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मुझे गर्व है अपने भाई पर

मैं पहाड़ के दूरस्थ गांव में पैदा हुई थी। मुझे औऱ मेरे छोटे भाई को माता पिता ने खेतों में कड़ी मेहनत करके पाला पोसा। हमारे बड़े होने के साथ-साथ उनकी मेहनत भी बढ़ने लगी। मैं एक रुमाल खरीदना चाहती थी, क्योंकि मैं अपने साथ पढ़ने वाली लड़कियों के पास एक से बढ़कर रुमाल देखा करती थी। रुमाल खरीदने के लिए एक दिन मैंने पिता की अलमारी में रखे 50 सेंट चोरी कर लिए। पिता को जब इस चोरी के बारे में पता चला तो उन्होंने जांच शुरू कर दी। मैं बुरी तरह घबरा गई थी, क्योंकि पिता के गुस्से को मैं अच्छी तरह जानती थी।

पिता ने हम दोनों भाई बहन को बुलाया और पूछताछ शुरू कर दी। उन्होंने कहा कि अगर तुमने झूठ बोला तो बहुत पिटाई होगी। मैं बहुत घबरा गई थी। मेरे भाई को मेरी इस गलती का पता चल गया और उसने पिता से कहा, मैंने अलमारी से पैसे निकाले थे। मेरे से गलती हो गई है। भविष्य में ऐसा कभी नहीं होगा। आप विश्वास करें। पिता ने कहा, तुमने सच बोला है, इसलिए माफ कर देता हूं। लेकिन भविष्य में ऐसी गलती नहीं होनी चाहिए।

पिता के पैसे चोरी करने का मुझे काफी दुख हो रहा था। अपनी इस गलती का पश्चाताप करते हुए मैं काफी तेजी से रोना चाहती थी। पिता को सच बताना चाहती थी, लेकिन मेरे भाई ने मुझे कहा, दीदी रोना नहीं। तुम्हें अपनी गलती का दुख है, यही काफी है। उस समय मैं 11 साल और भाई आठ साल का था। मैं आज भी पैसे चोरी करने की गलती की वजह से खुद से नफरत करती हूं। वहीं स्वयं के प्रति भाई का प्यार देखकर काफी खुश भी हूं। मैं जीवनभर भाई के स्नेह को याद करती रहूंगी।

कुछ वर्ष बीत गए, मेरे भाई को हाईस्कूल की पढ़ाई पूरी करके शहर के एक स्कूल में एडमिशन लेना था। उसी साल मेरा सेलेक्शन ग्रेजुएशन की पढ़ाई के लिए स्टेट लेवल की यूनिवर्सिटी में हो गया। मेरे पिता के पास इतना पैसा नहीं था कि वो हमारी पढ़ाई का खर्चा उठा सकें। उस शाम मैंने देखा कि पिता सिगरेट पर सिगरेट पी रहे थे। वह मां से कह रहे थे कि मेरे दोनों बच्चे पढ़ाई में काफी अच्छे हैं, लेकिन हमारे पास इतने पैसे नहीं हैं कि दोनों को शहर भेज सकें। मां ने कहा, हमें अपने बच्चों के भविष्य के लिए दिनरात कड़ी मेहनत भी करनी पड़े तो करेंगे।

मेरा छोटा भाई, पिता की बात को सुन रहा था। वह पिता के पास पहुंचा और कहा, पापा मैं अब पढ़ाई जारी नहीं रखना चाहता। मैंने काफी किताबें पढ़ ली हैं। मैं आपकी मदद करना चाहता हूं। मैं कुछ काम करना चाहता हूं। इस पर पिता को गुस्सा आ गया। उन्होंने कहा,धन की कमी ने तुम्हारे मन को भी कमजोर बना दिया है। बेटा, हमेशा ध्यान रखना, धन की कमी भले ही हो जाए, लेकिन मन हमेशा मजबूत रहना चाहिए। तुम्हें पढ़ाई जारी रखनी होगी, चाहे इसके लिए मुझे सड़कों पर भीख क्यों न मांगनी पड़े। मैं तुम दोनों को पढ़ाई पूरी करने के लिए शहर भेजूंगा।

