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क्या शॉपिंग भी एक नशा है तो जानिये कैसे बचें

जमाना बदल रहा है और आपको खाने पीने के सामान से लेकर कुछ भी खरीदने के लिए बाजार जाने की जरूरत नहीं है। यहां तक कई बड़े शहरों में सब्जियां भी ऑन डिमांड घरों तक पहुंच रही हैं। ऑनलाइन शॉपिंग और क्रेडिट कार्ड ने खरीदारी की आदत को बढ़ाया है। मध्यम से लेकर हाई इनकम ग्रुप के अधिकतर लोगों के लिए खरीदारी उस लत की तरह बढ़ती जा रही है, जिसे सामान्य तौर पर कोई गंभीरता से नहीं लेता। अधिक आय के बाद भी अधिकतर लोगों के सामने हमेशा आर्थिक दिक्कतों को गिनाते देखे जा सकते हैं। लोग लोन चुकाने की चिंता में रहते हैं। कुल मिलाकर यह कहना है कि अगर खरीदारी की आदत आपकी वित्तीय स्थिति, रिश्तों और भविष्य की योजनाओं पर नकारात्मक प्रभाव डालती है तो इस समस्या को दूर करने की जरूरत है।

मेलबोर्न विश्वविद्यालय में फ्लोरि इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरो साइंस और मेंटल हेल्थ के डॉ. रॉबिन ब्राउन के हवाले से हफिंगटन पोस्ट में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि शॉपिंग की आदत अभी डायग्नोस्टिक मैनुअल में उपलब्ध नहीं है। इसको अधिकारिक तौर पर उन बुरी आदतों के तौर पर चिह्नित नहीं किया गया है, जो अनियंत्रित होकर किसी के जीवन पर नकारात्मक प्रभाव डालती हैं।

डॉ. ब्राउन उन लोगों के व्यवहार को समझ रहे हैं, जो किसी न किसी आदत से ग्रस्त हैं। वो उनकी नियमित गतिविधियों का अध्ययन कर रहे हैं, जैसे- ये लोग क्या खा रहे हैं और क्या खरीद रहे हैं। डॉ. ब्राउन कहते हैं कि रोजाना कुछ न कुछ खाने औऱ खरीदारी की आदत समस्या बन सकती है। इस तरह की आदत वाले व्यक्तियों को पहचानकर उनको उपचार देना और उनका समर्थन हासिल करना अधिक चुनौतीपूर्ण और कठिन काम है, क्योंकि यह उन सामान्य गतिविधियों का हिस्सा हैं, जो रोजाना होती हैं।

उदाहरण के तौर पर यदि कोई व्यक्ति यह कहे कि उसको नशे की दवा खाने की आदत पड़ गई है, तो यह बात गंभीर समस्या और चिंता के रूप में देखी जाएगी। लेकिन यदि कोई यह कहे कि उसको शॉपिंग की लत पड़ गई और उसको मॉल जाने से बचना होगा, इस बात को शायद उतनी गंभीरता से नहीं लिया जाएगा। इस बात की ज्यादा संभावना है कि उसके मित्र उसको मॉल न जाने के निश्चय में सहयोग न करें और उसको फिर से खरीदारी शुरू करने की सलाह दें। ऐसा हो सकता है, क्योंकि खरीदारी को सामान्य गतिविधि के तौर पर स्वीकार किया जाता है।

इंटरनेट पर अधिक समय बिताने की आदत भी शॉपिंग और अन्य आदतों को बढ़ावा दे रही है। यह अनहेल्दी शॉपिंग को भी बढ़ावा देती है, जिसका बैंक एकाउंट के बैलेंस पर भी प्रभाव पड़ रहा है। हम यह नहीं कह रहे हैं कि इंटरनेट पूर्ण रूप से इस तरह की समस्याओं की वजह है। इंटरनेट के कई उपयोग हैं, लेकिन वो तब हैं, जब वह हम उस पर अपनी बेहतरी के लिए काम करते हैं, सूचनाएं और जानकारियां लेने के लिए इस्तेमाल करते हैं।

