Short story- Moral Values

नैतिकता की कहानीः प्यासा हिरन, भूखा व्यक्ति और बच्चा

एक समय की बात है। एक गरीब परिवार में छोटा बच्चा रहता था। वह जंगल से लकड़ी लाकर गांव में बेचता था। एक दिन जंगल से आते समय उसे एक बूढ़ा व्यक्ति मिला, जो भूखा था। बूढ़े व्यक्ति ने उससे कुछ खाना मांगा। बच्चे के पास खाना नहीं था, लेकिन वह उसकी मदद करना चाहता था। खाना नहीं होने की वजह से वह अपने रास्ता पर आगे बढ़ गया।

थोड़ी दूरी पर जाकर बच्चे ने एक हिरन को देखा, जो प्यासा था। पानी नहीं मिलने से परेशान हिरन को देखकर बच्चा काफी दुखी हुआ, लेकिन वह कुछ नहीं कर पा रहा था, क्योंकि उसके पास पानी नहीं था। बच्चा अपनी राह पर आगे बढ़ गया। तभी उसने देखा कि एक व्यक्ति कैंप लगाना चाहता था। उस व्यक्ति को कुछ लकड़ियों की जरूरत थी। बच्चे ने इस व्यक्ति को लकड़ियां दे दीं और बदले में पानी और खाना मांग लिया। खाना और पानी लेकर वह खुशी-खुशी बूढ़े व्यक्ति और हिरन के पास पहुंचा।

बच्चे ने हिरन और बूढ़े व्यक्ति की जरूरतों को पूरा किया तो दोनों बहुत खुश हो गए। बच्चा अपने घर चला गया। इस घटना के कुछ दिन बाद बच्चा लकड़ी की तलाश में एक जाते हुए जंगली खाले में गिर गया। वह दर्द से कराह रहा था। तभी उधर से जा रहे उसी बूढ़े व्यक्ति ने उसे देख लिया, जिसे उसने खाना खिलाया था। बूढ़े व्यक्ति ने बच्चे को तुरंत खाले से बाहर निकालकर उसको राहत देने की कोशिश की। बच्चे के हाथ और पैर में घाव हो गए थे।

अचानक ही वहां वह हिरन भी पहुंच गया,जिसे बच्चे ने पानी पिलाया था। हिरन ने तुरंत जंगल की ओर दौड़ लगाई और कुछ ही देर में जड़ी बूटियां लेकर वहां पहुंच गया। बूढ़े व्यक्ति ने बच्चे के घावों पर जड़ी बूटियों का लेप लगाया, जिससे उसका दर्द दूर होने लगा और घावों में राहत मिली। दोनों ने बच्चे को उसके घर तक पहुंचने में मदद की। बूढ़ा व्यक्ति और हिरन बच्चे की मदद करके काफी खुश हो रहे थे। इस कहानी का संदेश यह है कि अगर आप दूसरों की मदद करते हैं तो वे आपकी मदद के लिए हमेशा तैयार रहेंगे।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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