Khalsa Furniture

खालसा फर्नीचर मार्ट को उत्तराखंड रत्न अवार्ड

बेहतर गुणवत्ता और उम्दा ग्राहक सेवा के लिए सम्मानित किया गया
उत्तराखंड में विश्वास का दूसरा नाम खालसा फर्नीचर मार्ट को दैनिक जागरण उत्तराखंड रत्न अवार्ड 2018 से सम्मानित किया गया। समाज के लिए अभिनव पहल करने वाली हस्तियों और संस्थानों को उत्तराखंड के वन एवं पर्यावरण मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत ने सम्मानित किया। खालसा फर्नीचर मार्ट को बेहतर क्वालिटी और उम्दा ग्राहक सेवा व संतुष्टि के लिए पहले भी सम्मान हासिल हो चुके हैं। आईएसओ-9001 से प्रमाणित खालसा फर्नीचर मार्ट को अक्तूबर 2015 में उत्तराखंड के कैबिनेट मंत्री हरीश चंद्र दुर्गापाल खालसा ने स्वयं डोईवाला पहुंचकर सम्मानित किया था। यह सम्मान संस्थापक सरदार हरभजन सिंह को  फर्नीचर उद्योग में स्वरोजगार देने के लिए  प्रदान किया गया था।
खालसा फर्नीचर के निदेशक सुरेंद्र सिंह खालसा ने बताया कि देहरादून जिले के डोईवाला ब्लाक के छोटे से गांव धर्मूचक में किसान सरदार हरभजन सिंह ने 1980 में खालसा फर्नीचर मार्ट की स्थापना की थी। सरदार हरभजन सिंह ने मेहनत और लग्न के साथ फर्नीचर उद्योग में मिसाल कायम की। क्वालिटी वाले फर्नीचर से संतुष्ट ग्राहकों ही हमारी पब्लिसिटी का माध्यम बने। हमें आगे बढ़ाने में ग्राहकों का बड़ा योगदान है। उन्होंने अन्य लोगों के सामने फर्नीचर की तारीफ की। देहरादून, ऋषिकेश सहित आसपास के शहरों से ग्राहक धर्मूचक तक आने लगे। बढ़ती लोकप्रियता ने डोईवाला में खालसा फर्नीचर मार्ट का शोरूम और कारखाना खोला गया।
अक्टूबर, 2015 में कैबिनेट मंत्री हरीश चंद्र दुर्गापाल खालसा फर्नीचर मार्ट के शुगर मिल रोड, डोईवाला स्थित शोरूम और कारखाने पर पहुंचे। उन्होंने बताया कि देहरादून में किसी ने उनको खालसा फर्नीचर उद्योग की जानकारी दी थी। उन्हें जानकार बड़ी खुशी हुई कि डोईवाला जैसे छोटे शहर का एक फर्नीचर उद्योग राज्य के बड़े शहरों में ख्याति हासिल कर रहा है। उन्होंने खालसा फर्नीचर मार्ट में अनुभवी स्थानीय कारीगरों को रोजगार मिलने पर भी प्रसन्नता व्यक्त की।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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