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Hydroponics से रोजगार को समझना है तो गणेश बिष्ट से मिलिए

भानियावाला से ऋषिकेश या हरिद्वार की ओर बढ़ने के साथ-साथ कई किलोमीटर तक आप टिहरी विस्थापित क्षेत्र से होकर सफर कर रहे होते हैं। यहीं है सुनार गांव, जो बेहद खूबसूरत इलाका है, जहां न तो शोर हैं और न ही शहर की तरह प्रदूषण। यहां काफी हद तक आप स्वयं को प्रकृति के करीब पाते हैं।

रविवार को तक धिनाधिन की टीम सुनार गांव में गणेश सिंह बिष्ट जी के घर पर पहुंची। हम खेती की आधुनिक तकनीक हाइड्रोपोनिक्स के बारे में कुछ जानना चाहते थे। हालांकि मैंने पहले हाइड्रोपोनिक्स तकनीक के बारे में काफी कुछ सुना था पर इससे रू-ब-रू होने का मौका नहीं मिल पाया था।

पर्यावरण के क्षेत्र में काम कर रही दृष्टिकोण समिति के संस्थापक मोहित उनियाल के साथ हम बिष्ट जी के आवास पर पहुंचे। हमारे कुछ सवाल थे कि बिना मिट्टी के खेती कैसे संभव है। मिट्टी नहीं होगी तो पौधे पोषक तत्व कहां से लेंगे। बंद कमरे में पौधों की ग्रोथ कैसे हो सकती है। आखिर हाइड्रोपोनिक्स तकनीक की जरूरत क्यों है। इन्हीं कुछ सवालों पर बिष्ट जी से बातचीत की।

पहले हम आपको गणेश सिंह बिष्ट के बारे में कुछ बता दें। गणेश सिंह पौड़ी गढ़वाल की बदलपुर पट्टी के रहने वाले हैं। ग्रेजुएशन बादशाही थौल परिसर से की। दिल्ली में प्लानिंग कमीशन और कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री के उपक्रम कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री डेवलपमेंट काउंसिल(सीआईडीसी) में जॉब की। 2013 में जॉब छोड़कर उत्तराखंड लौट आए।

गणेश कृषि की उन तकनीक पर काम करना चाहते थे, जो स्वरोजगार के मुफीद होने के साथ ही जैविक खेती के बहुत नजदीक हो। तेजी से विकसित होते अपार्टमेंट कलचर को भी ध्यान में रखा जाए, ताकि लोग जमीन नहीं होने के बाद भी किचन गार्डन तैयार कर सकें। ताजी सब्जियां खाएं, जिनमें सेहत के लिए हानिकारक कैमिकल न हों। जो भी कुछ हम खा रहे हैं, उनमें पोषक तत्व संतुलित मात्रा में हों तो रोगों की आशंका काफी कम हो जाती है। बिष्ट खेती में रसायनों के इस्तेमाल पर रोक की भी पैरोकारी करते हैं।

हाइड्रोपोनिक्स क्या है, पर उनका जवाब था कि यह इजरायल की तकनीक है। इस खेती में पानी का इस्तेमाल होता है, वो भी उतना नहीं, जितना कि आम तौर पर हम करते हैं। इसमें मिट्टी का उपयोग नहीं होता। मिट्टी की जगह लिका बॉल्स का इस्तेमाल होता है, जो मिट्टी के ढेलों की तरह दिखती हैं और हल्की होती हैं। पर, इनको मिट्टी की ही गोलियां कहा जाए तो गलत नहीं होगा, ऐसा मेरा मानना है।

प्लास्टिक के गोल पाइपों में पौधों के लिए जगह बनाई जाती है और इन पाइप में पानी सर्कुलेट होता है। पानी में उन पोषक तत्वों को मिलाया जाता है, जो पौधों के लिए आवश्यक होते हैं। इसमें पौधों को उतना ही पानी मिलता है, जितना कि उनके लिए जरूरी है। होता यह है कि हम घरों पर सब्जियां या अन्य उत्पादों को आवश्यकता से अधिक पानी देते हैं, जिससे पौधों पर प्रतिकूल असर पड़ता है।

हाइड्रोपोनिक्स के तहत डच बकैट तकनीकी में पांच बड़ी बकैट में उगाए जा रहे पौधों को 25 दिन में मात्र एक बाल्टी पानी ड्रिप हो पाता है, जो उनके लिए पर्याप्त है। पर घरों में हम देखते हैं कि रोजाना इतने ही पौधों को एक बाल्टी पानी दे दिया जाता है।

