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शेर को लात मारकर चलती बनी लोमड़ी

वो दिन जंगल के राजा शेर का सबसे खराब दिन था, जिस दिन एक लोमड़ी ने उसको एक नहीं पूरी पांच किक मारीं और वह कुछ भी नहीं कर सका। हुआ यह कि शेर कुछ थका हुआ था। सुबह-सुबह उसने एक खरगोश को अपनी गुफा के पास घूमते हुए देखा। शेर न सोचा, ज्यादा दूर नहीं जाना पड़ेगा, चलो ब्रेकफास्ट का इंतजाम तो हो ही गया। उसने खरगोश को पकड़ना चाहा, लेकिन चालाक खरगोश गच्चा देकर भाग गया।

खरगोश को पकड़ने के लिए शेर ने जैसे ही छलांग लगाई, वह झाड़ियों में गिर गया। झाड़ियों से बाहर निकलने के चक्कर में उसके पंजे में कांटा लग गया। दर्द के मारे शेर तड़पने लगा। उधर, उसे खरगोश भी हाथ नहीं लगने का गम सता रहा था। शेर को दर्द से कराहता हुआ देखने के बाद भी जानवर उसकी कोई मदद नहीं कर पा रहे थे। शेर ने अपने पंजों से कांटा निकालने की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हो सका।

उसने मदद के लिए जानवरों से विनती की, लेकिन दहशत के कारण कोई उसके पास जाने को तैयार नहीं था। दोपहर हो गई, शेर से दर्द सहन नहीं हो रहा था। शेर ने वहां से गुजर रही लोमड़ी से गुजारिश की, उसकी मदद कर दे। चालाक लोमड़ी ने कहा, देखो- तुम्हारी मदद तो कर दूंगी, लेकिन तुम्हें मेरी एक शर्त माननी होगी। शेर ने पूछा, कैसी शर्त, जल्दी बताओ, मैं तुम्हारी हर बात मानने को तैयार हूं। पर मेरे पंजे से यह कांटा निकाल दो।

लोमड़ी ने कहा, मैं तुमसे लजीज भोजन और पैसे नहीं मांग रही। इसलिए घबराओ तो बिल्कुल भी नहीं। लाचार शेर ने कहा, तुम बताओ तो सही, क्या चाहिए। लोमड़ी ने कहा, कांटा निकलवाने से पहले तुम्हें मेरी पांच किक खानी होंगी। शेर ने गुस्से में दहाड़ते हुए कहा, क्या तुम जानती हो, किससे बात कर रही हो। शायद तुम नहीं जानती, मैं इतना भी मजबूर नहीं हुआ हूं कि तुम्हारी लातें खानी पड़ें। लोमड़ी ने जवाब दिया, सोच लो। कोई जल्दी नहीं है। किक खाने को तैयार हो तो एक ऐसे छोटे से जानवर को बुलाती हूं, जो एक सेकेंड में तुम्हारे पंजे से कांटा निकाल देगा। मंजूर नहीं है तो तड़पते रहो दर्द से, कोई नहीं आएगा तुम्हारे पास। सभी तो तुमसे डरते हैं।

लोमड़ी जाने लगी। तभी शेर ने आवाज लगाई, रुक जाओ, मुझे मंजूर है। लोमड़ी ने कहा, ठीक है, मैं अभी लेकर आती हूं, उस जानवर को, जो तुम्हारे पंजे से कांटा निकालेगा। थोड़ी देर में लोमड़ी एक छोटे से जानवर के साथ वहां पहुंची और शेर से कहा, क्या किक खाने के लिए तैयार हो। शेर ने कहा, जैसी तुम्हारी मर्जी। शेर को मन ही मन काफी गुस्सा आ रहा था, पर वो दर्द की वजह से शांत रहा। लोमड़ी ने एक के बाद एक करके शेर को पूरी पांच किक मारीं। इसके बाद लोमड़ी वहां से दूर भाग गई। लोमड़ी के लाए छोटे से जानवर ने शेर के पंजे से कांटा निकाल दिया, लेकिन गुस्साया शेर इस जानवर को भी नहीं खा सकता था, क्योंकि यह जानवर था साही, जिसके पूरे शरीर पर नुकीले कांटे लगे रहते हैं। शेर ने साही को जाने दिया, वह फिर से कोई मुसीबत मोल नहीं ले सकता था। शेर ने लोमड़ी के इंटेलीजेंस की तारीफ करते हुए कहा, मानना पड़ेगा लोमड़ी को। मुझे किक भी मार गई और कांटा निकालने वाले जानवर को भी बचा ले गई।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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