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Video: श्री कालू सिद्ध बाबा की तपस्थली और हरियाली के बीच गुजरता रास्ता  

6 जनवरी,2021 को सुबह से हो रही बारिश ने आफिस जाते हुए आधे रास्ते से ही वापस घर लौटने को मजबूर कर दिया। दोपहर में धूप निकली तो हमने थानो गांव जाने का मन बना लिया। मुझे हरियाली के बीच गुजरते रास्ते बहुत पसंद है, क्योंकि यहां शहर जैसा शोर नहीं है और ये इलाके प्रकृति के बहुत नजदीक हैं।
वैसे भी हम जानना चाहते हैं कि हमारे आसपास क्या कुछ नया हो रहा है। वैसे भी, कुछ पल शांत वातावरण में बिताने में क्या हर्ज है।
आज हमें सौंग नदी के किनारे बसे उस गांव को देखने का अवसर मिला, जो प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है और जहां श्री कालू सिद्ध बाबा का मंदिर है। हमने दृष्टिकोण समिति के अध्यक्ष व डुगडुगी पाठशाला के संस्थापक मोहित उनियाल के साथ अपने मित्र गुरुकुल स्कूल के संचालक हेमचंद्र रयाल के पास थानो गांव जाने का निर्णय लिया।
भानियावाला होते हुए सीधे थानो गांव की ओर चल दिए। थानो के जंगल में प्रवेश से पहले वन विभाग के चेकपोस्ट के पास हमें श्री कालू सिद्ध बाबा मंदिर मार्ग का बोर्ड दिखाई दिया। यह मार्ग जंगल औऱ आबादी के बीच से होता हुआ मंदिर तक ले जाता है।
कालूवाला गांव में स्थित श्री कालू सिद्ध बाबा के मंदिर की बहुत मान्यता है। सच बताऊं, मैं पहली बार श्री कालू सिद्ध बाबा के मंदिर में गया था, जबकि मेरा जन्म डोईवाला का है और जीवन के 47 वर्ष यहीं के होकर गुजरे हैं।
मैं हर बार सोचता था कि बाबा के दर्शन करके आऊँगा, पर न जाने क्यों उनके दरबार में नहीं पहुंच पाया। आज कुछ ही देर में हम श्री कालू सिद्ध बाबा के मंदिर में थे। यहां रविवार को बड़ी संख्या में श्रद्धालु पूजा अर्चना के लिए आते हैं।
मंदिर परिसर में प्रवेश करते ही सोचने लगा कि मैं यहां पहले क्यों नहीं आया। मुझे तो जब भी मन करे, यहां आना चाहिए। डोईवाला में मेरे घर से मंदिर की दूरी दस किमी. भी नहीं है।
वहां शहर के शोर और भागदौड़ में क्या रखा है। यहां शांति है और सुकून भी। यहां न तो बेचैनी है और न ही बेसब्री। मैंने खुद से कहा, यहां रहता तो बिना बीमारी जीता।

श्री कालू सिद्ध बाबा जी के मंदिर में पूजा अर्चना और मनोकामना के लिए आसपास के क्षेत्रों, देहरादून जिला के साथ उत्तराखंड, यूपी, दिल्ली सहित कई राज्यों से श्रद्धालु पहुंचते हैं। मंदिर के महंत अंकुश शर्मा बताते हैं कि श्री कालू सिद्ध बाबा जी त्रेता युग से हैं।
भगवान दत्तात्रेय जी ने जनकल्याण के लिए अपने चौरासी शिष्य बनाएं, जिनमें से चार शिष्य श्री कालू सिद्ध बाबा, श्री लक्ष्मण सिद्ध बाबा, श्री मानक सिद्ध बाबा और श्री मांडू सिद्ध बाबा देहरादून जिला में हैं।
