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बड़ा ही नहीं महत्वपूर्ण भी है बरगद वृक्ष

डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
दून विश्वविद्यालय,देहरादून

बरगद के पेड़ का अपना एक सांस्कृतिक महत्व होता है। भारत का राष्ट्रीय वृक्ष बरगद है,जिसे औपचारिक रूप से ficus benghalensis नाम से जाना जाता है। बरगद के पेड़ को विशाल स्वरूप और लोगों को छाया प्रदान करने के कारण मानवीय प्रतिष्ठान का केंद्र बिन्दु माना जाता है। यह वृक्ष अक्सर कल्पित ‘कल्पवृक्ष’ कहलाता है, क्योंकि यह दीर्घायु से संबंधित मनोकामनायें पूरी करने  का एक प्रतीक भी है और इसमें महत्वपूर्ण औषधीय गुण भी पाये जाते हैं।

बरगद का पेड़ आकार में बहुत बड़ा होता है। यह जीवों की एक बड़ी संख्या के लिए एक निवास स्थान है। सदियों से बरगद का पेड़ भारत के ग्रामीण समुदायों के लिए एक केंद्रीय बिंदु रहा है। बरगद का पेड़ न केवल बाहर से ही बड़े पैमाने पर है बल्कि इनकी शाखाओं से कुछ नयी जड़ें भी निकलती है वृक्ष की शाखाएं वृक्ष के आसपास के क्षेत्र में जड़ और तना की एक भूल भुलैया जैसी आकृति बना देती है।

बरगद के पेड़ में बाकी सभी पेड़ों में से सबसे बड़ी और मजबूत जड़ें पायी जाती हैं। भारत का सबसे बड़ा बरगद का पेड़ पश्चिम बंगाल के शिबपुर, हावड़ा में भारतीय वनस्पतिक उद्यान में स्थित है। यह लगभग 25 मीटर लंबा है और इसका ऊपरी भाग लगभग 420 मीटर है तथा 2000 से अधिक हवा में लटकती हुई जटायें है।

बरगद के पेड़ दुनिया के सबसे बड़े पेड़ों में से एक हैं और 100 मीटर तक फैली शाखाओं के साथ ये 20-25 मीटर तक लम्बे होते हैं। इसमें एक विशाल तना होता है जिसकी चिकनी और भूरे रंग की छाल होती है। इसकी बहुत शक्तिशाली जड़ें होती हैं, जो कंक्रीट जैसी मजबूत सतहों यहाँ तक कि कभी-कभी पत्थरों में घुसपैठ कर सकती हैं। पुराने बरगद के पेड़ की जटायें हवा में लटकती रहती है और जब पेड़ नया होता है तो वे पतली रेशेदार होती है। लेकिन जब वे बूढ़े हो जाते हैं तो दृढ़ता से मिट्टी में पकड़ बना लेती हैं, और उनकी मोटी शाखायें साफ दिखने लगती हैं। ये हवा में लटकी जटायें एक मंडप जैसा बना देती है।

बरगद के पेड़ आमतौर पर प्रारंभिक सहायता के लिए एक मौजूदा पेड़ के आसपास बढ़ता है और इसके भीतर जड़ें फैलता जाता है। जैसे बरगद का पेड़ परिपक्व हो जाता है, जड़ों का जाल समर्थन पेड़ पर भारी दबाव डालता है, अंततः वह पेड़ नष्ट हो जाता है और मुख्य रूप से मुख्य वृक्ष का तना अंदर एक खोखले केंद्रीय स्तंभ के रूप में अवशेष बन जाता है। पत्तियां मोटी होती है। जिनके डंठल छोटे होते है। पत्ती की कलियों को दो पार्श्व शल्क से सुरक्षित किया जाता है, जो पत्ते के परिपक्व होने पर गिर जाते हैं। पत्तियां ऊपरी सतह पर चमकदार होती हैं।

पत्तियां आकार में बड़ी और गोल होती है। पत्तियों के आयाम लंबाई में लगभग 10-20 सेमी और चौड़ाई 8-15 सेंटीमीटर होती हैं। फल खाने योग्य और पौष्टिक होते हैं। ये त्वचा से संबंधित समस्याओं को कम करने और सूजन कम करने के लिए भी उपयोग किये जाते है। छाल और पत्ती के अर्क का इस्तेमाल रक्तस्राव को रोकने के लिए किया जाता है। पत्ती की कलियों के आसवन का उपयोग पुरानी दस्त / पेचिश के इलाज के लिए किया जाता है। बरगद से निकलने वाले दूध की कुछ बूंदों की सहायता से रक्तस्राव के बवासीर को राहत मिलती है।

दांतों को साफ करने के लिए लटकती हुई जड़ों का इस्तेमाल किया जाता है जो कि दांत की समस्याओं को रोकने में भी मदद करती है। वनस्पति-दूध गठिया, जोड़ों के दर्द के इलाज के लिए फायदेमंद होते हैं, साथ ही घाव और अल्सर को ठीक करने के लिए भी फायदेमंद होते हैं।

बरगद का पेड़ का हमारे भारत देश में विशाल सांस्कृतिक महत्व है। यह हिंदूओं में पवित्र वृक्ष माना जाता है। यह मंदिरों में अपने भक्तों को छाया देने के लिये लगाया जाता है। बरगद का वृक्ष आमतौर पर एक अनंत जीवन का प्रतीक है क्योंकि इसकी उम्र बहुत ही लंबी होती है।  विवाहित हिंदू महिलायें अक्सर बरगद के पेड़ के आसपास धार्मिक अनुष्ठानों को करती हैं और जिससे वे अपने पति की लंबी उम्र और भलाई के लिए प्रार्थना करती है। हिंदू सर्वोच्च देवता शिव को ऋषियों से घिरे बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर, ध्यान करते हुए रूप में चित्रित किया जाता गया है।

वृक्ष को त्रिमूर्ति का प्रतीक माना जाता है, हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार यह तीन सर्वोच्च देवताओं का संगम– भगवान ब्रह्मा जड़ों में प्रतिनिधित्व करते हैं, भगवान विष्णु जटाओं में विराजमान है और भगवान शिव को शाखाएं माना जाता है। बौद्ध विश्वासों के अनुसार, गौतम बुद्ध ने एक बरगद के पेड़ के नीचे ध्यान करके बोध प्राप्त किया था और इस प्रकार इस वृक्ष का बौद्ध धर्म में भी अधिक धार्मिक महत्व है।

बरगद का पेड़ अक्सर एक ग्रामीण प्रतिष्ठान का ध्यान का केंद्र होता है। बरगद के पेड़ की छाया शांतिपूर्ण मानवीय संपर्कों के लिए सुखदायक पृष्ठभूमि प्रदान करता है। पेड़ की पत्तियां एक घंटे में 5 मिलीलीटर ऑक्सीजन देती हैं। यह वृक्ष दिन में 20 घंटे से ज्यादा समय तक ऑक्सीजन देता है। इसके पत्तों से निकलने वाले दूध को चोट, मोच और सूजन पर दिन में दो से तीन बार मालिश करने से काफी आराम मिलता है। यदि कोई खुली चोट है तो बरगद के पेड़ के दूध में आप हल्दी मिलाकर चोट वाली जगह बांध लें, घाव जल्द भर जाएगा भारत का राष्ट्रीय वृक्ष होने के साथ यह धार्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। इस पेड़ के पत्ते, फल और छाल शारीरिक बीमारियों को दूर करने के काम आते हैं। वैज्ञानिक रूप से भी बहुत महत्वपूर्ण है।

ये लेखक के अपने विचार हैं।

 

 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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