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रात को बारिश में ही धान के खेत में पहुंच गए हरीश रावत

देहरादून। कुमाऊं दौरे के दौरान कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत सोमवार रात बारिश में ही धान के खेतों में पहुंच गए। सोशल मीडिया में उन्होंने इसका वीडियो भी जारी किया है।

हरीश रावत की इस सक्रियता से युवा नेता कुछ सीख ले सकते हैं। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत सोशल मीडिया पर हर राजनीतिक गतिविधियों को साझा कर रहे हैं।

सोमवार रात, बारिश में ही, धान के खेतों का हाल दिखाते हुए हरीश रावत कहते हैं, ये बारिश किसानों के लिए तबाही लेकर आई है। रात का वक्त है, फिर भी जो खेत में स्थिति दिखाई दे रही है, धान तो सब बर्बाद हो गए हैं।

उन्होंने कहा, यदि और यह बारिश रही तो फिर 5-10 प्रतिशत भी धान नहीं बच पाएंगे। धान की खेती और जहां जिन इलाकों में दूसरी सब्जियां आदि थीं, वहां भी बर्बाद हो गई हैं तो इस समय हर तरीके से किसान को इस बारिश ने बहुत चोट पहुंचाई है।

रावत ने कहा, सरकार को चाहिए, इस नुकसान का आकलन करें और विशेष तौर पर खरीद केंद्रों पर धान जाए तो उसमें नमी और दूसरी त्रुटियां निकालकर उसकी खरीद को रिजेक्ट न किया जाए।

इससे पहली सोशल मीडिया पोस्ट में रावत, किसानों को न्याय दिलाने पर जोर देते हैं। उनका कहना है, उत्तराखंड सरकार गन्ने का खरीद मूल्य घोषित नहीं कर रही है।

वो लिखते हैं, दूसरी तरफ धान की खरीद केंद्र जहां हैं, वहां किसानों के धान में कई तरीके की त्रुटि दिखाकर उसको इधर-उधर भागने के लिए मजबूर किया जा रहा है, ताकि बिचौलिए ओने-पौने दाम पर उसके धान को खरीद सकें।

कहते हैं, इसके विरोध में, मैं अपने कांग्रेस के साथियों के साथ किच्छा शुगर मिल के सामने एक घंटा, सांकेतिक मौन उपवास पर बैठा। हमारा यह विरोध प्रदर्शन/मौन व्रत उस सरकार के प्रति जो किसानों की अनसुनी कर रही है।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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