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छोटी सी कहानीः कैसे और क्यों बने विशाल रेगिस्तान

एक दिन एक बच्चे ने अपने पिता से पूछा, आप तो कहते हैं दुनिया बहुत सुंदर है। नेचर ने इसको बनाने में अपनी क्रिएटिविटी का सबसे शानदार प्रदर्शन किया है। ऐसे तो धरती पर हर ओर हराभरा होना चाहिए, लेकिन अभी भी काफी हिस्सा बंजर और मरुस्थल है। आप ही उन स्थानों को दिखाते हो, जहां पहले हरियाली थी और आजकल सूखा नजर आता है।

पिता ने जवाब दिया, ईश्वर ने दुनिया को खूबसूरत ही बनाया था। उसने इसको हराभरा किया था। हरी घास के बड़े मैदान, रंग बिरंगे फूलों की खुश्बू से महकती धरती, स्वच्छ नदियां, पक्षियों और जानवरों की विविधता, तरह-तरह की वनस्पतियां, यह सब कुछ नेचर की देन हैं। इन सबको बनाने के बाद इंसान को धरती पर भेजा, ताकि वह अपनी बुद्धि और विवेक से इन सभी रचनाओं की रक्षा कर सके। इनको संजोकर रखे। इसलिए इंसान को सबसे ज्यादा बुद्धिशाली बनाया है।

इंसान की रचना करते वक्त नेचर को संदेह था कि क्या वास्तव में इंसान उसकी कृतियों का ख्याल रख सकेगा या फिर सुंदर हरीभरी धरती के संसाधनों को अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करेगा। नेचर ने इंसान को चेतावनी दी थी कि अगर तुमने धरती को उसी तरह हराभरा और सुंदर नहीं रखा, जैसा मैंने सोचा है, तो इसका बड़ा हिस्सा विशाल मरुस्थल में बदल जाएगा, जहां दूर-दूर तक मेरी रचनात्मक कृतियां नहीं दिखेंगी। इसलिए पृथ्वी पर जाकर कोई ऐसा कार्य नहीं करना, जो विधि और प्रकृति के नियमों के खिलाफ हों।

लेकिन जल्द ही मनुष्य इस चेतावनी को भूल गया और वो प्रकृति के विरुद्ध कार्य करने लगा। इसलिए पृथ्वी एक विशाल रेगिस्तान में बदल गई, लेकिन जब मनुष्य को अपनी गलती का एहसास हुआ, तो नेचर ने उसे माफ कर दिया। क्योंकि नेचर काफी दयालु है। यही कारण है कि अभी भी धरती पर कुछ हरियाली बाकी है।

संदेश- प्राकृतिक नियमों के खिलाफ कोई कार्य नहीं करना चाहिए। अपनी धरती और इसके पर्यावरण की रक्षा के लिए कार्य किए जाएं तो आपको हर ओर खुशहाली, हरियाली और समृद्धि नजर आएगी।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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