Short story- Moral Values

कौए से क्यों छिपता है उल्लू 

एक जमाने की बात है, उल्लू और कौआ पड़ोसी थे, क्योंकि वो एक ही पेड़ पर अपने घोंसलों में रहते थे। एक दिन उल्लू अपने घोंसले में सो रहा था। एक बच्चे ने मिट्टी की ढेली बनाकर गुलेल चलाई। मिट्टी की ढेली उल्लू के कान में घुस गई। वह दर्द से कराह रहा था। शाम को कौआ अपने घोंसले में पहुंचा तो उल्लू के रोने की आवाज सुनी। वह सीधा उसके पास पहुंच गया और पूछा, भाई क्यो रो रहे हो। उल्लू ने बताया कि उसके कान में तेज दर्द हो रहा है। इस पर कौए ने कहा, दोस्त कुछ देर बाद डॉ़क्टर कोयल को तुम्हारा कान दिखा देंगे। कोयल मेरी बहन है और वह तुम्हारा अच्छे से इलाज कर देगी। थोड़ी देर रुक जाओ, मैं अपने बच्चों को कुछ खिलाकर आ जाता हूं। अभी तो मैं अपने घोंसले पर भी नहीं पहुंचा हूं। तुम थोड़ा इंतजार करना।

https://youtu.be/c-c1tmmBzd0

कौआ अपने घोंसले पर जाता है और बच्चों में व्यस्त हो जाता है। कौआ भूल गया कि उसे तो उल्लू को डॉ. कोयल के अस्पताल लेकर जाना है। उधर, उल्लू उसका इंतजार कर रहा था। दर्द की वजह से वह कुछ खा पी भी नहीं पा रहा था। जब काफी देर हो गई तो उसने कौए को आवाज लगाई। उल्लू की आवाज सुनकर, कौए को ध्यान आया- अरे मुझे तो उल्लू को अस्पताल लेकर जाना था। उसने अपने बच्चों को यह बात बताई और कहा, मैं थोड़ी देर में आता हूं।   जरूर पढ़ें- बालिग होता उत्तराखंडः क्या अब मिल जाएगा सही जवाब

वह उल्लू को लेकर सीधे डॉक्टर कोयल के अस्पताल पर पहुंचा, लेकिन तब तक अस्पताल बंद हो चुका था। उसने कोयल को कई आवाज लगाई। डॉ़क्टर कोयल ने नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा, यह कोई समय है, अस्पताल आने का। सुबह आना, अभी मैं किसी का इलाज नहीं करूंगी। कौए ने काफी मिन्नतें की, तब कोयल ने कहा, ठीक है। तुम अस्पताल में बैठो, अभी आती हूं। डॉ़क्टर कोयल ने उल्लू को बहुत खरी खोटी सुनाई। अपना ध्यान नहीं रख सकते। जब दिन में दर्द हुआ था, तो इतनी रात को क्यों आ रहे हो। वो तो मैं कौए भैया की वजह से तुम्हारा इलाज कर रही हूं।

डॉ़क्टर कोयल ने उल्लू से कहा कि रास्ते में किसी तालाब में डुबकी लगा लेना। कान का दर्द दूर हो जाएगा। उल्लू धन्यवाद कहकर वापस जाने लगा। इस पर कोयल ने कहा, फीस तो देते जाओ। लेकिन उल्लू के पास फीस देने के लिए पैसे नहीं थे। वह कौए की ओर देखने लगा। कौए ने उससे कहा, भाई बता देते कि तुम्हारे पास पैसे नहीं हैं। मैं घर से कुछ पैसे लेकर आता। कौए ने कोयल से कहा, कल सुबह आपकी फीस दे दी जाएगी। अभी के लिए माफी मांगते हैं। सुबह तक की मोहलत दे दो। इस पर कोयल का कहना था, यह उल्लू है और सबका उल्लू बनाता है। इस पर कैसे विश्वास करूं।

कौए ने कहा, बहन अगर फीस नहीं आई तो मैं जिम्मेदारी लेता हूं। आपसे वादा करता हूं, कल फीस पहुंच जाएगी। कोयल ने कहा- कौए भाई, अगर फीस नहीं आई तो भविष्य में तुम्हारे लाए हुए किसी भी मरीज का चेकअप नहीं करूंगी।  उल्लू और कौआ अपने घोंसले की ओर चल दिए। रास्ते में उल्लू ने तालाब में डुबकी लगाई और कान में घुसी मिट्टी की ढेली गलकर बाहर आ गई और उल्लू का दर्द दूर हो गया।

दूसरे दिन उल्लू अपने घोंसले में सोता रहा और कोयल की फीस देने नहीं गया। एक हफ्ता हो गया, लेकिन फीस नहीं चुकाई गई। एक दिन कोयल ने कौए को बुलाकर बुरी तरह डांटा। तुम कैसे लोगों को दोस्त बनाते हो, उल्लू ने अभी तक फीस नहीं दी। कौए ने कुछ दिन का वक्त मांगा। कौआ सीधा उल्लू के घोंसले पर गया, लेकिन वह तो वहां से गायब था। कौआ शाम को घर लौटता तो उल्लू घोंसले पर नहीं मिलता।

एक दिन फिर कोयल ने कौए को टोक दिया। इस पर कौए ने कहा, ठीक है बहन। आप जो कहोगी मैं करूंगा, क्योंकि मेरे पास भी आपकी फीस चुकाने के लिए पैसे नहीं हैं। इस पर कोयल और कौए के बीच एक समझौता हुआ, जिसके अनुसार कौए ने कोयल के बच्चों की देखभाल करने का जिम्मा उठाया। समझौते के अनुसार फीस चुकाने तक कौए को कोयल के बच्चों की देखभाल करनी होगी।

तब से लेकर अब तक कौआ अपनी जिम्मेदारी निभा रहा है। वहीं कौए से छिपकर उल्लू रात को बाहर निकलता है और उसने कौए वाले पेड़ से अपना घोंसला हटाकर कहीं खंडहर में बना लिया है। कहानी यह संदेश देती है, अच्छे लोगों के साथ रहो और किसी की गारंटी लेने से पहले उसके बारे में अच्छी तरह जान लो।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button