बताते हैं कि लिका बॉल्स में केवल वही पौधा उगता है, जो लगाया जाता है, वहां खरपतवार के लिए कोई जगह नहीं है। ऐसे में निराई गुड़ाई की जरूरत नहीं होती। इनकी वजह से पौधे सीधे खड़े रहते हैं। पौधों में रोग लगने की आशंका काफी कम है। पॉलीहाउस में कम जगह में इस खेती को किया जा सकता है, यह वर्टिकल फार्मिंग को भी बढ़ावा देती है। पॉली हाउस इसलिए क्योंकि पौधों को डायरेक्ट सन लाइट नहीं दी जाए। आप रैक बनाकर पौधों को उनमें रख सकते हैं। दीवारों के सहारे पाइपों को फिटिंग करके हाइड्रोपोनिक्स खेती की जा सकती है।

अगर आपके पास पॉली हाउस नहीं है तो कमरे भी खेती की जा सकती है। कमरे में सूर्य की रोशनी नहीं पहुंचेगी, जबकि सूर्य की रोशनी पौधों की ग्रोथ के लिए उतना ही जरूरी है, जितना हमारे लिए आक्सीजन और पोषक तत्व। इस पर उनका कहना है कि यहां एयरो पोनिक्स तकनीक का इस्तेमाल करते हैं, जिसके तहत बंद कमरे में आप विशेष प्रकार की एलईडी लाइट लगा सकते हैं, जो पौधों के लिए उतना ही कार्य करेगी, जितना कि सूर्य की रोशनी। क्योंकि हमें पौधों के लिए सूर्य की सीधी रोशनी की आवश्यकता नहीं है।

बिष्ट जी कहते हैं कि पहाड़ में, जहां कृषि वर्षा जल पर निर्भर करती है, में हाइड्रोपोनिक्स फार्मिंग का बड़ा स्कोप है। घरों के लिए सब्जियां ही नहीं बल्कि कामर्शियल स्तर पर ब्रोकली, चाइव्स, जो हरे प्याज की तरह दिखती है, पिज्जा बनाने में इस्तेमाल होने वाली ऑरिगैनो (अजवायन) की पत्तियां, गोभी पालक, चैरी टोमेटो (छोटे टमाटर) सहित अन्य कृषि उत्पाद तैयार कर सकते हैं, जिनकी होटल्स, होटल मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट्स, रेस्त्रां में काफी मांग होती है, का उत्पादन किया जा सकता है।

जल बचाने के साथ यह स्वरोजगार का अच्छा साधन साबित हो सकता है। हाइड्रोपोनिक्स तकनीक को स्थापित करने में एक बार ही खर्चा होता है। शहरों में अपार्टमेंट में रह रहे परिवार, जिनको बागवानी का शौक है, उनके लिए यह तकनीक काफी हद तक सही है।

बिष्ट जी ने अपने घर की दीवारों पर प्लास्टिक की इस्तेमाल बोतलों में चैरी टोमाटो, पालक, अजवायन, कुछ फूल पत्तियों के पौधे लगाए हैं। मिट्टी और सीमेंट के गमले नहीं हैं तो प्लास्टिक शीट के बैग्स में पौधे उगाए हैं।

उन्होंने कॉमर्शियल लेवल पर हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से खेती की तैयारी की है। पॉली हाउस तैयार किया जा रहा है। बिष्ट जी, इस तकनीक का प्रशिक्षण भी देंगे, ताकि लोग जगह की कमी के बाद भी खेती से स्वरोजगार से आमदनी हासिल कर सकें।

दृष्टिकोण समिति के संस्थापक मोहित उनियाल ने हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से युवाओं को स्वरोजगार पर बात की। इसकी लागत से लेकर उन तमाम संसाधनों और उपायों पर भी बात की गई, जो कृषि विकास में सहायक हो सकती हैं। तक धिनाधिन की इस कड़ी को कैमरे में कवर किया सक्षम पांडेय ने। इस दौरान अंकित भी उपस्थित रहे। अंकित भारतीय सेना में हैं और इन दिनों जम्मू कश्मीर में तैनात हैं। बिष्ट जी से बातचीत का वीडियो हम जल्द ही आपसे शेयर करेंगे। तब तक के लिए बहुत सारी खुशियों और शुभकामनाओं का तकधिनाधिन।

 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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