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पहाड़ की स्त्री

  • अनीता मैठाणी

क्या तुम जानते हो
जब तुम पहाड़ कहोगे
तुम एक स्त्री कहोगे
पहाड़ सा अचल कहोगे
तो भी, तुम एक स्त्री कहोगे।

जब तक मैं मिला नहीं था पहाड़ की स्त्री से
मैंने पहाड़ को पुल्लिंग संबोधित किया
जब तक मैंने
पहाड़ में पहाड़ सी ढली स्त्री को
देखा नहीं था।
मैं फिर कहता हूँ
मैंने पहाड़ को पुल्लिंग संबोधित किया था।

मैं गया तो था पहाड़ देखने
पर मैंने वहाँ पहाड़ी स्त्री को देखा
जो नख से शिख तक कतई स्त्री होते हुए भी
पहाड़ थी।
भीतर से कोमलांगी होते हुए भी
बाहर से अखरोट की तरह सख़्त थी।
मिजाज गर्म था उसका
तथैव
उसे श्रम और संघर्ष भी
पिघला ना पाए थे।

वो कृत संकल्प थी पहाड़ में जन्म के साथ
कठोर परिश्रम को।
उसके दिन रात बंटे थे
रोटी-भुज्जी-पानी और लकड़ी-घास के लिए।
घर-परिवार और गोरू-गौशाला के बीच
उसके पास अपने लिए कोई समय ही नहीं था।
फिर भी वो;
जब मर्जी, चुरा लेती, इन्हीं के बीच कुछ पल
इन्हीं पलों में जी लेती जिंदगी।

हंसी- ठठाओं में दंतपंक्ति दिखाती
छलका देती आंसू,
सारा सुख-दुःख खिन (खोदना) आती,
और ऊपर से भुरभुरा देती हंसी।
वो ज्यादा कुछ चाहती भी नहीं थी,
खुशी उसके लिए
किसी दिन पर्याप्त हरी घास का मिलना था
तो; किसी दिन लकड़ी के गट्ठर का भारी होना।

पहाड़ पर उतरते-चढ़ते
उसकी चाल कभी गजगामिनी सी नहीं होती
बल्कि हमे…शा… चपल मृग सी कुलांचे भरते दिखती।
घास और लकड़ी के संघर्ष में
वानर सी फुर्ती के साथ पेड़ों पर चढ़कर
नर्म पत्तों के टुक्के काट आती,
अपने मवेशियों के हिस्से की भूख को जीती
सपने भी उसको हरी घास के आते।

कभी वो बन में भालू और तेंदुए से
दो-दो हाथ करती मारी जाती और
कभी विजयी हो लौटती।
पेड़ की डाल से पैर फिसलने से चली जाती कभी
चट्टानों पर उसकी जान।
इतनी निडर होते हुए भी
जैसे ही दाखिल होती गाँव से होते हुए
घर के भीतर,
क्यूं चुप लगा लेती है।

 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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