Short story- Moral Values

भेड़िये की चाल

एक जंगल में बकरी रहती थी। उसके तीन बच्चे थे। वह तीनों बच्चों के लिए कुछ ज्यादा खाना इकट्ठा नहीं कर पाती थी। इस पर उसने उनसे कहा कि वो अपने अलग-अलग घर बना लें और अपने खाने का इंतजाम खुद ही करें। तीनों बच्चे नजदीक में ही अपने लिए अलग-अलग घर बनाने में जुट गए।

इनमें पहला वाला बच्चा आलसी था। उसने आसपास से फूस इकट्ठा की और कामचलाऊ घर बनाकर उसमें रहने लगा। दूसरा उससे थोड़ा कम आलसी था। उसने लकड़ियां इकट्ठा की और अपने रहने के लिए घर बना लिया। तीसरा बकरा मेहनती था और वह कामचलाऊ घर नहीं बनाना चाहता था। उसने आसपास से ईंटें इकट्ठा करके घर बनाया। घर में दरवाजा लगाया और रसोई में चूल्हे और चिमनी का इंतजाम किया।

एक दिन एक भेड़िया उनके घरों के पास से होकर जा रहा था। उसने पहले वाले बकरे के फूस से बने घर में झांककर देखा तो उसके मुंह में पानी आ गया। वह उसको खाने की योजना बनाने लगा। उसने बाहर से आवाज लगाई, क्या मैं अंदर आ जाऊं। इस पर अंदर से आवाज आई, नहीं तुम भीतर नहीं आ सकते। भेड़िये ने कहा कि अगर में भीतर नहीं आ सकता तो तुम्हारे घर को ढहा दूंगा। थोड़ी देर में उसने फूस से बने घर को ढहा दिया और मुंह खोलकर बकरे पर झपटने लगा। वह भागकर अपने दूसरे भाई के लकड़ी से बने घर में घुस गया।

लालची भेड़िये ने लकड़ी के कामचलाऊ घर में दो बकरों को देखा तो उसके मुंह में पानी आ गया। उसने सोचा, अब तो दो बकरे खाने को मिलेंगे। कुछ दिन शिकार करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। उसने उसके घर के बाहर से आवाज लगाई, क्या मैं भीतर आ सकता हूं। जवाब मिला, नहीं तुम भीतर नहीं आ सकते। भेड़िया बोला, जब मैं भीतर नहीं आ सकता तो तुम्हारा घर तोड़ देता हूं। थोड़ी ही देर में उसने घर तोड़ दिया और अपने मुंह फैलाकर दोनों बकरों पर झपटा मारा।

दोनों बकरे तो पहले से ही सतर्क थे और भेड़िये से छूटकर भाग निकले। तेजी से दौड़ते हुए दोनों तीसरे बकरे के ईंट वाले मजबूत घर में घुस गए। भेड़िया हाथ मलता रह गया। उसने बाहर से झांककर देखा कि घर में तीन बकरे थे। उसने फिर वहीं ट्रिक अपनाई और आवाज लगाई कि क्या मैं भीतर आ सकता हूं। अंदर से आवाज आई कि तुम भीतर नहीं आ सकते।

भेड़िया ईंट से बने घर को तोड़ नहीं सकता था। इसलिए उसने घर की छत पर चढ़कर चिमनी के रास्ते अंदर जाने की योजना बनाई। उसकी इस योजना की तीनों बकरों को भनक लग गई। तीनों ने चूल्हे में आग चलाकर उस पर पानी से भरा टब रख दिया। पानी गरम होने लगा और चिमनी के रास्ते भेड़िया सीधा खोलते हुए पानी में गिर गया। तीनों भाइयों ने टब को ढक्कन से बंद कर दिया। खोलते पानी में गिरकर भेड़िया तेजी से चिल्लाने लगा। ढक्कन बंद होने पर वह पानी में उबलकर मर गया। इस तरह तीनों भाइयों की जान बच सकी।

संदेश- सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम ही जीवन बचा सकते हैं।

 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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