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प्राकृतिक रेशे की कहानी- अल्मोड़ा से ज्योत्सना प्रधान की जुबानी
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अल, बिच्छु घास (कंडाली), भांग, राम बांस आदि से मिलने वाला प्राकृतिक रेशा उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्यों के लिए जैव विविधता के साथ-साथ लघु और कुटीर उद्योगों की आधारशिला है।
पहाड़ पर मिलने वाले प्राकृतिक संसाधनों के सहारे स्वरोजगार दिलाने के गैर सरकारी संस्थाएं प्रयास कर रही हैं, लेकिन वे अपर्याप्त हैं, क्योंकि इनसे स्थानीय ग्रामीणों को रोजगार तो जरूर मिल रहा है लेकिन लाभांश नहीं। पहाड़ में जरूरत है स्वतंत्र इकाइयों के विकास की, जिसके लिए राज्य सरकार को अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। सरकार ने प्राकृतिक रेशे आधारित उद्योग को विकसित करने के लिए अलग अलग जनपदों में रेशा बैंक बनाए हैं। रेशे की बिक्री के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित किया गया है।
उत्तराखंड बम्बू एवं फाइबर डेवलपमेंट बोर्ड, उत्तराखंड हैंडीक्राफ्ट एवं हैंडलूम डेवलपमेंट काउंसिल के साथ साथ, खादी ग्रामोद्योग बोर्ड, सरकारी बैंक, वन विभाग, नारकोटिक्स विभाग प्राकृतिक रेशे के विकास के लिए समाज सेवी संस्थाओं के साथ मिलकर कार्य करने के प्रयास कर रहे हैं। चमोली जिले में आगाज फैडरेशन, उत्तराखंड बांस एवं रेशा विकास परिषद, जै नन्दा उत्थान समिति, हिमालयी रेशा विकास सहकारिता , अल्मोड़ा में पंचचुली, कपकोट में बॉम्बे हेम्प कंपनी कार्य कर रहे हैं।
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