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मैं टूट गई तो जिंदगी रूठ जाएगी

जब तक मैं हूं, इंसान तो क्या जानवर भी अपने होने का अहसास कराता है। जिस दिन, मैं टूट गई, कई लोगों की जिंदगी रूठ जाएगी, क्योंकि मैं जानती हूं वो मेरे सहारे ही जी रहे हैं। पूरा दिन बीत गया, शाम आ गई और फिर रात का अंधेरा। मैं उनके दिलों और अरमानों को रोशनी देने का काम करती हूं। उनके लिए एक और नई सुबह फिर से कुछ नया करने का भाव जगाती है कि आज तो कुछ अच्छा होगा। नई सुबह, नया उजाला और अरमान पूरे करने के लिए एक नई पहल,यह सब सोचते हुए फिर दिन,म और रात का खलल। मैं फिर भी तुम्हें एक और नई सुबह के लिए प्रेरित करती हूं और हमेशा करती रहूंगी, क्योंकि तुमने मुझे अपने भीतर,अपने दिल और दिमाग में जगह जो दी है। इसलिए मैं तुम्हारा हरदम साथ निभाऊंगी, क्योंकि जब तुम्हें मुझसे लगाव है तो मेरा भी कुछ फर्ज बनता है और मैं तुम्हें जिंदा रखूंगी, तुम्हारे लिए नहीं बल्कि अपने और तुम्हारे अपने लोगों के लिए।

मेरे होते अगर वो तुम्हें खो बैठे, तो मेरे पर से दुनिया का विश्वास उठ जाएगा। लोग कहेंगे कि अब तुम्हारे सहारे कौन और क्यों जीना चाहेगा। तुम तो धोखा दे रही हो। जो हम सोचते और करने की कोशिश करते हैं,तुम्हारे धोखे की वजह से कभी कुछ नहीं हो पाएगा। अगर तुम वाकई धोखा देती है तो लोग इंतजार भी नहीं करेंगे और दम तोड़ बैठेंगे। 

क्या तुम जानते हो कि मेरे सहारे दुनिया टिकी है, चाहे कोई राजा हो या रंक। इसलिए तो लोग कहते हैं कि उम्मीद कभी खत्म नहीं होनी चाहिेए। उम्मीद है कि सब कुछ ठीक हो जाएगा। बड़ी उम्मीद के साथ आपके पास आया हू्ं। मुझे उम्मीद है कि तुम मेरा साथ दोगे। मैं हमेशा संघर्ष में साथ देती हूं। मैं जीने का भाव जगाती हूं। मैं वो ऊर्जा हूं जो कमजोर हालातों में आपमें कुछ कर गुजरने का जज्बां पैदा करती हूं। मेरा बखान, कोई कोरी कल्पना या शब्दों का जाल नहीं है, बल्कि यह इंसानों के अनुभव का सारांश है। 

जब सब कुछ अच्छा नहीं था। दिनरात की दौड़भाग में शरीर बगावत करने लगा और मेरे खिलाफ लड़ाई में उसने डायबिटीज, हायपरटेंशन और हाईबीपी से हाथ मिला लिया। शरीर चाहता था कि उसको आराम दूं औऱ उसके लिए काम करूं। जिम्मेदारियों को निभाने के लिए आगे बढ़ना जरूरी था, पर शरीर मना करने लगा। डर यह भी था कि शरीर की बगावत और आसपास की साजिश सफल हो गई तो मेरा तो अस्तित्व खत्म हो जाएगा। बड़ा फैसला कर लिया कि अब उस काम को ही छोड़ दिया जाए, जिसकी वजह से सब कुछ उल्टा हो रहा है।

क्या आप जानते हैं कि मैंने अपनी आजीविका का एक मात्र जरिया नौकरी छोड़ने का बड़ा फैसला ले लिया। मेरे पास कोई काम नहीं था, लेकिन मुझे उम्मीद थी कि मैं कुछ नया कर लूंगा, जिससे मेरा शरीर और आसपास के लोग खुश रह सकें। जब आप जिनको अपना समझते हैं, वो ही आपके सामने बागियों सरीखी भूमिका में हों, तो यकीन मानिये आपके खिलाफ पनप रहा माहौल आप पर भारी पड़ सकता है। यही कुछ शरीर को लेकर मेरे साथ था।लेकिन मैंने जिस माहौल में नौकरी छोड़ी, वो बड़ा कष्टदायक था।

