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कहानीः होशियार गधा और बेवकूफ शेर

गधा एक ऐसा जीव है, जिसे लोग कम अक्ल वाला मानते हैं, लेकिन हम यहां होशियार गधे की कहानी बता रहे हैं, जिसने अपनी बुद्धि का परिचय देते हुए शेर से अपनी जान बचा ली। एक बार गांव के किनारे एक गधा हरी घास चरने में व्यस्त था। उसे मीठी घास इतनी पसंद आ गई कि पता ही नहीं चला कि कब गांव से जंगल में घुस गया।

शाम होने पर गधे ने सोचा, कल आकर घास चर लूंगा। अब तो पेट भी भर गया है। वह अपने गांव जाने वाले रास्ते पर चलने लगा। वह खुशी खुशी घर जा रहा था कि रास्ते में शेर ने उसको रोक लिया। शेर इतना खतरनाक दिख रहा था कि गधा दहशत में आ गया। उसने सोचा, अब तो मरना तय है, क्यों न शेर से भिड़ ही लिया जाए। शेर से भिड़ने का ख्याल दिमाग में आते ही गधा और घबरा गया। उसने हिम्मत न खोते हुए शेर को पछाड़ने की युक्ति लगाई।

गधे ने शेर से कहा, सर आपके बारे में काफी कुछ सुना है। आप तो जंगल के राजा हैं। मैं तो स्वयं आपके पास आ रहा था। मैं आपके समक्ष डिनर के लिए पेश हूं। मेरा सौभाग्य होगा कि मैं आपके कुछ काम आ सका। लेकिन एक बात आपको बता देता हूं। गधे को सिर की तरफ से नहीं खाया जाता। क्योंकि गधों के पास दिमाग नहीं होता और बिना दिमाग वाला सिर खाकर आपको अच्छा नहीं लगेगा। आपको मेरी सलाह है कि मुझे पिछले पैरों की तरफ से खाया जाए। क्योंकि हमारी ताकत पिछले पैरों में होती है।

आप मुझे पैरों की तरफ से खाएंगे तो आपकी ताकत और बढ़ जाएगी और स्वाद भी बहुत अच्छा होगा। सर, आपको मेरी यह बात तो माननी होगी। शेर ने सोचा, गधा स्वयं भोजन बनकर आया है। चलो इसकी अंतिम इच्छा पूरी कर देता हूं। शेर ने जैसे ही गधे के पिछले पैरों को खाने के लिए मुंह आगे बढ़ाया, गधे ने तुरंत पूरा जोर लगाकर उसके मुंह में दो लात जड़ दीं। अचानक मुंह पर लात पड़ते ही शेर को चक्कर आ गए। वह कांटों वाली झाड़ियों में गिर गया।

इससे पहले कि शेर आगे बढ़ता, गधा दौड़ लगाते हुए अपने गांव की सीमा में प्रवेश कर गया। शेर को अपनी बुद्धि पर अफसोस हो रहा था कि वह एक गधे के बहकावे में आ गया। वहीं गधे ने सोच लिया कि अब भूलकर भी जंगल में नहीं जाऊंगा। वैसे भी गांव में हरी घास की कोई कमी नहीं है।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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