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कौंणीः फॉक्स टेल मिलेट, बहुमूल्य पहाड़ी अनाज

डॉ राजेंद्र डोभाल महानिदेशक, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद उत्तराखंड

कौंणी एक under utilized फसल जिसको foxtail millet के नाम से भी जाना जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम setaria italica है तथा posceae परिवार का पौधा है। कौंणी एक प्राचीन फसल है, इसका उत्पादन चीन, भारत, रूस, अफ्रीका तथा अमेरिका में किया जाता है। कौंणी चीन में लगभग 5000 वर्ष पूर्व तथा यूरोप में लगभग 3000 वर्ष पूर्व से चलन में है। कौंणी का चावल एशिया, दक्षिणी पूर्वी यूरोप तथा अफ्रीका में खाया जाता है। विश्वभर में कौंणी की लगभग 100 प्रजातियां पाई जाती हैं। कौंणी की लगभग सभी प्रजातियां अनाज उत्पादन के लिये उगाई जाती हैं केवल setari sphacelata पशुचारे के लिये उगाई जाती हैं।

वैसे तो उत्तराखण्ड में कौंणी की खेती वृहद मात्रा में नहीं की जाती है, केवल कौंणी के कुछ बीजों को मडुवें के साथ मिश्रित फसल के रूप में बहारनाजा पद्धति के तहत उगाया जाता है। पुराने समय में कौंणी के अनाज को पशुओ के लिये पोष्टिक आहार तैयार करने के लिये उगाया जाता था परन्तु वर्तमान में एक खेत में केवल कौंणी के 8-10 पौधे ही दिखाई देते हैं जो कि बीजों को बचाने के लिये (Germplasm saving) के लिये हैं। दक्षिणी भारत तथा छत्तीसगढ़ के जन जातीय क्षेत्रों में कौंणी प्रमुख रूप से उगाया तथा खाया जाता है। छत्तीसगढ़ के जनजातीय क्षेत्रों में कौंणी का उपयोग औषधि के रूप में अतिसार, हड्डियों की कमजोरी एवं सूजन आदि के उपचार के लिये भी किया जाता है। प्राचीन समय से ही कौंणी को कई क्षेत्रो में खेतों की मेड पर भी उगाया जाता है क्योंकि कौंणी में मिट्टी को बांधने की अदभुत क्षमता होती है तथा इसी वजह से FAO 2011 में कौंणी को “Forest reclamation approach” के लिये संस्तुत किया गया था। 

जहां तक कौंणी की पोष्टिक गुणवत्ता की बात की जाय तो यह अन्य millets की तरह ही पोष्टिक तथा मिनरल्स से भरपूर होने के साथ-साथ वीटा कैरोटीन का भी प्रमुख स्रोत है। कौंणी में Alkaloids, phenolics, flavonoids तथा tannins के अलावा starch 57.57 mg/gm, carbohydrates 67.68 mg/gm, protein 13.81%, fat 4.0%, fiber 35.2%, calcium 3.0 Mg/gm, phosphorus 3.0 mg/gm, iron 2.8 mg/gm पाया जाता है। इन सब पोष्टिक गुणवत्ता के साथ-साथ कौंणी का अनाज low glycimic भी होता है। यदि गेहूं के आटे से कौंणी की तुलना की जाय तो कौंणी की GI value 50.8 पाई जाती है जबकि गेंहू में 68 तक पाई जाती है। कौंणी में 55% प्राकृतिक insoluble fiber पाया जाता है जो कि अन्य millet की तुलना में काफी अधिक है। यह माना जाता है कि कौंणी को खाने से काफी सारी chronic बीमारियों का निवारण हो जाता है।

कौंणी के साथ-साथ अन्य millets की पौष्टिकता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि तंजानिया में एड्स रोगियों के बेहतर स्वास्थ्य तथा औषधियों के कारगर प्रभाव के लिये millet से निर्मित भोजन दिया जाता है। श्री वेंकटेश्वर विश्वविद्यालय के एक अध्ययन के अनुसार कौंणी खून में ग्लूकोज की मात्रा 70 प्रतिशत तक कम कर देता है तथा लाभदायक वसा को बढ़ाने में सहायक होता है। कौंणी के बीजों में 9 प्रतिशत तक तेल की मात्रा भी पाई जाती है जिसकी वजह से विश्व के कई देशो में कौंणी से तेल का उत्पादन भी किया जाता है। FAO 1970 की रिपोर्ट तथा अन्य कई वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार कौंणी वसा, फाइवर, कार्बोहाईड्रेड के अलावा कुछ अमीनो अम्ल जैसे tryptophan 103 mg, lysine 233 mg, methionine 296 mg, phenylalanine 708 mg, thereonine 328 mg, valine 728 mg & leucine 1764 mg प्रति 100 ग्राम तक पाये जाते हैं। इस पौष्टिकता के साथ-साथ कौंणी एक non-glutinous होने की वजह से आज विश्वभर में कई खाद्य उद्योगों में एक प्रमुख अवयव है।

