ने सीएम राहत कोष में दिया योगदान

देहरादून।  मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कोरोना वायरस के मद्देनजर अपना पांच माह का वेतन मुख्यमंत्री राहत कोष में देने का निर्णय लिया है। मुख्यमंत्री की पत्नी सुनीता रावत ने एक लाख रुपये का चेक, मुख्यमंत्री की बेटी कृति रावत ने 50,000  एवं सृजा  ने 2000 रुपये के चेक मुख्यमंत्री राहत कोष के लिए दिया है।

सांसद अनिल बलूनी ने सांसद निधि से दिए एक करोड़ 

उत्तराखंड से राज्यसभा सांसद और भाजपा के राष्ट्रीय मीडिया प्रमुख अनिल बलूनी ने सांसद निधि से एक करोड़ रुपये की राशि और अपने एक माह का वेतन प्रधानमंत्री राहत कोष के लिए दिया है। बलूनी  के निजी सचिव अमरेन्द्र आर्य ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा सांसद ने कहा कि इस राशि का उपयोग उत्तराखंड प्रदेश में कोविड-19 (कोरोना ) से राहत के कार्यों में खर्च किया जाएगा।  

वहीं द इंडियन एकेडमी सीनियर सेकेंडरी स्कूल के डायरेक्टर मुनेन्द्र खंडूड़ी ने मुख्यमंत्री राहत कोष के लिए दो लाख का चेक दिया है। डीजी स्वास्थ्य डॉ. अमिता उप्रेती ने 50,000 रुपये तथा उनके पति डॉ. ललित मोहन उप्रेती ने भी 50,000 रुपये के चेक मुख्यमंत्री राहत कोष के लिए दिए। मुख्यमंत्री के ओएसडी जेसी खुल्बे ने पांच हजार रुपये का चेक, वरिष्ठ प्रमुख निजी सचिव केके मदान ने 11हजार रुपये का चेक तथा वरिष्ठ निजी सचिव हेमचंद्र भट्ट ने 5,100 रुपये का चेक मुख्यमंत्री राहत कोष में जमा कराया।

वहीं प्रदेशीय जूनियर हाईस्कूल शिक्षक संघ उत्तराखंड भी मुख्यमंत्री राहत कोष में सहायता राशि जमा करेगा। मंगलवार को मुख्यमंत्री आवास में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से जूनियर हाईस्कूल शिक्षक संघ के प्रदेश कोषाध्यक्ष सतीश चंद्र घिल्डियाल ने भेंट के दौरान यह जानकारी दी।

 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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