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पीने के पानी में माइक्रोप्लास्टिकः विश्व स्वास्थ्य संगठन

नल और बोतलबंद पानी में माइक्रोप्लास्टिक्स की उपस्थिति की रिपोर्ट ने कई सवाल खड़े करने के साथ ही चिंता में डाल दिया। पीने के पानी में माइक्रोप्लास्टिक मानव स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट उन सभी साक्ष्यों की जांच करती है, जो नलों और बोतलबंद पीने के पानी और इसके स्रोतों में माइक्रो प्लास्टिक से संबंधित है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 124 पेज की नई रिपोर्ट में जिक्र किया है कि माइक्रोप्लास्टिक पेयजल में तेजी से बढ़ रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन इस विषय को समझने के लिए अभी और अध्ययन की आवश्यकता जाहिर करता है, ताकि यह बात स्पष्ट रूप से जाना जा सके कि पर्यावरण में प्लास्टिक कैसे फैलता है और यह मनुष्यों को किस तरह प्रभावित करता है।

डब्ल्यूएचओ पीने के पानी में माइक्रोप्लास्टिक्स से संबंधित वर्तमान शोध के विश्लेषण जारी होने के बाद पर्यावरण में माइक्रोप्लास्टिक्स के मूल्यांकन और मानव स्वास्थ्य पर उनके संभावित प्रभावों के अध्ययन की बात करता है। साथ ही पर्यावरण को लाभ पहुंचाने और मानव जोखिम को कम करने के लिए प्लास्टिक प्रदूषण में कमी लाने पर भी जोर दिया है।

डब्ल्यूएचओ की विज्ञप्ति में सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग की निदेशक मारिया नीरा का कहना है कि माइक्रोप्लास्टिक्स और उसके स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में तत्काल और अधिक जानकारी की आवश्यकता है, क्योंकि ये हर जगह पीने के पानी में मौजूद हैं। हमें दुनियाभर में प्लास्टिक प्रदूषण की वृद्धि को रोकने की आवश्यकता है।

माइक्रोप्लास्टिक्स और मानव स्वास्थ्य पर उनके संभावित प्रभावों के बारे में अधिक सटीक मूल्यांकन प्राप्त करने के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है। पानी में माइक्रोप्लास्टिक कणों को मापने के लिए मानक विकसित करना होगा। ताजे पानी में माइक्रोप्लास्टिक्स के स्रोतों और पर अधिक अध्ययन और विभिन्न उपचार प्रक्रियाओं के प्रभावों को जानना जरूरी है।

डब्ल्यूएचओ पीने के पानी के आपूर्तिकर्ताओं और नियामकों से सिफारिश करता है कि वे माइक्रोबियल रोगों के कारकों और उन रसायनों को हटाने को प्राथमिकता दें, जो मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए गंभीर जोखिम हैं, जैसे डायरिया जैसे रोग। इससे दोहरा लाभ होगा, एक तो अपशिष्ट जल और पेयजल के उपचार से हानिकारक तत्व और रसायन बाहर हो जाएंगे, वहीं माइक्रोप्लास्टिक को भी हटाया जा सकेगा।

रिपोर्ट के अनुसार अपशिष्ट जल से उचित ट्रीटमेंट और फिल्टरेशन के माध्यम से 90 फीसदी से अधिक माइक्रोप्लास्टिक को बाहर निकाला जा सकता है। पीने के पानी का पारंपरिक उपचार एक माइक्रोमीटर से भी छोटे कणों को बाहर कर सकता है। वैश्विक आबादी का एक बड़ा हिस्सा वर्तमान में पानी और सीवेज ट्रीटमेंट का पर्याप्त लाभ नहीं उठा पाता।

माइक्रोप्लास्टिक की कोई वैज्ञानिक रूप से सहमत परिभाषा नहीं है, हालांकि उन्हें अक्सर प्लास्टिक के कणों के रूप में परिभाषित किया जाता है, जिनकी लंबाई सामान्य रूप से 5 मिमी से कम होती है। जहां तक पीने के पानी के संबंध में बात की जाए तो ये कण एक मिमी जितने छोटे भी हो सकते हैं। एक मिमी से छोटे कणों को नैनोप्लास्टिक के रूप में जाना जाता है।

माइक्रोप्लास्टिक यानी प्लास्टिक के छोटे कण पानी में कैसे मिलते हैं, इस पर डब्ल्यूएचओ का कहना है कि प्लास्टिक के छोटे कणों के पानी में मिलने के कई स्रोत हो सकते हैं, इसमें मुख्य रूप से बारिश का पानी और अपशिष्ट जल तथा औद्योगिक प्रवाह शामिल हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार बोतल और उसका ढक्कन भी बोतलबंद पानी में माइक्रोप्लास्टिक के स्रोत हो सकते हैं।

प्लास्टिक के चिंताजनक आंकड़ें

एक अन्य स्टडी में आकलन किया गया कि दुनियाभर में 1950 से 8.3 बिलियन (830 करोड़) टन प्लास्टिक का उत्पादन हो चुका है। करीब 60 फीसदी प्लास्टिक कचरे के रूप में डंप हुआ है और प्राकृतिक वातारण में फैला है। साथ ही कुछ अन्य चिंताजनक आंकड़ें मिले हैं, जिनके अनुसार 1950 के दशक के बाद से, प्लास्टिक उत्पादन की दर किसी भी अन्य सामग्री की तुलना में तेजी से बढ़ी है।

टिकाऊ प्लास्टिक के उत्पादन के साथ ही एक औऱ बदलाव भी देखा गया है, वो यह कि प्लास्टिक को एक ही उपयोग के बाद फेंक दिया जाता है। 99 फीसदी से अधिक प्लास्टिक तेल, प्राकृतिक गैस और कोयले से प्राप्त रसायनों से पैदा होती है। ये सभी दूषित और गैर-नवीनीकरणीय संसाधन हैं। यदि वर्तमान रुझान जारी रहता है, तो 2050 तक प्लास्टिक उद्योग दुनिया के कुल तेल खपत के 20 फीसदी हिस्से के समान हो सकता है। वर्तमान में 300 मिलियन टन प्लास्टिक हर वर्ष उत्पादित हो रही है, जो कि पूरी दुनिया के मानव शरीर के भार के समान है।worldenvironmentday

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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