उन्होंने बताया कि श्री कालू सिद्ध बाबा ने त्रेतायुग में भगवान शिव की पूजा की है। यहां बाबा की शिव जी के रूप में पूजा की जाती है। यहां बाबा की तपस्थली है और उनकी समाधि हरिद्वार जिला में प्रवेश करते ही मोतीचूर क्षेत्र में है। बाबा अपने ऊपर छत को स्वीकार नहीं करते।
मंदिर में पक्की छत का निर्माण नहीं किया गया है। सुना है कि प्राचीन समय में यह छत डाली गई थी, लेकिन छत गिर गई थी। मान्यता है कि बाबा खुले आसमान के नीचे रहना पसंद करते हैं। उन्होंने बताया कि बाबा को प्रसाद के रूप में गुड़ अर्पित किया जाता है।
मंदिर में पूजा और देखरेख कार्य कर रहे पंडित अंकुश शर्मा आटोमोबाइल इंजीनियर हैं। आपने देहरादून में एक कॉलेज से वर्ष 2013 में बीटेक की डिग्री हासिल की है।
बताते हैं कि अन्य युवाओं की तरह उनका सपना था कि इंजीनियर बनकर मल्टीनेशनल कंपनी में सेवाएं प्रदान करूं। पर, अब मेरा मन यही रमता है और मैं बाबा की सेवा में जीवन बिताना चाहता हूं।
पंडित अंकुश शर्मा अपने परिवार की चौथी पीढ़ी के सदस्य हैं, जो मंदिर में सेवा कार्य कर रहे हैं। उनसे पहले पिता श्री उमेश चंद्र शर्मा जी, दादा जी श्री चंद्र किशोर शर्मा जी, परदादा जी श्री शगुन चंद्र शर्मा जी ने मंदिर में सेवा कार्य एवं पूजा अर्चना संपन्न कराया।
पिताजी के स्वर्गवास के बाद से वह यह जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। उन्होंने बताया कि यहां मंदिर में लगभग ढाई सौ वर्षों से पूजा अर्चना हो रही है। पूर्व में उनके परदादा जी थानो गांव से यहां पूजा अर्चना के लिए आते थे।
एक और मान्यता के बारे में उन्होंने बताया कि प्राचीन काल में मंदिर में भंडारे और आसपास गांवों में किसी शुभ कार्य के लिए प्रार्थना करने पर यहां बर्तन उपलब्ध हो जाते थे।
इस्तेमाल करने के बाद लोग बर्तन यहीं रख देते थे, लेकिन एक बार किसी ने इस्तेमाल के बाद झूठे बर्तन छोड़ दिए। तब से यहां बर्तन मिलने बंद हो गए।
पंडित अंकुश शर्मा बताते हैं कि मंदिर परिसर में हर वर्ष जून माह के दूसरे रविवार को विशाल भंडारा होता है, जिसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालु प्रसाद ग्रहण करते हैं।
श्री कालू सिद्ध बाबा के मंदिर में दर्शन के बाद हम पहुंच गए सिरियों गांव, जो थानो चौक से देहरादून की ओर करीब डेढ़ किमी. की दूरी तय करने के बाद दाई ओर है। रास्ते में आपको गांव का बोर्ड दिख जाएगा।
करीब डेढ़ किमी. चलने पर गांव में पहुंच जाएंगे, जहां एक गौशाला है, जिसमें सौ से भी अधिक गाय, बछड़े बछड़ियां हैं। यहां हमने बुजुर्ग सुलोचना बहुगुणा जी से मुलाकात की।
कोटीमय चक ग्राम पंचायत के इस गांव में गढ़वाल में स्थानीय संसाधनों पर आधारित विलेज टूरिज्म को बढ़ावा देने की एक शानदार पहल को भी देखने का अवसर मिलेगा।
गौशाला और विलेज टूरिज्म की इस पहल का विस्तार से जिक्र करेंगे। तब तक के लिए बहुत सारी शुभकामनाओं का तक धिनाधिन…।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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