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जायफल है औषधीय गुणों की खान

डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
दून विश्वविद्यालय, देहरादून, उत्तराखंड

जायफल सदाबहार वृक्ष है जो इण्डोनेशिया के मोलुकस द्वीप का है। इस वृक्ष से जायफल तथा जावित्री दो प्रमुख मसाले प्राप्त होते हैं। यह चीन के गुआंगडांग तथा युन्नान प्रान्त, ताइवान, इण्डोनेशिया, मलेशिया, ग्रेनाडा, केरल, श्री लंका एवं दक्षिणी अमेरिका में खूब पैदा होता है। मिरिस्टिका प्रजाति की लगभग 80 जातियां हैं, जो भारत, आस्ट्रेलिया तथा प्रशांत महासागर के द्वीपों पर उपलब्ध हैं। मिरिस्टिका वृक्ष के बीज को जायफल कहते हैं।

इस वृक्ष का फल छोटी नाशपाती के रूप का एक इंच से डेढ़ इंच तक लंबा, हल्के लाल या पीले रंग का गुदेदार होता है। पकने पर फल दो खंडों में फट जाता है और भीतर सिंदूरी रंग की जावित्री दिखाई देने लगती है। जावित्री के भीतर गुठली होती है, जिसके कड़े खोल को तोड़ने पर भीतर से जायफल प्राप्त होता है। दुनियाभर में मीठे व्यंजनों में इस्तेमाल होने वाले जायफल का एक्सपोर्ट 2016-17 में वर्ष-दर-वर्ष आधार पर 25 पर्सेंट बढ़कर 5,070 टन का था। वैल्यू के लिहाज से यह 236.41 करोड़ रुपये का था।

इंडोनेशिया में जायफल के उत्पादन में कमी होने के कारण विदेश में इसकी कीमतों में अच्छी तेजी आई थी। पिछले वर्ष भारतीय जायफल के सबसे बड़े खरीदारों में चीन भी शामिल था। जायफल का बड़ी मात्रा में एक्सपोर्ट करने वाली कनु कृष्णा कॉरपोरेशन के पार्टनर दीपक पारिख के अनुसार ‘इस बार हमारे जायफल की डिमांड घटी है क्योंकि 7,200 डॉलर प्रति टन का प्राइस इंडोनेशिया के दाम से लगभग 500 डॉलर अधिक है। चीन भी इंडोनेशिया से जायफल खरीद रहा है।’

विदेश में डिमांड कम होने और डोमेस्टिक मार्केट में भी कम खरीदार होने के कारण जायफल के दाम नीचे आए हैं। औसत दाम पिछले वर्ष 500 रुपये प्रति किलोग्राम से घटकर 350 रुपये प्रति किलोग्राम पर आ गया है। कुछ वर्ष पहले विदेश में जायफल की कमी के कारण इसके दाम 1,000 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गए थे। किसानों का कहना है कि 350 रुपये प्रति किलोग्राम की कीमत पर उनकी उत्पादन लागत भी नहीं निकलती।

केरल के एक किसान के वी बीजू ने बताया, ‘ऐसा लगता है कि जीएसटी के कारण उत्तर भारत में इसकी डिमांड कम हो गई है।’ आमतौर पर त्योहारों का सीजन शुरू होने के साथ उत्तर भारत में जायफल की मांग बढ़ जाती है। बीजू ने कहा, ‘पहले जायफल पर जीएसटी रेट को लेकर भ्रम की स्थिति थी। इस वजह से ट्रेडर्स खरीदारी नहीं कर रहे थे। लेकिन अब यह स्पष्ट हो गया है कि इस पर टैक्स रेट पांच पर्सेंट है। अब ट्रेडर्स और एक्सपोर्टर्स को इनपुट क्रेडिट न मिलने की समस्या खड़ी हो गई है।’

देश में जायफल के उत्पादन में केरल की हिस्सेदारी आधे से अधिक की है। देश में जायफल का लगभग 14,000 टन उत्पादन होता है। तमिलनाडु और कर्नाटक इसका बड़ी मात्रा में उत्पादन करने वाले अन्य राज्य हैं। पहले केरल में मौसम खराब होने के कारण जायफल के उत्पादन पर असर पड़ने की आशंका थी, लेकिन केरल में इसकी अच्छी फसल हुई है। रबर की कीमतें 150 रुपये प्रति किलोग्राम से नीचे आने के कारण केरल में बहुत से किसानों ने जायफल की खेती की थी।

