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कबूतर ने बचाई अपने दोस्त मुर्गे की जान

किसी गांव के पास जंगल में एक लोमड़ रहता था। वह जंगल से बाहर आकर गांव में रहने वाले मुर्गे मुर्गियों, बत्तखों और अन्य पक्षियों का शिकार करता था। अक्सर मुर्गी के बच्चों पर झपट जाता। लोमड़ की इस आदत से सभी पक्षी परेशान थे। एक दिन लोमड़ यूं ही गांव में टहल रहा था कि अचानक उसकी नजर लाल पंखों वाले मोटे मुर्गे पर पड़ी।

लोमड़ तुरंत अपने घर पहुंचा और अपनी पत्नी से कहा, तुम चिकन के लिए पानी उबलने रख दो। लाल पंखों वाला मोटा मुर्गा अब जल्द ही मेरी पकड़ में होगा। बहुत स्वादिष्ट होगा यह मुर्गा। उसकी बात सुनकर लोमड़ी के मुंह में भी पानी आ गया। उसने तुरंत बर्तन में पानी भरा और उबलने के लिए चूल्हे पर रख दिया।

लोमड़ ने अपने घर से एक बोरी उठाई और गांव की ओर दौड़ पड़ा। उसने मौका पाकर लाल पंखों वाले मुर्गे को बोरे में बंद कर दिया। बोरे में बुरी तरह बेचैन मुर्गे ने समझा कि अब जिंदगी खत्म हो गई। वह जल्द से जल्द बोरे से बाहर आना चाहता था, लेकिन वह कुछ नहीं कर सकता था। उसके पास अपनी जान बचाने के लिए कोई रास्ता नहीं था।

वो तो अच्छा हुआ कि पड़ोस में रहने वाले कबूतर ने लोमड़ को देख लिया था कि वह मुर्गे को बोरे में बंद कर रहा है। उसने मुर्गे को बचाने का तरीका सोचना शुरू कर दिया। लाल पंखों वाले मुर्गे और कबूतर के बीच गहरी दोस्ती थी। लोमड़ मुर्गे को लेकर अपने घर की ओर जा रहा था कि अचानक कबूतर अपने पंखों को फड़फड़ाता हुआ जमीन पर आ गिरा।

लोमड़ ने कबूतर को जमीन पर गिरते देख लिया। उसने सोचा, अरे, यह कबूतर तो बिना किसी मेहनत के मिल गया। लोमड़ी कई दिनों से कबूतर का सूप पीने की जिद कर रही है। अब उसकी यह इच्छा भी पूरी हो गई। मुर्गे को खाने से पहले कबूतर का सूप पीएंगे। आज के डिनर में एक से बढ़कर एक स्वादिष्ट व्यंजन।

लोमड़ ने मुर्गे वाले बोरे को जमीन पर पटका और कबूतर को उठाने के लिए तेजी से दौड़ा। उसके नजदीक पहुंचते ही कबूतर ने उड़ान भर ली। लोमड़ ने कुछ दूरी तक कबूतर का पीछा किया। कबूतर उसके हाथ आने से रहा। उधर, मुर्गा भी मौका मिलते ही बोरे से निकलकर भाग लिया। मुर्गे ने बोरे में बड़ा सा पत्थर रख दिया। निराश होकर लौटे लोमड़ ने बोरा उठाया और अपने घर की ओर चल दिया। उसने सोचा, चलो कोई बात नहीं, कबूतर का सूप किसी और दिन पी लेंगे। आज मोटे ताजे मुर्गे का चिकन खाया जाए।

वह घर पहुंचा और बिना देखे बोरे का मुंह चूल्हे पर रखे उस बर्तन पर खोल दिया, जिसमें पानी उबल रहा था। बोरे से निकला पत्थर उबलते पानी में गिर गया। गर्म पानी लोमड़ के मुंह पर आ गिरा। लोमड़ बुरी तरह झुलस गया। वहीं उसको लोमड़ी की डांट भी खानी पड़ी। लोमड़ी कह रहा थी कि कहां गया मोटा ताजा लाल पंखों वाला मुर्गा। क्या चिकन बनाने के लिए यह पत्थर लाए हो। लोमड़ निराश होकर रह गया। वहीं मुर्गा जान बचाने के लिए अपने दोस्त कबूतर को बार-बार थैंक्स कह रहा था।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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