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और मुस्कराने लगा वह बूढ़ा आदमी

किसी गांव में एक वृद्ध रहता था। खराब व्यवहार की वजह से गांव के लोग उसको दुनिया का सबसे दुर्भाग्यपूर्ण व्यक्ति मानते थे। पूरा गांव उससे आजिज आ चुका था। वह हमेशा उदास रहता था और उसको हर व्यक्ति से कोई न कोई शिकायत थी। वह हमेशा खराब मूड में रहता और लोगों को बुरा भला कहता था। दिन पर दिन उसके शब्द और जहरीले होते जा रहे थे। उसकी आदत थी कि वह किसी को भी खुश नहीं देखना चाहता था। 

एक दिन अचानक उसका व्यवहार बदल गया था। वह अस्सी साल का हो गया था। गांव में यह सूचना आग की तरह फैल गई कि खराब व्यवहार वाला बूढ़ा आदमी खुश दिखाई दे रहा है। उसने आज किसी की भी शिकायत नहीं की और मुस्कराते हुए कुछ गुनगुना रहा है। उसके चेहरे पर ताजगी दिख रही है। बड़ी संख्या में गांव के लोग उसके चारों तरफ इकट्ठा हो जाते हैं। लोग आश्चर्य में हैं कि उसने किसी को भी बुरा नहीं कहा। वह खुश है। 

एक व्यक्ति ने उससे पूछ ही लिया क्या कुछ खास बात है आज, तुम्हारा व्यवहार पूरी तरह बदला हुआ दिख रहा है। बूढ़े व्यक्ति ने जवाब दिया- कुछ खास नहीं मित्र। मैं अस्सी वर्ष का हो गया हूं और लंबे समय से खुशियों का पीछा कर रहा हूं। खुशियों को पकड़ना आसान नहीं है। अब मैंने खुशियों के बिना जीने का फैसला किया। अब मैं बेहतर तरीके से जी रहा हूं और यही कारण है कि मैं अब खुश हूं।

कुल मिलाकर यह कहानी कहती है कि खुशियों का पीछा करना छोड़ दो, जो तुम्हारे आसपास है उन्हीं में अपनी खुशियों को तलाश करो।

 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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