प्रकृति के अनुपम उपहार जायफल का हम मसाले में तो प्रयोग करते हैं, लेकिन इसके और क्या-क्या औषधीय गुण हैं, इनको भी जानना जरूरी है। मिरिस्टिका नामक वृक्ष से जायफल तथा जावित्री प्राप्त होती है। सर्दी के मौसम के दुष्प्रभाव से बचने के लिए जायफल को थोड़ा सा खुरचिये, चुटकी भर कतरन को मुंह में रखकर चूसते रहिये। यह काम आप पूरे जाड़े भर एक या दो दिन के अंतराल पर करते रहिये। यह शरीर की स्वाभाविक गर्मी की रक्षा करता है, इसलिए ठंड के मौसम में इसे जरूर प्रयोग करना चाहिए।

जायफल की खेती में पैदावार और लाभ पौधे के विकास के साथ साथ बढ़ता जाता है. इसके पौधे को लगाने में अधिक खर्च शुरुआत में ही आता है. जायफल के पूर्ण रूप से तैयार एक पेड़ से सालाना 500 किलो के आसपास सूखे हुए जायफलों की पैदावार प्राप्त होती है. जिनका बाजार भाव 500 रूपये प्रति किलो के आसपास पाया जाता है. जिससे किसान की एक बार में एक हेक्टेयर से दो से ढाई लाख तक की कमाई आसानी से हो जाती है. फल के ऊपर एक प्रकार का छिलका होता है जो उतारकर अलग सुखा लिया जाता है । इसी सूखे हुए ऊपरी छिलके को जावित्री कहते हैं ।

छिलका उतारने के बाद उसके अंदर एक और बहुत कडा़ छिलका निकलता है । इस छिलके को तोड़ने पर अंदर से जायफल निकलता है जो छाँह में सुखा लिया जाता है । सूखने पर फल उस रूप में हो जाते हैं जिस रूप में वे बाजार में बिकने जाते हैं । जायफल में से एक प्रकार का सुंगधित तेल और अरक भी निकाला जाता है जिसका व्यवहार दूसरी चीजों की सुंगध बढा़ने अथवा औषधों में मिलाने के लिये होता है।

जायफल की बुकनी या छोटे छोटे टुकडे़ पान के साथ भी खाए जाते है । भारतवर्ष में जायफल और जावित्री का व्यवहार बहुत प्राचीन काल से होता आया है। भारतीय व्यंजन के स्वाद का मुकाबला शायद ही कोई कर सकता है। तरह-तरह के मसाले, जो न सिर्फ खाने का स्वाद बढ़ाते हैं, बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी होते हैं। उन्हीं मसालों में से एक है जायफल।

लगभग हर रसोई में पाया जाने वाला यह मसाला न सिर्फ खाने के स्वाद को दोगुना करता है, बल्कि औषधीय गुणों से भी भरपूर होता है। सर्दियों में बच्चों को सीने में जायफल घिसकर मलने से राहत मिलती है तथा जायफल युक्त तेल से मालिश करने से उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।

खानपान के शौकीन लोगों के पकवानों में जायफल एक अभिन्न मसाला है, जिसका फ्लेवर भोजन को लजीज बनाता है। गर्म मसालों में भी जायफल का प्रयोग होता है। खड़े मसालों में जायफल एक विशेष सुगंध प्रदान करता है। जायफल युक्त तेलों और साबुनों की सौंदर्य प्रसाधनों में विशेष मांग है। इनके इस्तेमाल से त्वचा का रूखापन समाप्त हो जाता है। जायफल में सोडियम,पोटेशियम, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, फाइबर, कैल्शियम, आयरन, मैग्नीशियम, शर्करा प्रचुर मात्रा में पाया जाता है

इंडोनेशिया जायफल का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। दुनिया में जायफल की कुल खपत का 75 फीसदी अकेला इंडोनेशिया में पैदा होता है और ग्रेनाडा में 20 फीसदी का उत्पादन होता है। जबकि सिर्फ 5 फीसदी भारत, मलेशिया,पापुआ न्यू गिनी, श्रीलंका और कैरेबियाई द्वीप पर होता है। जायफल का आयात सबसे ज्यादा यूरोपीय देशों, अमेरिका, जापान में किया है।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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