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इनसे सड़क भरी पड़ी है, किस किस को सबक सिखाओगे

कुछ दिन पहले मैंने एक गलती कर दी, वो यह कि एक बाइक सवार को यह सलाह दे डाली कि भाई, थोड़ा धीरे चल लो। सड़क पर और भी लोग चलते हैं। करीब 22 साल के इस युवक ने पहले तो मेरी तरफ घूर कर देखा और फिर जवाब दिया कि तुम्हें क्या हो गया। तुम्हारा कोई नुकसान हो गया। क्या मैंने तुम्हें टक्कर मार दी। अगर टक्कर लग भी जाती, तो मैं झेल लेता। अपने काम से काम रखो, फालतू बात मत करो। सड़क खाली थी तो तेज दौड़ा दी। वाकई उसका यह व्यवहार देखकर इतना गुस्सा आया कि उसको सबक सीखा दूं।

फिर अचानक एक सवाल तेजी से दिमाग में कौंधा, इन लोगों से तो सड़क भरी पड़ी है। किस-किस को सबक सिखाओगे। कहीं एक दिन तुमको ही कोई सबक न सीखा दे। ठीक ही तो कह रहा था वो, अपने काम से काम रखो। सड़क चलते हुए पहले खुद को बचा लो, ये लोग तो किसी न किसी को अस्पताल या फिर… पहुंचाकर ही दम लेंगे। इस घटना ने मुझे बेचैन कर दिया। क्या सड़कों पर ये ऐसे ही दौड़ते रहेंगे और अगर किसी ने टोक दिया तो उसको सरेआम बेइज्जत करने की कोशिश करेंगे।

वर्ष 2012 में देहरादून के दिलाराम चौक के पास एक युवती को तेज रफ्तार कार ने टक्कर मार दी थी। यह युवती पहाड़ के एक गांव से अपनी शादी के लिए सामान की खरीदारी करने आई थी। इस युवती को गंभीर हालत में एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था। शायद उसकी शादी की तारीख पीछे हटानी पड़ी थी या फिर शादी टल गई थी, इसकी पूरी जानकारी मेरे पास नहीं है। लेकिन इस युवती के लिए यह बहुत दुखदाई स्थिति थी। टक्कर मारने वाले रईसजादे थे।

इसी साल अप्रैल में एक और घटना हुई, जिसमें एक प्रापर्टी डीलर की तेज रफ्तार कार ने राजपुर रोड स्थित साईं मंदिर के पास दो युवकों को मार डाला और एक अन्य गंभीर रूप से घायल हो गया था। ये दोनों युवक गरीब परिवार से थे औऱ शायद ये परिवार की आजीविका इन पर ही निर्भर थी।

इसी साल केंद्रीय संस्थान के एक अफसर के बेटे की कार ने बोर्ड परीक्षा देने जा रही एक छात्रा को टक्कर मार दी। छात्रा गंभीर रूप से घायल हो गई।

ये तीन घटनाएं करीब पांच साल पहले की है। आप कहेंगे कि इतनी पुरानी घटनाएं क्यों गिनाई जा रही हैं। इसका जवाब यह है कि हालात अब और बदतर हो चले हैं। देहरादून जैसे शहर से यह रोग अब छोटे शहरों, कस्बों और गांवों को अपनी चपेट में ले रहा है और पुलिस और आरटीओ सड़क सुरक्षा सप्ताह मनाने के अलावा इन लोगों को काबू नहीं कर पा रहे हैं।

सेकेंडों में तेज रफ्तार पकड़ने वाली महंगी बाइकों पर सवार होकर हुड़दंग मचाने वाले अब काबू से बाहर हो गए हैं। देहरादून के किसी भी चौराहे पर खड़े हो जाइए, हर पांच मिनट के अंतराल पर ऐसा एक हुड़दंगी जरूर मिल जाएगा। यहां तक कि स्कूलों और कॉलेजों के बाहर मॉडिफाइड बाइक दिख जाएंगी। कौन हैं ये लोग जो बाइकों को मॉडिफाइड करके युवाओं को सड़कों पर मौत का नाच करने के लिए उकसा रहे हैं। सड़कों पर तेज रफ्तार के लिए बदनाम इन युवाओं पर न तो इनके परिवार का कोई नियंत्रण है और न ही पुलिस इनको सबक सिखाने के लिए कुछ कर रही है।

तेज रफ्तार ही नहीं बाइक पर कार के हॉर्न और हूटर बज रहे हैं। बाइक से बुलेट जैसी आवाज निकलती है और राह चलते लोग दुर्घटनाओं का शिकार होते होते बच जाते हैं। इनका यह खेल, दूसरों पर किसी जानलेवा हमले से कम नहीं है, लेकिन फिर भी ये बेखौफ हैं और ट्रैफिक नियमों का पालन करने वाला खौफजदा।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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