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वह है हिन्दी

  • हेमचंद्र रियाल

एक लड़की अपना घर परिवार छोड़कर आ जाती है। वह युवा है, सुंदर है, लावण्यता है उसमें। पहली बार मिली वह हिन्दी से। दोनों के बीच अच्छी दोस्ती हो जाती है। हिन्दी भी सुंदर, लावण्यतायुक्त चेहरा लिए हुए है। उसमें भावुकता, सहृदयता, बुद्धिमता, श्रद्धा, करुणा, दया, सम्मान आदि का भाव है।

आंग्ला हिन्दी से कहती है, अरे हिन्दी मेरे पास न घर है, न रोटी है। मैं कैसे यहां आ गई। मुझे नहीं पता, वह मुझे लेकर आया, मैं उसका क्या नाम बताऊं। हिन्दी मेरी मदद कर दे। उसने मुझे बड़े सपने दिखाए थे, पर हिन्दी मैं क्या करूं। मुझे घर में जगह दे दो। मैं क्या बताऊं, मैं अपनी मां को पूछती हूं, हिन्दी ने कहा। आंग्ला बोली, मां कैसी होती है। हिन्दी बोली, मां अच्छी होती है, मां सुंदर होती है। तू जल्दी बात कर ले मां से। हिन्दी ने कहा, मुझे पता है, मां मना नहीं करेगी। मेरा घर बहुत बड़ा है। घर में हर दिशा में बड़े बड़े कमरे हैं। बागीचे हैं, झरने हैं घर में। घर देखकर तो तू बाग-बाग हो जाएगी, हिन्दी ने कहा।

हिन्दी अपनी मां संस्कृत से पूछती है। मां मेरी मुलाकात आंग्ला से हुई है। वह कौन है, मां पूछती है। हिन्दी ने कहा, मां वो बहुत सीधी लड़की है, जिसके पास न घर है, न रोटी है और वह किसी को नहीं जानती। मां ने सुना तो बोली, अरे बेटी ले आओ, जल्दी लाओ उसको। हिन्दी ने आंग्ला को घर में बुला लिया। उसने आंग्ला से कहा, मेरी मां कह रही है, जल्दी ले आओ उसको। घर में बहुत जगह है। मां तेरी मदद करनी चाहती हैं।

हिन्दी घर के गेट से भीतर दाखिल होती है और उसके साथ आंग्ला भी है। वह देखने में सुंदर है, लेकिन उसका अंतरभाव शुरू से बहुत अव्यावहारिक और रुढ़ है। अांग्ला का घर में प्रवेश होता है। आंग्ला का भाव व भाषा संस्कृत को समझ नहीं आते। संस्कृत मां है और मां ममता, मातृत्व व संसार की शक्ति है। आंग्ला अतिथि है और अतिथि देवो भवः की परंपरा का सम्मान करते हुए आंग्ला को घर में सम्मान दिया जाता है। उसे बेटी की तरह पुकारा जाता है।

आंग्ला सम्मान के बाद भी संस्कृत और हिन्दी से रुढ़ होकर व्यवहार करती है। वह हिन्दी से उसकी मां की शिकायत करती है। हिन्दी को तो मालूम है कि उसकी मां संस्कृत शालीन हैं, उनमें ममता का भाव विद्यमान है। हिन्दी संस्कृत की बेटी है, इसलिए उसमें भी मां के ही गुण हैं। वह भी अपनी मां की तरह संस्कारवान है। वह आंग्ला की बातों पर कोई ध्यान नहीं देती। वह आंग्ला को अतिथि मानकर उसका सम्मान करती है।

