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बच्चों को बुद्धिमान बनाने घर को साफ रखें

अगर आप अपने बच्चों को पढ़ने में तेज और बुद्धिमान बनाना चाहते हैं तो अपने घर को साफ रखें। क्योंकि घरेलू धूल मतलब घर की गंदगी घर के लोगों के लिए जहरीले रसायनों के समान साबित होती है। इस बात की पुष्टि एक अध्ययन में की गई है। इस रिसर्च टीम ने अपने आप का एक पहली बार का मेटा-विश्लेषण किया, जिसमें घरेलू धूल के टॉप टेन सेम्पल की तुलना उन चॉक्सिक केमिकल से की गई जो सामान्य तौर में धूल में पाए जाते हैं।

इन्होंने डीईएचपी का पता लगाया जो एक खतरनाक वर्ग से संबंधित रसायन है जिसे फैलेट्स कहते हैं। ये घरेलू धूल में पाया गया पहला टॉक्सिक केमिकल है। जहां पर बहुत अधिक मात्रा में धूल थी वहां फैलेट्स की मात्रा बहुत अधिक थी।

मुख्य शोधकर्ता एमी जोटा ने कहा, “हमारी स्टडी घरेलू धूल में पाए जाने वाले केमिकल डस्ट पर की गई अपने तरह की पहली कॉम्परिहेंसिव एनालिसिस स्टडी है। स्टडी के अनुसार जब लोग, विशेषकर बच्चे, इन घरेलू गंदगी के संपर्क में लगातार आते हैं तो उनमें खास और गंभीर तरह की स्वास्थ्य समस्याएं पैदा होने की संभावनाएं होती हैं।”
घर में पाए जानेवाले प्रोडक्ट्स से केमिकल रिलीज होकर हवा के संपर्क में आते हैं और घर की धूल में मिल जाते हैं।

इसके बाद इस घरेलू गंदगी में पाए जाने वाले छोटे-छोटे धूल के कण लोग सांस लेते और छोड़ते समय अवशोषित करते हैं। कुछ पार्टिकल्स तो त्वचा द्वारा अवशोषित किए जाते हैं। इसके अलावा ये गंदगी फ्लोर में भी होती है जिस पर बच्चे खेलते वक्त हाथ रख देते हैं और अनजाने में हाथों में लगी ये धूल फिर मुंह के रास्ते शरीर के अंदर जाती है या आंखों को हाथों से रगड़ने पर आंखों को बीमार करने का कारण बनती है।

ये स्टडी 14 राज्यो और घरों में की गई है। इसके अलावा इसमें 26 पीआर-रिव्यु पेपर्स को भी शामिल किया गया है। इन्होंने 45 टॉक्सिक केमिकल जैसे विनाइल फ्लोरिंग, का पता लगाया है जो घर के प्रोडक्ट्स में सामान्य तौर पर इस्तेमाल किए जाते हैं। बाद में यही केमिकल घरेलू धूल में मिलकर घर में रहने वाले इंसानों के स्वास्थ्य पर असर डालते हैं।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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