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देश के लिए ओलंपिक जीतना चाहती हैं कूहू गर्ग

देहरादून। अंतर्राष्ट्रीय बैडमिटन खिलाड़ी कुहू गर्ग की नजर अब ओलंपिक पदक पर है और इस दिशा में उनके प्रयास लगातार जारी हैं। उनका कहना है कि राज्य में खेल सुविधाएं और ज्यादा विकसित होनी चाहिएं। साथ ही खेलों को बढ़ावा देने के लिए स्पांसर भी जरूरी हैं, ताकि युवा खिलाड़ियों को प्रोत्साहन मिल सके।
उत्तरांचल प्रेस क्लब में गुरुवार को प्रेस से मिलिए कार्यक्रम में कुहू ने कहा कि उत्तराखंड सरकार ने पिछले कुछ वर्ष में खेलों को काफी बढ़ावा दिया है। राज्य के खिलाड़ी बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। राज्य में अंतर्राष्ट्रीय स्तर के बैडमिंटन हाॅल और चुनिंदा खिलाड़ियों के लिए अलग से कोच और सुविधाएं उपलब्ध कराए जाएं तो निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि यहां के खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक हासिल करेंगे।
उन्होंने कहा कि क्रिकेट की तरह बैडमिंटन में भी प्राइवेट स्पॅान्सर्स बहुत जरूरी हैं। स्पान्सर्स की सबसे ज्यादा जरूरत नवोदित युवा खिलाड़ियों को है। भारत में अभी डबल्स का प्रदर्शन कुछ खास नहीं है। हमें जरूरत है विदेशी कोच की, क्योंकि उनके पास ज्यादा एक्सपोजर और तकनीक का अनुभव है।
कुहू ने कहा कि कोच की भूमिका खिलाड़ी तैयार करने में बहुत अहम होती है। हर स्तर के खिलाड़ियों के लिए उनकी स्पर्धा के अनुसार कोच नियुक्त होने चाहिए, जिससे किसी एक कोच पर दबाव नहीं पड़ेगा। इससे पूर्व प्रेस से मिलिए कार्यक्रम में उत्तरांचल प्रेस क्लब अध्यक्ष नवीन थलेड़ी ने कूहू को बुके भेंट करके उनका स्वागत किया।
प्रेस क्लब के महामंत्री भूपेंद्र कंडारी ने कूहू के बारे में बताया और उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना की। इस अवसर पर अपर पुलिस महानिदेशक कानून व्यवस्था व उत्तराखंड बैडमिंटन एसोसिएशन के अध्यक्ष अशोक कुमार, उत्तराखंड बैडमिंटन कोच दीपक रावत, प्रेस क्लब संयुक्त मंत्री प्रवीन बहुगुणा, कार्यकारिणी सदस्य अनूप गैरोला, चेतन गुरूंग, मंगेश कुमार, राजेश बड़थ्वाल, रश्मि खत्री, प्रवीन डंडरियाल आदि उपस्थित रहे।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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