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लड़की का लौटना

  • उमेश राय

शादी के बाद,
जब भी लड़की लौटती है,
अपने माता-पिता वाले घर….
वह चहकती-फुदकती है,
जैसे – चिड़िया दिनभर व्यस्त रहने
के बाद विन्यस्त होने अपने घरौंदा पर आती है.

भीड़ भरे उमस वाले पथ पर,
जैसे शीतलता का नीर-नीड़ मिल गया हो.
लड़की देखती है,
पनियाली आँखों से,
अपना घर-आँगन…

कुरेदती है ,
अपने पैर तले की माटी,
कुछ खालिस-खाटी तलाशती हो जैसे.
संपूर्णता में, लड़की यहाँ जीती है,
उसकी भूख की रूख गहरी हो जाती है यहाँ..

वह सिकुड़ती नहीं,
जुड़ती है यहाँ.
बंदिशे नहीं,खुली दिशाएं मिलती है,
उसे उड़ने को,उमड़ने को.

कितनी मधुर होती है,
याद की स्वाद!
वह अपनी बोयी यादों को,
नम करती है,
नमन करती है.

मैं देख सकता हूँ,
उसके चेहरे का हरापन!
अपने भीतर कुछ अंकुरित होते हुए.
देखता हूँ,
उसकी इस हंसी-खुशी से ही,
मुस्कुराती धरती अपनी धुरी पर चल रही है,
जीवन-विविधता पल रही है.

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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