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घुटनों के दर्द के कारण और निवारण

लोग अक्सर घुटनों में दर्द की शिकायत करते हैं। 35 वर्ष आयु पार के लोगों में अर्थराइटिस की समस्या सामने आ रही है। बुजुर्गों के साथ तो यह दिक्कत आम हो गई है। होता यह है कि हमारे चलने के दौरान घुटने गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध काम करते हैं। इसलिए इस पर असर पड़ता है। ज्यादा आयु के लोगों के घुटनों पर अधिक असर पड़ चुका होता है और वो काफी नुकसान झेल चुके होते हैं। घुटनों में दर्द के अन्य कई कारण हो सकते हैं। कुछ खास वजह पर चर्चा करते हैं। 

घुटने की हड्डियों की कवच की तरह रक्षा करने वाली कार्टिलेज टूटने से ऑस्टियोपो‍रोसिस की शिकायत होती है। कार्टिलेज टूटने से घुटने में दर्द होता है। सही समय पर इलाज के अभाव में दर्द बढ़ने की आशंका भी बढ़ती जाती है। 65 साल से अधिक आयु के लोगों में ऑस्टियोपो‍रोसिस की आशंका ज्यादा होती है। विशेषज्ञों के अनुसार अधिक उम्र के अधिकतर लोगों में घुटने में दर्द की बड़ी वजह ऑस्टियोपो‍रोसिस है। 

मोटापा यानी अधिक वजन होने की वजह से घुटनों पर काफी दबाव बनता है। पूरे शरीर का वजन घुटनों को ही सहना पड़ता है। ऐसी स्थिति में घुटनों में दर्द की शिकायत होती है। 60 से अधिक आयु और वजन अधिक होने की स्थिति में घुटनों के जोड़ों पर काफी दबाव पड़ चुका होता है। इस वजह से ऑस्टियोपो‍रोसिस का खतरा भी बढ़ जाता है। वजन घटाना है तो यह बात जरूर जानिये

युवावस्था से वृद्धावस्था की आयु के बीच शरीर की मांसपेशियां सिकुड़ने लगती हैं। इससे मांसपेशियों की ताकत कम होती जाती है। आयु के साथ मांसपेशियों में बदलाव की वजह से हमारे पैरों पर ज्यादा दबाव पड़ता है। ऐसी स्थिति में घुटनों में दर्द होता है। 

ये तरीके अपनाकर बचें घुटनों के दर्द सेः सतर्कता और छोटी-छोटी पहल से आप शारीरिक दिक्कतों से बच सकते हैं। कुछ बातों का ध्यान रखें और घुटनों में होने वाले दर्द से राहत पा सकते हैं या फिर दर्द को कुछ कम कर सकते हैं। कुछ उपाय बताए जाते हैं, जो राहत देंगे। नींबू के छिलकों में है घुटनों के दर्द से लड़ने की ताकत

अधिक मोटापा बीमारियों की वजह है। माेटापे में वजन ज्यादा होने से घुटने के ऑस्टियोपो‍रोसिस का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे में वजन कम करने की ओर ध्यान दें। इससे आपको काफी राहत मिलेगी। 

शारीरिक रूप से फिट रहने के लिए डॉक्टर एक्सरसाइज पर जोर देते हैं। इससे मांसपेशियां भी मजबूत होती हैं। पैदल चलना घुटने के अर्थराइटिस के मरीजों के लिए फायदेमंद हो सकता है। लेकिन इसके लिए अपने डॉक्टर से राय जरूर लें और उनके मार्गदर्शन के अनुसार ही कार्य करें। 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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