धीरे-धीरे आंग्ला और हिन्दी की दोस्ती गहरी होती जाती है। आंग्ला ने घर में अपना प्रभाव जमाना शुरू कर दिया। हिन्दी और आंग्ला की दोस्ती देखकर मां स्वयं हासिये पर चली जाती है। घर के कार्यों में भी आंग्ला का दखल बढ़ने लगता है। संस्कृत अपनी योग्यता, शालीनता को ध्यान में रखकर अपना काम करती रहती है। मां को हाशिये पर जाता देखकर हिन्दी की समझ में आता है, यह सब आंग्ला के व्यवहार से हो रहा है।

हिन्दी आंग्ला से पूछती है कि तुम मेरे घर में अपना प्रभाव क्यों जमा रही हो। वहीं संस्कृत आंग्ला को देखती रहती है कि उसका व्यवहार हिन्दी के साथ भी अच्छा नहीं है। लेकिन वह सोचती है कि एक दिन यह परिस्थिति सामान्य हो जाएगी। संघर्ष बढ़ता जाता है, आंग्ला घर के दक्षिण और पश्चिम वाले हिस्से पर अपना प्रभाव जमा लेती है। संस्कृत को बहुत दुख होता है। आंग्ला को आसपड़ोस के सभी लोग सम्मान देने लगते हैं। हिन्दी और संस्कृत अपने ही घर में उपेक्षित हो जाती हैं। हिन्दी व संस्कृत के व्यवहार, ज्ञान, योग्यता सहित कई गुणों की नकल करके आंग्ला अपने आप को मजबूत करती है। वह अपने प्रभाव को दिखाती है। वह संस्कृत और हिन्दी से कई बातें सीखती है।

संस्कृत एक दिन सफर करते हुए पुराने जानकार फ्रेंच से मिलती है। संस्कृत को देखकर फ्रेंच कहता है, आप कहीं देखे हुए लग रहे हो। संस्कृत ने पूछा, कौन मैं। फ्रेंच ने कहा,हां मैं आप ही की बात कर रहा हूं। नमस्तुभ्यं, आप संस्कृत तो नहीं हो। संस्कृत बोली, हां मैं संस्कृत हूं, पर आपने मुझे कैसे पहचाना। फ्रेंच ने कहा, आपके गुण, योग्यता, व्यवहार, सलीका, भाव प्रधानता आदि को देखकर।

फ्रेंच ने पूछा, आपके घर में कौन-कौन हैं। संस्कृत ने कहा, बहुत सारे लोग हैं घर पर। फ्रेंच ने पूछा, आपकी बड़ी बेटी हिन्दी क्या कर रही है। संस्कृत बोली, अभी कुछ नहीं कर रही। पहले यूएनओ ( संयुक्त राष्ट्र संघ) गई थी, अपने किसी प्रस्तुतीकरण के संदर्भ में। फ्रेंच ने खुश होकर कहा, वाह, आपको बधाई हो। संस्कृत ने कहा, वह यूएनओ की सदस्य बन गई है। लोगों ने उसे बहुत मान और सम्मान दिया है। बहुत अच्छा कर रही है हिन्दी।

फ्रेंच ने संस्कृत से पूछा, क्या आंग्ला भी आपके घर पर रहती है। संस्कृत बोली, हां वह हमारे ही घर पर रह रही है। आंग्ला हिन्दी के सम्मान को ठेस पहुंचा रही है। आंग्ला पूरे विश्व की भाषा बन रही है। वह पूजनीय हो रही है। फ्रेंच ने जवाब दिया, संस्कृत जी, पूजनीय वह होता है, जिसमें गुण होते हैं। जिसमें योग्यता होती है, भाव होता है। पूजनीय तो आप हो। आप दूसरों का सम्मान करती हो। आप और हिन्दी के प्रति मेरी सद्भावनाएं। आप साधुवाद की पात्र हो। हिन्दी और संस्कृत में पूरे विश्व का ज्ञान समाया है। जिसमें पूर्णता है, वह हैं हिन्दी और संस्कृत।

  • लेखक मनोवैज्ञानिक काउंसलिंग और शिक्षा के क्षेत्र में कई वर्षों से कार्य कर रहे हैं। 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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