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भमोरा (Cornus Capitata) एक पहाड़ी फल- मिलेगा बरसात में .

  • डॉ. राजेंद्र डोभाल, महानिदेशक -UCOST उत्तराखंड

उत्तराखण्ड हिमालय तथा संपूर्ण हिमालय क्षेत्र अपनी नैसर्गिक जैव विविधता के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। इस हिमालय क्षेत्र में असंख्य औषधीय तथा आर्थिक क्षमता वाले असंख्य पौधे पाये जाते है। हिमालय क्षेत्रों में पाये जाने वाले 8000 पुष्पीय पौधों की प्रजातियों में से लगभग 4000 प्रजातियां केवल गढवाल हिमालय क्षेत्रों में आंकी गयी है जिनमें से एक महत्वपूर्ण पौधा भमोरा है जिसका वैज्ञानिक नाम Cornus Capitata है।

यह Cornaceae कुल से संबंध रखता है। वैसे तो भमोरे का फल विरल ही खाने को मिलता है परंतु चारावाहो द्वारा आज भी जंगलों में इसके फल को खाया जाता है। यह हिमालयी क्षेत्रों में पाये जाने वाला अत्यन्त महत्वपूर्ण पौधा है। इसी वजह से इसे हिमालयन स्ट्राबेरी का नाम दिया गया है। वैसे तो भमोरा संपूर्ण हिमालय क्षेत्रों यथा-भारत, चीन, नेपाल, आस्ट्रेलिया आदि में पाया जाता है परंतु इसका उद्भव भारत के उत्तरी हिमालय तथा चीन में ही माना जाता है। सामान्यतः यह 1000 से 3000 मी0 ऊॅचाई तक पाया जाता है। हिमालय क्षेत्रों में भमोरा सितम्बर से नवम्बर के मध्य पकता है तथा पकने के बाद इसका फल स्ट्रॉबेरी की तरह लाल हो जाता है जो पौष्टिक तथा औषधीय गुणों से भरपूर होने के साथ-साथ स्वादिष्ट भी होता है।

भमोरा का सबसे महत्वपूर्ण वैज्ञानिक पहलू यह है कि इसकी छाल तथा पत्तियॉ टेनिन निष्कर्षण के लिए प्रयुक्त होती है जिसका फार्मास्यूटिकल उद्योग में औषधीय निर्माण हेतु अत्यधिक महत्व होता है। कारनस जीनस ही अपने आप में पॉली फिनॉलिक तत्वों जैसे टेनिन की मौजूदगी के लिए प्रसिद्ध है जिसमें मुख्यतः Hydrolyzable टेनिन पाया जाता है। कई वैज्ञानिक अध्ययनों में भमोरा की जडों से पॉली फिनॉल का निष्कर्षण किया गया है। सिद्ध एवं ठाकुर वर्ष 2015 ’अन्तर्राष्ट्रीय जनरल ऑफ फार्मटेक रिसर्च’ में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार भमोरा में मधुनाशी गुण भी पाये जाते है। इसके फल में एक महत्वपूर्ण अव्यव एन्थोसाइनिन

भी पाया जाता है। जो अन्य फलों की तुलना में 10 से 15 गुणा ज्यादा पाया जाता है। इसमें मौजूद टेनिन जो एक एस्ट्रीजेन्ट के रूप में दर्द तथा बुखार के निवारण हेतु प्रयुक्त होता है भी पाया जाता है। कई वैज्ञानिक अध्ययनों में यह भी बताया गया कि भमोरा में मौजूद टेनिन कुनैन के विकल्प के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। पारम्परिक रूप से भी भमोरा की कुछ प्रजातियां पारम्परिक चाईनीज तथा कोरियन औषधीयों में जैसे- खांसी, फ्लू, मुत्र रोग, अतिसार रोगों के निवारण के साथ-साथ लीवर तथा किडनी के बेहतर कार्यप्रणाली के लिए भी प्रयुक्त होता है।

जहॉ तक भमोरे के फल का पोष्टिक गुणवता की बात की जाय तो इसमें प्रोटीन-2.58 प्रतिशत, फाइबर-10.43 प्रतिशत, वसा-2.50 प्रतिशत, पोटेशियम 0.46 मि0ग्रा0 तथा फासफोरस-0.07 मि0ग्रा0 प्रति 100 ग्राम तक पाये जाते है।

उत्तराखण्ड में पाये जाने वाले भमोरा तथा कई अन्य पोष्टिक एवं औषधीय रूप से महत्वपूर्ण जंगली उत्पादों का यदि विस्तृत वैज्ञानिक अध्ययन कर इनकी आर्थिक क्षमता का आंकलन किया जाय तो यह प्रदेश के जंगली उत्पादों को विश्वभर में एक नई पहचान दिलाने में सक्षम है।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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