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प्राकृतिक रेशे की कहानी- अल्मोड़ा से ज्योत्सना प्रधान की जुबानी

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अल, बिच्छु घास (कंडाली), भांग, राम बांस आदि से मिलने वाला प्राकृतिक रेशा उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्यों के लिए जैव विविधता के साथ-साथ लघु और कुटीर उद्योगों की आधारशिला है।

ज्योत्सना
ज्योत्सना
पहाड़ पर मिलने वाले प्राकृतिक संसाधनों के सहारे स्वरोजगार दिलाने के गैर सरकारी संस्थाएं प्रयास कर रही हैं, लेकिन वे अपर्याप्त हैं, क्योंकि इनसे स्थानीय ग्रामीणों को रोजगार तो जरूर मिल रहा है लेकिन लाभांश नहीं। पहाड़ में जरूरत है स्वतंत्र इकाइयों के विकास की, जिसके लिए राज्य सरकार को अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। सरकार ने प्राकृतिक रेशे आधारित उद्योग को विकसित करने के लिए अलग अलग जनपदों में रेशा बैंक बनाए हैं। रेशे की  बिक्री  के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित किया गया है। 
 उत्तराखंड बम्बू एवं फाइबर डेवलपमेंट बोर्ड, उत्तराखंड हैंडीक्राफ्ट एवं हैंडलूम  डेवलपमेंट काउंसिल के साथ साथ, खादी  ग्रामोद्योग बोर्ड, सरकारी बैंक, वन विभाग,  नारकोटिक्स विभाग प्राकृतिक रेशे के विकास  के लिए समाज सेवी संस्थाओं के साथ मिलकर कार्य करने के प्रयास कर रहे हैं।  चमोली जिले में  आगाज फैडरेशन, उत्तराखंड बांस एवं रेशा विकास परिषद, जै नन्दा उत्थान समिति, हिमालयी रेशा  विकास सहकारिता , अल्मोड़ा में पंचचुली, कपकोट में  बॉम्बे हेम्प कंपनी कार्य कर रहे हैं।  
टैग्स
रेशा आधारित उद्योग, प्राकृतिक रेशा, स्वरोजगार, लााभांश, उत्तराखंड, राज्य सरकार, बिच्छू घास, newslive24x7.com

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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