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मिलो से मिलिए और आगे बढ़िए

कोई भी व्यक्ति एक दिन, दो दिन या एक माह या एक वर्ष में महान नहीं बनता। कोई भी कार्य तब तक कठिन है, जब तक कि हम उसको करने का प्रयास नहीं करते। प्रयास करना एक पहल हो सकता है, लेकिन उस दिशा में निरंतर अभ्यास करना यानि उसके प्रति खुद को समर्पित कर देने का मतलब है सफलता की गारंटी। यहां मैं एक बहुत पुरानी कहानी का जिक्र कर रहा हूं, जो हर आयु के व्यक्ति के जीवन में बदलाव लाने वाली साबित होगी। मैं तो ऐसा मानता हूं। मुझे यकीन है कि आप भी ऐसा मानोगे। बच्चों और युवाओं से अक्सर यह कहानी शेयर करता हूं। कुछ लोग इसमें रुचि लेते हैं और कई इसको एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल भी देते होंगे। यह कहानी बहुत सारे लोगों ने पढ़ी और समझी होगी और इसको अपने जीवन में उतारा भी होगा। हमारे आसपास भी ऐसे बहुत लोग मिल जाएंगे, जिन्होंने लगातार अभ्यास के दम पर अपने विषय पर महारत हासिल की है।

ग्रीस के महान शक्तिशाली रेसलर मिलो ने लगातार छह ओलंपिक में कई मेडल अपने नाम किए थे। मिलो शक्तिशाली रेसलर थे। उनके प्रतिद्वंद्वियों में उनकी ताकत की चर्चा होती थी। वो सोचते थे कि मिलो इतने शक्तिशाली कैसे हो गए। ऐसा क्या है मिलो में, जो जीत पर जीत हासिल करते हैं। अभ्यास तो वो भी करते हैं, मिलो में ऐसी क्या खास बात है। मिलो की शक्ति के पीछे एक प्रेरणास्पद अभ्यास छिपा है, जो कहता है कि लगातार प्रयास करने से बड़े से बड़े टास्क को आसान किया जा सकता है। इसके लिए नियमित तौर पर अभ्यास की जरूरत है।

कहानी में जिक्र किया गया है कि मिलो ने अपनी शक्ति बढ़ाने का अभ्यास नवजात बछड़े को कंधों पर उठाने से शुरू किया था। वाकई यह उनके के लिए आसान था। उनका कहना था कि वो एक बछड़े को आसानी से उठा सकते हैं, आप क्यों नहीं। इस पर आप कहेंगे, एक छोटे से बछड़े को कंधे पर उठा लेना कौन सी बड़ी बात हो गई। यह तो बड़ा आसान काम है। मैं भी यही कह रहा हूं कि मिलो ने जो शुरुआत की और बाद तक इसको लगातार दोहराते रहे, वो बड़ा काम नहीं था। यहां अगर कोई बड़ा काम था तो वो उनकी अपने कार्य को लेकर लगन, निष्ठा, समयबद्धता और अनुशासन। ये सभी बातें उनकी ताकत को बढ़ाने, उनको हर रेसलिंग में विजय दिलाने में बड़ा महत्वपूर्ण और सकारात्मक योगदान अदा करती रहीं। 

फिर से मिलो की कहानी पर आते हैं। मिलो उस बछड़े को जब भी समय मिलता, कंधे पर उठा लिया करते थे। रोजाना दिन में कई बार वह ऐसा करते थे। यह सब बड़ी आसानी से चल रहा था।  जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी एक बड़े बुल( सांड) को कंधों पर उठाने का प्रयास करते रहे। वे लोग मिलो पर हंसते थे कि वो बछड़े को कंधे पर उठा रहे हैं। लेकिन मिलो ने अपने नियमित अभ्यास को नहीं छोड़ा और समय के साथ बछड़ा बड़ा होता गया और साथ ही उसको उठाने की मिलो की क्षमता भी बढ़ती गई।आखिरकार एक दिन ऐसा भी आया, जिस दिन मिलो ने उस भारी सांड को कंधे पर उठा लिया, जो कभी बछड़ा था। लगातार अभ्यास ने मिलो की ताकत को बढ़ा दिया। लेकिन उनके प्रतिद्वंद्वी सांड को ही उठाने का प्रयास करते रहे। कभी वे उसे उठाने में सफल भी हो जाते थे, लेकिन वो मिलो की तरह सर्वश्रेष्ठ ताकत हासिल नहीं कर पाए।

यहां कहने का मतलब है कि किसी भी कार्य को करने के लिए एक प्रक्रिया को अपनाना होता है, इस प्रक्रिया को पूरा करने के लिए सब्र के साथ लगन और जुझारूपन भी होना चाहिए। यह ठीक उसी तरह है, जैसे नौ की टेबल तक पहुंचने के लिए दो से लेकर आठ तक की टेबल का अभ्यास करना जरूरी है। यदि आप क्रमबद्ध तरीके से कोई कार्य नियमित अभ्यास के साथ करोगे तो उससे जुड़े कठिन हिस्सों पर भी सफलता हासिल कर सकोगे। यानि गुणा और भाग से पहले आपको टेबल, जोड़ और घटाव के सवालों की प्रैक्टिस करनी जरूरी होती है। 

यह जान लेना हम सबके लिए जरूरी है कि पहली, दूसरी और तीसरी…सीढ़ी पर चढ़ते हुए ही हम छत पर पहुंच पाएंगे। अगर पहली के बाद सीधे तीसरी और फिर पांचवी या 12वीं सीढ़ी पर चढ़ने का प्रयास होगा तो नुकसान ही भुगतान पड़ेगा, सफलता और दूर होती चली जाएगी। इसलिए लगातार अनुशासित तरीके से अभ्यास करने के साथ समयबद्ध प्रक्रिया का पालन भी करना होगा। 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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