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फिर भी

उमेश राय

सघन अँधेरा बढ़ रहा है,
अपने तिलिस्मी रंग-रुप में..
विश्वास की आस टूटती जा रही है,
कच्चे धागे की मानिंद .

बहुरुपिया लोग बढ़ रहे हैं नित नए अंदाज में,
जैसे खेत में खरपतवार बिना बोये ही निकल आती है.
संबंध की गंध लुप्तप्राय होकर अनुबंध की गंधहीनता में हो गयी है परिणत,
जैसे फूल-फल से रहित शुष्क रूख पड़ा हो.

जितना है, वह कम है,
यह अभाव का भाव उग गया है,
कंटीले नागफनी जैसा यत्र-तत्र-सर्वत्र.
एक बेबसी, बेचैनी, भय, अकेलापन पसरा है दूर-दूर तक,
इतना कि खुद से भी बहुत दूर हो गया आदमी.

खाली आश्वासनों से पेट नहीं भरा करता,
दिल तो बिल्कुल नहीं.
इतने अनर्थकारी,अवमूल्यित होते समय में भी,
तुम रोशनी बोते रहना छोटा ही सही,

मूल्यों को संजोते रहना,
वेदना-संवेदना संग.
स्वरुप को संभालना,
संबंध को निखारना,
विश्वास में ही विश्व के आस को सजीव रखना,

भाव भरे मन से नम – नरम रहना…
इससे शायद दुनियां में फिर-फिर
फैले मानवता की फसलें – नस्लें,
कम हो फॉसले,
दूर हो फिसलने,

हक,इंसानियत,ईमान को मिले बहुमान.
याद रहे,
तमाम तम के घिरते समीकरणों में भी,
एक सूरज अब भी उगता है,
अपनी धरती के लिए,
प्रेम को परोस कर,
खुद को समूचा उलीचते हुए.

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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