मैंने सबके सामने जिन शब्दों का सामना किया, वो कभी सोचे नहीं थे। कोई 20 साल की बेदाग सेवा पूरी करने के बाद ऐसा कुछ सुने और लोगों को सुनने का मौका दे, इससे ज्यादा बुरा किसी इंसान के लिए नहीं हो सकता। इंसानों से इतर कोई और हो तो मैं नहीं कह सकता लेकिन मैं नहीं सुन सकता था। सच मानिये, दिल कर रहा था कि अभी जोर-जोर से रोकर इस अपमान से पैदा हुए मैल को धो डालूं। मैंने ऐसा कोई अपराध नहीं किया था, जिसकी मुझे सरेआम अपशब्दों के जरिये सजा दी गई। लेकिन उम्मीद के सहारे पैदा हुए साहस ने मुझसे कहा- रोने का नहीं बल्कि किसी नई शुरुआत का वक्त है। जागो और आगे बढ़ो।

सच मानिये इंसान होने के नाते बहुत दुख हुआ था, लेकिन उम्मीद ने मेरे भीतर उन सभी वजहों को एकजुट कर दिया, जो मुझे सकारात्मक तरीके से जीने में मदद कर रही हैं। एक बार तो लगा कि 43 साल की आयु में फिर से वहीं आकर खड़ा हो गया, जहां 23 साल की उम्र में था। अब तो तेरे ऊपर जिम्मेदारियां हैं, तब ऐसा कुछ नहीं था, क्या करेगा। यह नकारात्मक विचार एक नहीं कई बार दिलोदिमाग को झकझोरने लगे। लगा कि दुनिया छोड़ दूं, फिर अपनी जिम्मेदारियों का ख्याल आया और एक बार फिर उम्मीद मेरे कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी हो गई। 

आज नौ माह बाद मैं लगभग उसी मुकाम पर पहुंच गया हूं, जहां पहले था। मुकाम का मतलब उस रकम से है, जो मुझे नौकरी में तनख्वाह से मिलती थी, लेकिन सुकून नहीं था। टेंशन के दौर से बाहर आकर अपनी जिंदगी जी रहा हू्ं। मैंने शुरुआती छह माह तकलीफें झेलीं, लेकिन मैं और मेरा परिवार इसके लिए पहले से मानसिक तौर पर तैयार था और रोजाना सुबह एक उम्मीद के सहारे उठते थे कि आज शाम तक कुछ अच्छा हो जाएगा। शाम को ट्यूशन पढ़ाने के लिए दूरस्थ गांव में इस उम्मीद के साथ जाता था कि शायद आज कुछ और नये बच्चे ट्यूशन क्लास में दाखिला ले लें। शुरू में दो और फिर दो-दो करते मेरे पास 30 बच्चे ट्यूशन के लिए आने लगे। मैंने ट्यूशन का समय बढ़ा दिया और इस उम्मीद से और मेहनत करने लगा कि अगले सत्र में बड़़े स्तर पर ट्यूशन सेंटर शुरू करूंगा। मैंने घर-घर जाकर भी ट्यूशन पढ़ाई। हालांकि बाद में मुझे एक सांध्य अखबार और वेबसाइट आपरेशन का काम मिल गया। वहां से आजीविका चल रही हैं और कुछ और नया करने के लिए वक्त मिल गया। 

आज अपना न्यूज पोर्टल भी चला रहा हूं और उम्मीद है कि मेरे पास मौजूद यह सब काम मुझे तरक्की की ओर ले जा रहे हैं। साथ ही शरीर अब बगावत नहीं कर रहा है और मैंने डायबिटीज को बाय-बाय कह दिया है। औरों की खींची गई लाइन को बिना मिटाए छोटा करने में लगा हूं, क्योंकि मैं अब उम्मीदों के सहारे लंबी लाइन खींचने में जो लगा हूं। इसमें उन लोगों ने मेरा साथ दिया है, जो वाकई उन्नतशील सोच और सकारात्मक व्यवहार के धनी हैं। मैंने यह कहानी इसलिए साझा नहीं की कि मैं बहुत दलेर व्यक्ति हूं, जो बुरे वक्त से नहीं घबराता। मैं ऐसा कतई भी नहीं हूं, लेकिन मेरा सकारात्मक पक्ष है- उम्मीदों को कभी भी नहीं खोना। उनके सहारे आज, कल और फिर कल प्रयास करते रहना। एक दिन आपका होगा। उम्मीद मत खोना दोस्तों, यह जीना सिखाती है सफल बनाती है। 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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