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कोकून में फंसी तितली और मददगार

एक व्यक्ति को तितली का कोकून दिखाई दिया। कोकून से तितली बाहर निकलने का प्रयास कर रही थी। वह वहीं बैठ गया और कई घंटे तक उसको छोटे से छेद से बाहर निकलने के लिए संघर्ष करते हुए देखता रहा। उसने महसूस किया कि तितली कोकून से बाहर नहीं निकल पा रही है। लगता है कि वह उसमें फंस गई है। 

उस व्यक्ति को तितली पर दया आ गई। उसने सोचा कि अभी तो दुनिया में कदम भी नहीं रखा और इस तितली को संघर्ष करना पड़ गया। उसने मदद करने का फैसला किया और कैंची से कोकून के बाकी बचे टुकड़े को काटकर तितली को बाहर निकाल लिया। तितली का शरीर सूजा हुआ और पंख सूखे थे। उसके पंख अभी विस्तार भी नहीं ले पाए थे। पंखों के हरकत में आए बिना वह उड़ भी नहीं सकती थी। तितली ने अपना बाकी का जीवन बिना उड़े ही धरती पर रेंगते हुए बिता दिया।  

मनुष्य ने तितली पर दया की थी, लेकिन वह समझ नहीं पाया था कि तितली को कोकून से बाहर आने के लिए संघर्ष की जरूरत थी। दुनिया देखने से पहले तितली को इस प्रक्रिया से होकर गुजरना पड़ता है। इसके जरिये वह शरीर में जमा तरल को पंखों तक पहुंचाती है। जिससे उसके पंख सक्रिय होते हैं। इसके बाद वह एक उड़ान में कोकून से बाहर हो जाती है।

कुल मिलाकर यह कहना है कि जीवन में हमारा संघर्ष हमारी शक्तियों को विकसित करता है। हमारे लिए चुनौतियों का सामना करना महत्वपूर्ण है, और दूसरों की सहायता पर निर्भर नहीं होने की पूरी कोशिश होनी चाहिए। 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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