Analysiscurrent AffairsFeatured

पेड़ हो सकते हैं हरित फोम का विकल्प

यदि आप गर्मी के दिन समुद्र तट पर जा रहे हैं, तो आप ठंडे पानी से भरे कूलर को नहीं भूलना चाहेंगे। आप उस कूलर को बर्फ से भर सकते हैं। हालांकि, अपने आप ही बर्फ लंबे समय तक चीजों को ठंडा नहीं रखती है। यही कारण है कि एक कूलर अपनी दीवारों में इन्सुलेशन पैक करता है। सर्वश्रेष्ठ इंसुलेटर लंबे समय से प्लास्टिक आधारित फोम हैं, जैसे कि स्टायरोफोम। लेकिन लकड़ी से बना एक नया प्रकार का फोम और भी बेहतर काम कर सकता है और यह पर्यावरण के लिए अनुकूल है।

प्लास्टिक फोम अविश्वसनीय रूप से उपयोगी और लोकप्रिय है। लाखों छोटे-छोटे एयर पॉकेट्स से भरी इसकी संरचना हल्की और मजबूत होती है। यह शिपिंग के दौरान पैकेजों की रक्षा करती है और जब एक इन्सुलेटर के रूप में उपयोग किया जाता है, तो प्लास्टिक फोम तापमान को नियत रखने में मदद करते हैं। यही कारण है कि लोगों ने कप और कूलर से लेकर पैकेजिंग तथा होम इंसुलेशन तक हर चीज के लिए इस पर भरोसा किया है।

हालाँकि, इनमें कुछ कमियां हैं। ये पेट्रोलियम, एक गैर-नवीनीकरणीय सामग्री से बने होते हैं। इस्तेमाल होने के बाद इन फोम-आधारित उत्पादों को रिसाइकल करना मुश्किल होता है। प्लास्टिक फोम बायोडिग्रेडेबल नहीं होते। यह छोटे छोटे टुकड़ों में बिखर जाते हैं, जो हवा में फैल सकते हैं, जिनसे प्रदूषण फैलता है। यह प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए काफी नुकसानदायक होते हैं।

साइंस न्यूज में प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया गया है कि शोधकर्ता फोम का  विकल्प खोजने की कोशिश कर रहे हैं। वे कुछ ऐसा चाहते हैं जो ग्रीन हो और पर्यावरण के लिए बेहतर हो। रिचलैंड में वाशिंगटन स्टेट यूनिवर्सिटी में मैटेरियल साइंटिस्ट जिओ झांग और आमिर अमेली ने इस सवाल का जवाब पेड़ों में तलाशा है।

रिपोर्ट के अनुसार सेल्युलोज एक बहुत मजबूत सामग्री है, जो पौधे की कोशिकाओं की दीवारों को बनाता है। अन्य वैज्ञानिकों ने पेड़ों में सेल्यूलोज से फोम बनाने के तरीके खोजे थे। उन्हें पसंद आया कि प्रारंभिक घटक न केवल एक अक्षय संसाधन है, बल्कि पर्यावरण में पूरी तरह से टूट सकता है। हालाँकि, सीधे सेल्युलोज से फोम नहीं बनाया जा सकता। शुरुआती शोधकर्ताओं ने पाया था कि उन्हें लकड़ी के गुदे को एसिड में घोलने की जरूरत थी और फिर इसे छानना था। इससे बचे बहुत महीन क्रिस्टल सेल्युलोज के होंगे। ये इतने छोटे हैं कि मानव बाल की चौड़ाई का बनाने के लिए एक साथ 500 क्रिस्टल की आवश्यकता होती है। इन नैनोक्रिस्टल के कारण ही पेड़ों के तने इतने मजबूत होते हैं।

इनको फोम में बदलने के लिए, शोधकर्ताओं ने कठोर सॉल्वेंट्स में नैनोक्रिस्टल को घोल दिया। फिर फोम बनाने के लिए इसे फ्रीज किया और सॉल्वेंट्स को हटाने के लिए इसे सूखाया, लेकिन जो सामग्री हासिल हुई, वो पारंपरिक प्लास्टिक फोम से कमजोर थी और साथ ही साथ स्टायरोफोम की तरह इन्सुलेट नहीं कर सकती। साइंटिस्ट कुछ ऐसा बनाना चाहते थे, जो न केवल प्लास्टिक के फोम से बेहतर काम करता बल्कि पर्यावरण के लिए भी अनुकूल हो। वो किसी भी हानिकारक या महंगी सॉल्वेंट्स से बचना चाहते थे।  शोधकर्ताओं ने सेल्युलोज के साथ अलग-अलग विधियों से मिश्रण तैयार किए। जहां सेल्युलोज के नैनोक्रिस्टल और पानी का मिश्रण तैयार किया। वहीं खिंचाव के लिए, पॉलीविनाइल अल्कोहल को इस्तेमाल किया गया।

शोधकर्ताओं ने प्रत्येक मिश्रण को एक ट्यूब में डाला और इसे छह घंटे तक जमने दिया। इसने नैनोक्रिस्टल्स को यथावत रखा। एक बार जब प्रत्येक मिश्रण अच्छा और ठोस था, तो उन्होंने उसे फ्रीज कर दिया। इसने पानी को हटा दिया, सिर्फ फोम बच गया।  अंत में, शोधकर्ताओं ने परीक्षण किया कि फोम कितनी अच्छी तरह से तापमान को नियत रखते हैं। शोधकर्ताओं ने पाया कि एसिड के मिश्रण से तैयार फोम का प्रदर्शन शानदार रहा। इस फोम ने तापमान को अन्य के मुकाबले में बेहतर तरीके से बढ़ने से रोका। इसने स्टायरोफोम की तुलना में बेहतर इंसुलेट किया। ऐसा इसलिए है क्योंकि इसमें बहुत सारे छोटे बबल्स थे ।  “बबल्स बहुत छोटे होने की वजह से हवा स्वतंत्र रूप से इसमें प्रवेश नहीं कर सकती और तापमान जल्दी से बाहर और भीतर स्थानांतरित नहीं हो पाता।

रिपोर्ट के अनुसार टीम ने अभी तक अध्ययन नहीं किया है कि पर्यावरण में यह फोम कितना डिग्रेडेबल है, लेकिन शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि यह तेजी से डिग्रेड होगा।  रिपोर्ट में समुद्र विज्ञानी मोनिका फेरेरा दा कोस्टा के हवाले से कहा गया है कि जब तक फोम के डिग्रेड होने का परीक्षण नहीं किया जाता, तब तक इसे लैब में ही रखा जाए। दा कोस्टा दुनिया के महासागरों में प्लास्टिक प्रदूषण का अध्ययन करती हैं। उनका तर्क है कि प्लास्टिक के फोम के प्रतिस्थापन को व्यापक रूप से उपलब्ध कराने से पहले, शोधकर्ताओं को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि वे कुछ नए प्रकार का प्रदूषण पैदा न करें। कोस्टा कहती हैं, “मेरा मानना ​​है कि किसी भी उत्पाद को बिना किसी टेस्टिंग के कभी भी दोबारा बाजार में नहीं आना चाहिए”। “बार-बार वही गलतियाँ दोहराने की ज़रूरत नहीं है।”

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button