भाई के साथ मैंने भी अपनी पढ़ाई को जारी नहीं रखने का फैसला कर लिया था। मेरे पिता, गांव में लोगों से उधार मांगने के लिए चले गए। दूसरे दिन सुबह, मेरा भाई अपने साथ कुछ कपड़े लेकर घर से चला गया। उसने मेरे तकिये के नीचे एक पत्र रख दिया था, जिस पर लिखा था- मेरी प्यारी दीदी, आप बहुत अच्छे से पढ़ाई करना। मुझे नौकरी मिल जाएगी,मैं आपके लिए पैसे भेजूंगा। आप अपना ख्याल रखना। पापा से कहना कि वो मुझे माफ कर देंगे।

भाई का पत्र पढ़कर मैं काफी देर तक रोई। जब पिता को पता चला तो उन्हें काफी गुस्सा आया। एक बहन के लिए भाई के इस त्याग को देखकर उनकी आंखें भी भर आईं। गांववालों से उधार लिए गए कुछ पैसों से मैंने विश्वविद्यालय में एडमिशन ले लिया। भाई समय पर मेरे पास पैसे भेजता रहा। अब मैं 20 साल की और भाई 17 साल का हो गया था। मैं ग्रेजुएशन के फाइनल ईयर में थी।

एक दिन,जब मैं अपने कमरे में पढ़ रही थी, तो मेरी मित्र आई और मुझे बताया कि एक ग्रामीण कमरे से बाहर तुम्हारा इंतज़ार कर रहा है! एक ग्रामीण मुझे क्यों ढूंढ रहा होगा? मैं बाहर आई तो बाहर अपने भाई को पाया। उसके बाल और कपड़े धूल से सने थे। मैंने उससे पूछा, ‘तुमने मेरी मित्र को क्यों नहीं बताया कि तुम मेरे भाई हो? उसने मुस्कराते हुए जवाब दिया, मेरी हालत तो देखो। अगर वो जान जाएगी कि मैं तुम्हारा भाई हूं तो क्या सोचेगी? क्या वह आप पर हंसेगी नहीं?

भाई तू बिल्कुल भी नहीं बदला, मैंने कहा। भाई की यह दशा देखकर मेरी आंखें नम हो गईं। मैंने अपने भाई से कहा, मुझे परवाह नहीं है कि लोग क्या कहेंगे! तुम हर हाल में मेरे भाई रहोगे। भाई ने अपनी जेब से तितली वाली हेयर क्लिप निकाली। मेरे बालों पर क्लिप लगाते हुए बोला, मेरी दीदी कितनी अच्छी लग रही है। मैंने कहा, इसकी क्या जरूरत थी। वह कहने लगा कि शहर में सभी लड़कियां इसे पहन रही हैं, मुझे लगता है कि यह आपके पास भी होनी चाहिए।

पढ़ाई पूरी करने के बाद मैं नौकरी की तलाश करने लगी। उस साल, मेरा भाई 20 साल का था और मैं 23 साल की थी। मेरे शादी हो गई। मैं पति के साथ शहर में रहने लगी। कई बार मेरे पति ने मेरे माता-पिता और भाई को हमारे साथ रहने के लिए आमंत्रित किया, लेकिन वो नहीं माने। मेरा भाई, अब माता पिता के पास रहने लगा। वहीं गांव में खेती करता। बड़ी मुश्किल से गुजारा हो पा रहा था। मेरा भाई कहता था कि गांव में रहकर माता-पिता का ख्याल रखूंगा।

