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उत्तराखंड में कम हो रहा जनता का परिवहन

भले ही उत्तराखंड परिवहन विभाग की कमाई में साल दर साल बढोतरी हुई हो, लेकिन जनता के लिए परिवहन के साधनों में गिरावट का दौर जारी है। खुद विभाग के आंकड़े ही  खुलासा कर रहे हैं कि राज्य में  टैक्सी, मैक्सी के रजिस्ट्रेशन में हर साल लगभग सात फीसदी की कमी आई है।

वहीं राज्य में बाइकों और प्राइवेट कारों, जीपों की खरीदारी तेजी पर है,  जो रोजाना लगभग आठ करोड़ रुपये तक है। राज्य में पहाड़ से लेकर मैदानी इलाकों तक की परिवहन व्यवस्था निजी कंपनियों की बसों और टैक्सी, मैक्सी और रोडवेज के भरोसे है, लेकिन कई रूटों पर ये सेवाएं भी नहीं हैं।

रात नौ बजे के बाद शहर और बाहर सार्वजनिक परिवहन सिस्टम गायब हो जाता है। हालांकि शहरों में ऑटो टैंपों की संख्या बढ़ रही है, लेकिन रात को यात्रा महंगी हो जाती है, जिस पर कोई अंकुश नहीं है। 72 फीसदी बाइकें हैं राज्यभर की कुल गाड़ियों में। 16 फीसदी प्राइवेट कार और जीप हैं कुल वाहनों में। 3.34 फीसदी ही है सार्वजनिक वाहनों की संख्या ( बसें, टैक्सी, मैक्सी, आटो टैंपो शामिल)।

राज्य में 32 व्यक्तियों पर एक प्राइवेट कार और जीप है उत्तराखंड में। 160 लोगों पर एक पब्लिक ट्रांसपोर्ट है राज्य में,जिनमें बस, टैक्सी, मैक्सी, आटो टैंपो शामिल हैं। 166 लोगों पर शहरों में एक अॉटो टैंपों ( प्रदेश की शहरी आबादी के अनुसार)। 10 साल में साढ़े चार गुना तक सालाना पहुंच गई टू व्हीलरों औऱ प्राइवेट कारों जीपों की खरीददारी। 2003-04 की तुलना में 11 साल में ट्रांसपोर्ट से मिला राजस्व  4.6 गुना हो गया। 2012-13 को छोड़ दिया जाए तो हर साल राजस्व में तेजी से बढोतरी हो रही है।

राज्य में सार्वजनिक परिवहन इसलिए कम हो रहा है- हरियाणा, दिल्ली, पंजाब और वेस्ट यूपी से मसूरी, नैनीताल, कार्बेट, चकराता, रानीखेत और अन्य टूरिस्ट स्पॉट पर आने वाले अधिकतर पर्यटक अपनी गाड़ियों से आ रहे हैं।
दिल्ली, पंजाब और उत्तर प्रदेश की ट्रेवलिंग कंपनियों का दखल बढ़ा है। दिल्ली और अन्य राज्यों से ही बुकिंग पर गाड़ियां उपलब्ध होती हैं।

होटलों के साथ गाड़ियों की ऑनलाइन बुकिंग भी बाहर की ट्रेवलिंग एंड टूरिज्म कंपनियां कर रही हैं। उत्तराखंड के लिए लग्जरी बस औऱ रेल सेवाएं बढ़ी हैं। राज्य में रजिस्टर्ड टैक्सी, मैक्सी और निजी बसों का अधिकतर काम लगभग छह माह यात्रा सीजन में ही चल पाता है। बाकी माह पहाड़ से स्थानीय सवारियों को सेवा देने में बीतता है। स्थानीय अधिकतर लोग अपने ही वाहनों से यात्रा करते हैं। चारधाम यात्रा के दौरान भी काफी संख्या में यात्री अपनी ही गाड़ियों से आ रहे हैं।

राज्य में प्राइवेट वाहन इसलिए बढ़ रहे हैं- राज्यभर में कई स्थानों पर रात आठ बजे के बाद सार्वजनिक परिवहन सेवा में कमी के कारण बाइकों की खरीदारी बढ़ी। समय बचाने और सुविधा को देखते हुए लोग अपनी गाड़ियों से सफर करना ज्यादा पसंद करते हैं। परचेजिंग पावर बढ़ी है और ईएमआई की सुविधा ने गाड़ियों की खरीदारी को आसान किया है।
रोजाना एक से दूसरे शहर में सफर करने के लिए बाइक सबसे ज्यादा सुविधायुक्त औऱ सस्ता साधन।

शहरों में इसलिए बढ़ रहे ऑटो टैंपो- शहर में ही एक स्थान से दूसरी जगह जाने के लिए ऑटो टैंपों का ज्यादा इस्तेमाल।
पार्किंग की पर्याप्त सुविधा नहीं होना है। बार-बार जाम में फंसना। शहरों में सड़कों की स्थिति सही नहीं होना।

ये दिक्कतें आ रहीं सामने- राज्य के पर्वतीय जिलों के लिंक रोड पर परिवहन सेवा में कमी। लंबी दूरी के लिए चलने वाली गाड़ियों में रास्ते के गांवों और कस्बों की सवारियां नहीं बैठ पाती। गाड़ियां कम होने और सवारियों की संख्या ज्यादा होने पर ओवरलोडिंग की समस्या। यात्रा सीजन में स्थानीय लोगों के लिए परिवहन सेवाओं में कमी। मैदानी इलाकों में भी रात आठ बजे के बाद कम दूरी के लिए परिवहन सेवाएं मुश्किल से मिलती है।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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