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महाराष्ट्र में मिले लौह कालीन बस्ती के प्रमाण

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने महाराष्ट्र के फूपगांव में हाल ही में उत्खनन किया है। इस खुदाई में विदर्भ क्षेत्र में लौह कालीन बस्‍ती होने के प्रमाण मिले हैं। यहां दिसंबर, 2018 और मार्च, 2019 के बीच खुदाई की गई।

एएसआई की टीम ने महाराष्ट्र के अमरावती जिले के फूपगांव के चंदर बाज़ार से पूर्णा बेसिन के दरियापुर के बीच गहन सर्वेक्षण किया। यह जगह तापी की प्रमुख सहायक नदी पूर्णा नदी के विशाल घुमावदार मार्ग में है, जो बारहमासी नदी हुआ करती थी, लेकिन वर्तमान में ऊपरी धारा में बांध का निर्माण हो जाने के कारण पूरी तरह सूख चुकी है। यह नदी के तल से लगभग 20 मीटर की दूरी पर है और पुराने जमाने में पानी की तेज धार के कारण इसके एक तिहाई हिस्से में बार-बार भूमि कटाव होता था।

कुल नौ खाइयों में खुदाई की गई, जिनसे मकान और चूल्हा, पोस्ट-होल और कलाकृतियों जैसे अवशेष मिले। खुदाई के दौरान चार पूर्ण गोलाकार संरचनाएं मिली। उत्खनन से एगेट-कारेलियन, जैस्पर, क्वार्ट्ज और एगेट जैसे मोतियों की भी बड़ी मात्रा का पता चला। सभी खाइयों से लोहे, तांबे की वस्तुएं भी एकत्रित की गई हैं। बर्तनों के टूटे हुए टुकड़ों पर बड़ी मात्रा में भित्तिचित्रों के निशान मिले हैं।

एएसआई का मानना है कि फूपगांव में खुदाई ने पूर्णा नदी बेसिन के लौह युगीन लोगों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की है। कालक्रमानुसार इस स्‍थान को 7 ईसा पूर्व और 4 ईसा पूर्व के बीच रखा जा सकता है। हालांकि, विदर्भ के लौह युग के और पहलुओं को उजागर करने के लिए इस स्‍थल का कालक्रम के अनुसार विस्तृत अध्ययन किया जा रहा है।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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