इंटरनेट हमें कहीं से भी, कभी भी शॉपिंग करने की सहूलियत देता है। फैशन के दौर में शॉपिंग की लत समस्या बनती जा रही है। टीवी, वेबसाइट और सोशल मीडिया पर उत्पादों के विज्ञापन शॉपिंग के लिए प्रेरित कर रहे हैं और वेबसाइट हमारे लिए किसी शॉपिंग मॉल, शोरूम या स्टोर की तरह काम करते हैं। ऑनलाइन शॉपिंग में क्रेडिट कार्ड किसी उत्प्रेरक की तरह होते हैं। खरीदार अक्सर यह सोचते हैं कि 1000 या 2000 का प्रोडक्ट ही तो है, इसको खरीदने में क्या नुकसान है या क्या हो जाएगा। यही सोच ज्यादा से ज्यादा कभी कभी अनावश्यक खरीदारी को बढ़ावा देती है। ये कुछ उपाय हैं, जो अनावश्यक खरीदारी की आदत से बचा सकते हैं-

बार-बार क्रेडिट कार्ड से खरीदारी करने से बचें- अगर आप कैश देकर खरीदारी करते हैं तो आपको सही तौर पर अहसास होगा कि आपने कुछ खर्च किया है। जबकि क्रेडिट कार्ड से सामान्य तौर पर ऐसा अहसास नहीं होता। खरीदारी के लिए जाते समय हो सके तो क्रेडिट कार्ड को घर छोड़ जाएं। अपने बजट के अनुसार पैसा लेकर बाजार जाएं। क्रेडिट कार्ड इमरजेंसी और बड़ी खरीदारी के लिए इस्तेमाल करें तो बेहतर होगा।

खरीदारी को प्लान करें- अक्सर देखा गया है, जो उत्पाद पसंद आ गया, उसको खरीदने में देरी नहीं लगती। लेकिन खरीदारी को प्लान किया जाए। अगर ऑनलाइन शॉपिंग कर रहे हैं, तो दूसरी साइटों पर जाकर भी उस वस्तु के रेट की तुलना करें। तुरंत शॉपिंग की आदत से बचें और खरीदारी को प्लान करें।

शॉपिंग से पहले कुछ देर इंतजार करें- अक्सर कोई भी प्रोडक्ट पसंद आते ही लोग तत्काल खरीदारी कर लेते हैं। ऐसा अक्सर होता, क्योंकि इस दौरान कई लोग यह भी नहीं समझते कि इस वस्तु की उनको कितनी जरूरत है या जितने दाम चुकाने हैं, उतनी कीमत है भी या नहीं। इस समझ को विकसित करने के लिए दस मिनट इंतजार का नियम अपनाना चाहिए। इस समय में प्रोडक्ट की आवश्यकता और रेट को लेकर खुद से मंथन किया जा सकता है।

फोन और टैबलेट पर ऑनलाइन शॉपिंग से बचें- फोन और टैबलेट पर प्रोडक्ट को टच करते ही आपको अक्सर यह अहसास होता है कि यह वस्तु अब आपकी हो गई है। यह ज्यादा शॉपिंग की संभावनाओं को बढ़ाती है। इसलिए ऑनलाइन शॉपिंग के लिए डेस्क टॉप या लैपटॉप को इस्तेमाल करें।

खरीदारी से पहले जानो कि यह प्रोडक्ट आपके लिए कितना जरूरी है- पहली बार में पसंद में आए प्रोडक्ट को आवेग में आकर खरीदने से बचने के लिए आपको समझना होगा कि यह वस्तु आपके लिए कितनी जरूरी है। कुछ देर के लिए आंखें बंद करके कल्पना करें कि अगर यह प्रोडक्ट आपके पास एक हफ्ते नहीं होगा,तो आपकी जिंदगी कैसी होगी। इसके बिना आपका कोई कार्य कितना दिक्कत वाला होगा या नहीं।

खरीदारी से पहले सामान की लिस्ट बनाओ, मॉल में सामान इक्टठा करने के लिए हमेशा छोटी ट्राली का चयन करें या खरीदारी की लिस्ट के हिसाब से ट्राली लें। अपने पास पहले से उपलब्ध वस्तुओं को देखकर खुश होना सीखें और स्वयं पर गर्व करें।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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