कई देशों में कौंणी का आटा पोष्टिक गुणवत्ता की वजह से इसको Bakery industry में बहुतायत में प्रयोग किया जाता है। कौंणी से निर्मित ब्रेड में प्रोटीन की मात्रा 11.49 की अपेक्षा 12.67, वसा 6.53 की अपेक्षाकृत कम 4.70 तथा कुल मिनरल्स 1.06 की अपेक्षाकृत अधिक 1.43 तक पाये जाते हैं। जबकि पौष्टिकता के साथ-साथ ब्रेड का कलर, स्वाद तथा hardness भी बेहतर पाई जाती हैं। वर्तमान में ब्रेड उद्योग विश्वभर में तेजी से उत्पादन कर रही है। विश्व में 27 लाख टन वार्षिक ब्रेड का उत्पादन किया जाता है। अगर कौंणी के आटे को ब्रेड उद्योग में उपयोग किया जाता है तो न केवल ब्रेड पोष्टिक गुणवत्ता में बेहतर होगी बल्कि इस under utilized फसल जो असिंचित भू-भाग में उत्पादन देने की क्षमता रखती है को बेहतर बाजार उपलब्ध हो जायेगा और समाप्ति की कगार पर पहुंच चुकी कौंणी को पुर्नजीवित कर जीविका उपार्जन हेतु आर्थिकी का स्रोत बन सकती है। चीन में कौंणी से ब्रेड, नूडल्स, चिप्स तथा बेबी फूड बहुतायत उपयोग के साथ-साथ बीयर, एल्कोहल तथा सिरका बनाने में भी प्रयुक्त किया जाता है। कौंणी के अंकुरित बीज चीन में सब्जी के रूप में बडे़ चाव के साथ खाये जाते हैं। यूरोप तथा अमेरिका में कौंणी को मुख्यतः poultry feed के रूप में उपयोग किया जाता है। चीन, अमेरिका एवं यूरोप में कौंणी को पशुचारे के रूप में भी बहुतायत में प्रयोग किया जाता है।

वर्ष 1990 तक विश्वभर में कौंणी का 5 मिलयन टन उत्पादन किया जाता था जो कि कुल millet उत्पादन का 18 प्रतिशत योगदान रखता है। विश्वभर में चीन कौंणी उत्पादन में प्रमुख स्थान रखता है जबकि अफ्रीका में अन्य millet की तुलना में कौंणी का उत्पादन कम पाया जाता है। असिंचित दशा में कौंणी का लगभग 800-900 किग्रा/हे0 तक उत्पादन लिया जा सकता है जिसमें पशुचारे हेतु लगभग 2500 किग्रा/हे0 भूसा भी उपलब्ध हो जाता है। चीन में कुछ बेहतर प्रजातियों से 1800 किग्रा/हे0 तक उत्पादन तक लिया जाता है।

कौंणी को विश्व बाजार में राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय कम्पनियों के द्वारा 40 से 90 रूपये प्रति किलोग्राम तक बेचा जा रहा है। भारत तथा उत्तराखण्ड के परिप्रेक्ष्य में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कौंणी पौष्टिकता के साथ-साथ सूखा सहन करने की अदभुत क्षमता होती है। उत्तराखण्ड जहां अधिकतम भू-भाग असिंचित होने की वजह से millet उत्पादन के लिये उपयुक्त है, कौंणी को उच्च गुणवत्तायुक्त वैज्ञानिक तकनीकी से उत्पादित किया जाय तथा केवल पशु आहार, कुकुट आहार, बेबी फूड के लिये भी किया जाय तो यह millet उत्पादकों के लिये सुलभ बाजार तथा आर्थिकी का प्रमुख साधन बन सकता है।

 

 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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