Short story- Moral Values

परोपकारी पेड़ और गुस्साया यात्री

किसी जमाने में एक विशाल पेड़ था, जिसके नीचे बड़ी संख्या में यात्री रुकते थे। धूप में चलकर आते यात्रियों को अपने नीचे आराम करते देख पेड़ को काफी खुशी मिलती थी। वह चाहता था कि अधिक से अधिक लोगों के काम आ सके और उनको राहत दे सके। इस पेड़ से होकर ही कई शहरों का रास्ता गुजरता था। 

गर्मियों के दिनों में पसीने में तर होकर दो यात्री पेड़ के नीचे पहुंचे। पेड़ की छाया औऱ हवाओं के झोकों ने उनकी थकान उतार दी। यात्रियों को इतनी राहत मिली कि वो दोनों पेड़ के नीचे सो गए। काफी देर बाद सोकर उठे तो इनमें से एक यात्री को भूख लग गई, लेकिन उसके पास खाने को कुछ नहीं था। उसने पेड़ की ओर देखा। आसपास उसे कोई फल नजर नहीं आया। इस पर गुस्साए यात्री पेड़ को कोसना शुरू कर दिया। 

उसने कहा कि इतना बड़ा पेड़ है, पर फल नहीं देता। सड़क के किनारे तो फलदार पेड़ होने चाहिए थे। इस पेड़ पर तो फल लगते नहीं और इसने वैसे ही इतनी जगह घेर रखी है। किसी काम का नहीं है यह पेड़। पेड़ ने यात्री की बात सुनी तो उसे बहुत दुख हुआ। यात्री था कि गुस्से में पेड़ को बुरी भली बोले जा रहा था।

पेड़ का सब्र टूट गया। उसने यात्री से कहा, सुनो भाई- जब आप लोग सूर्य की गर्मी में परेशान थे, तो मैंने ही छाया देकर आपको राहत पहुंचाई थी। मेरे पास दिन रात लोगों की भीड़ लगी रहती है। अगर मैं किसी काम का नहीं हूं तो लोग मेरे पास क्यों आते हैं। 

पेड़ की बात सुनकर यात्री को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने पेड़ से माफी मांगी। उसने कहा, दोस्त मैं भूख की वजह से आपके परोपकार को भुला गया था। आज वाकई आप नहीं होते तो हम गर्मी में मारे जाते। यह कहकर यात्री ने फिर मिलने की बात कहकर पेड़ से विदा ली। 

 

 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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