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चीन की कहानीः राजा की बिल्ली का नामकरण

चीन के राजा को किसी राजदूत ने बिल्ली भेंट की। राजा जानवरों को बहुत स्नेह करता था, इसलिए उसे बिल्ली बहुत पसंद आई। राजा जहां कहीं भी जाता बिल्ली को साथ रखता। बिल्ली के प्रति राजा का स्नेह देखकर लोग उनसे पूछते, इसका नाम क्या है। राजा का जवाब होता, इसका नाम नहीं रखा है।

राजा ने निश्चय किया कि बिल्ली का नाम रखा जाना चाहिए। उन्होंने अपने दरबार के सात होशियार दरबारियों को आदेश दिया कि आप लोग सात दिन के भीतर बिल्ली का नाम सोचिए और मुझे बताइए। ध्यान रहे बिल्ली का नाम शानदार होना चाहिए। दरबारियों ने बिल्ली का नाम सोचने के लिए दिनरात एक कर दिया।

सातवें दिन राजा के महल में दरबारियों को बुलाया गया। सबसे पहले एक दरबारी ने सुझाव दिया कि इस बिल्ली का नाम टाइगर होना चाहिए। टाइगर शानदार और सबसे शक्तिशाली प्राणी है। राजा ने कहा, टाइगर अच्छा नाम है। तभी दूसरे दरबारी ने कहा, महाराज टाइगर शानदार प्राणी तो है, लेकिन ड्रैगन से शक्तिशाली नहीं है। क्या टाइगर ड्रैगन जैसी ऊंचाई पर उड़ सकता है। इसलिए टाइगर की जगह बिल्ली का नाम ड्रैगन रखा जाए। जरूर पढ़े- यात्रा पर निकले मेढ़कों की कहानी

राजा ने कहा, ड्रैगन नाम सही है। तभी तीसरे दरबारी ने कहा, महाराज ड्रैगन से ऊंचा तो बादल उड़ता है। इसलिए बिल्ली का नाम बादल रखा जाना चाहिए। राजा ने कहा, यह सही है बिल्ली का नाम बादल रखा जाए। तभी चौथे दरबारी ने कहा, महाराज बादल को हवा अपने साथ उड़ाकर ले जाती है। हवा बादल से ज्यादा ताकतवर है। इसलिए बिल्ली का नाम हवा रखा जाए।

पांचवें दरबारी ने कहा, महाराज हवा से ज्यादा शक्तिशाली ईंटों की दीवार होती है, जो उसको रोक देती है। इसका नाम ईंटों की दीवार (ब्रिक्स वॉल) रखना चाहिए। राजा को यह नाम पसंद आ गया। इतने में छठें दरबारी ने कहा, महाराज यह नाम कुछ बड़ा हो गया है। बिल्ली का नाम रेट (चूहा) रख दिया जाए। यह नाम छोटा भी है और चूहा ब्रिक्स वॉल वाले घर में घुसकर रोटी भी तो चोरी कर लेता है। ऐसे में वह उससे ताकतवर है।

राजा ने कहा, छठें दरबारी की बात को गंभीरता से लिया और कहा, चलिए इसका नाम रेट रख देते हैं। इतने में सातवें दरबारी ने कहा, महाराज एक बिल्ली का नाम चूहा कैसे रखा जा सकता है। बिल्ली तो चूहों को खा जाती है। ऐसे में बिल्ली ताकतवर हुई। अंत में राजा ने निश्चय कर लिया कि बिल्ली का नाम बिल्ली ही रखा जाए। (अनुवादित)

 

 

 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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