मेरे पति ने शहर में कारखाना खोल लिया। हमने अपने भाई से रखरखाव विभाग में प्रबंधक बनने को कहा। भाई ने हमारी इस पेशकश को स्वीकार नहीं किया। मैं जानती थी कि गांव में माता-पिता और भाई के खर्चे बड़ी मुश्किल से पूरे हो रहे हैं। मैंने जिद्द करके भाई को शहर आने के लिए मना लिया, लेकिन भाई ने मैनेजर की जगह मेंटीनेंस वर्कर के तौर पर काम करना पसंद किया।

एक दिन, मेरा भाई एक केबल की मरम्मत करने वाली सीढ़ी पर चढ़ा था। अचानक करंट लगने पर नीचे गिरकर गंभीर रूप से घायल हो गया। उसको अस्पताल में भर्ती कराया गया। उसके हाथ और पैर पर प्लास्टर चढ़ा था। मैंने पूछा, भाई तुम्हें क्या जरूरत थी सीढ़ी पर चढ़कर मरम्मत करने की। तुम मैनेजर होते तो सीढ़ी पर चढ़कर खतरा मोल नहीं लेना पड़ता। इस पर भाई के जवाब ने मुझे रुला दिया।

भाई ने कहा, अगर मैं कम पढ़ लिखा व्यक्ति मैनेजर बन जाता, तो लोग कहते कि बहन की फैक्ट्री है, इसलिए मैनेजर बना है। इससे मेरी बहन पर आक्षेप लगता। मैं बिल्कुल भी नहीं चाहता कि मेरी वजह से कोई मेरी बहन को बुरा कहे। मैं जिस पद के योग्य था, उसे स्वीकार करने में बुरा क्या है।
यह सुनकर मेरे पति की आंखें नम हो गईं। मैंने कहा, भाई तुम मेरी वजह से नहीं पढ़ पाए। मुझे गर्व है तुम पर। भाई ने कहा, दीदी आप पुरानी बातों को क्यों याद करती हो। उस समय, वह 26 वर्ष का था और मैं 29 वर्ष की।

मेरा भाई 30 साल का हो गया। उसने गांव में एक किसान की बेटी से शादी की। स्वागत समारोह में एक व्यक्ति ने उससे पूछ लिया कि आप किस व्यक्ति का सम्मान करते हैं और सबसे ज्यादा किस से प्यार करते हैं? भाई ने बिना सोचे जवाब दिया- मैं अपनी बहन को सबसे ज्यादा सम्मान देता हूं। पूछने वाले ने फिर सवाल किया, ऐसा क्यों ?

भाई ने कहा, जब मैं प्राथमिक विद्यालय में था, स्कूल घर से दूर दूसरे गांव में था। हर दिन, मेरी बहन और मैं स्कूल और घर के लिए दो घंटे पैदल चलते थे। एक दिन, मैंने अपना एक दस्ताना खो दिया। मेरी बहन ने मुझे अपना एक दस्ताना दे दिया। सर्दियों के मौसम में काफी ठंड पड़ रही थी। हम दोनों के हाथ बुरी तरह कांप रहे थे। घर पहुंचते पहुंचते बहन का हाथ ठंड में अकड़ गया था। उसके हाथ में काफी दर्द हो रहा था। उसी दिन मैंने संकल्प लिया कि मैं हमेशा अपनी बहन का ख्याल रखूंगा। मैं वही काम करूंगा, जो उसके लिए अच्छा हो। भले ही इसके लिए मुझे कितना भी बड़ा त्याग क्यों न करना पड़े। इस जवाब पर समारोह में पहुंचे हर व्यक्ति का ध्यान मेरी तरफ हो गया। मैंने कहा, मुझे अपने भाई पर गर्व है। अपने जीवन के लिए मैं सबसे ज्यादा धन्यवाद अपने भाई को देना चाहती हूं, जो मुझसे छोटा होने के बाद भी मेरे लिए अपनी खुशियों का त्याग करता रहा है।
(अनुवादित)

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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