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सनगांव में बच्चों ने सिखाया, थोड़ा सब्र करो

थोड़ा सब्र करो, एक बच्चे ने मुझे यह सिखाने की कोशिश की। बच्चों से बात करने के लिए हम रविवार को सनगांव में थे। डोईवाला ब्लाक का यह गांव किसी पर्वतीय जिले के गांव से कम नहीं है। पिछले साल हम इसके ठीक सामने पहाड़ पर स्थित इठारना गांव गए थे, वहां भी कुछ ऐसा ही रास्ता है और आबोहवा के तो क्या कहने।  सनगांव की स्वच्छ हवा तो जीवन बढ़ाने वाली है। मुझे बहुत अच्छा लगा,क्योंकि मैं प्रकृति के बहुत करीब था। पर, मैं यहां के चढ़ाई वाले रास्ते पर चलने में दिक्कत महसूस कर रहा था।

डोईवाला से रानीपोखरी होते हुए भोगपुर और फिर वहां से सनगांव पहुंचे। भोगपुर से शुरुआत में तो रास्ता ठीक है पर जाखन नदी का पुल पार करने के बाद सड़क की हालत कई जगह ठीक नहीं है। मेरा तो मानना है कि कोई अनुभवी व्यक्ति ही यहां गाड़ी ड्राइव करे। जैसे जैसे सनगांव की ओर चलते गए, बीच बीच में रास्ता खराब दिखा। करीब एक- डेढ़ किमी. की पैदल चढ़ाई के बाद हम सनगांव पहुंचे। हम दृष्टिकोण समिति के अध्यक्ष मोहित उनियाल और वरिष्ठ पत्रकार चंद्रमोहन कोठियाल के साथ सनगांव गए थे।

मैं सोच रहा था कि मैं तो यहां एक ही बार आया हूं, हो सकता है जीवन में एक या दो बार फिर आने का अवसर मिले, पर यह चढ़ाई पार करके गांव पहुंचना तो यहां के लोगों के लिए प्रतिदिन का टास्क है। बच्चों और बुजुर्गों को काफी दिक्कत होती होगी। कुछ देर बाद ही मैंने बच्चों को सनगांव की चढ़ाई पर आसानी से चलते देखा। ग्रामीणों का कहना है कि हमें आदत है।

बच्चे करीब एक-डेढ़ किमी.दूर प्राइमरी स्कूल और फिर दसवीं की पढ़ाई के लिए सिंधवाल गांव जाते हैं, जो लगभग दो किमी. की दूरी पर है। इसके बाद की पढ़ाई थानो स्थित इंटर कालेज से होती है।  शिक्षक भूषण तिवारी सन गांव के निवासी हैं। रोजाना सुबह छह बजे बाइक से देहरादून स्थित कालेज में पढ़ाने जाते हैं। कहते हैं कि नाहींकलां तक सड़क पक्की हो जाए तो ग्रामीणों को काफी राहत मिलेगी। उनके गांव तक का रास्ता बरसात में काफी तकलीफ वाला होता है।

कुछ देर में हम सनगांव पहुंच गए। वहां पहुंचकर समझ में आया कि जिस स्वच्छ आबोहवा की हम बात करते हैं, वो पर्यावरण से तालमेल बनाकर ही हासिल की जा सकती है। यह सब जैविक खेती और पर्यावरण की सुरक्षा से ही संभव है। ग्रामीण पुनीत रावत बताते हैं कि पूरी तरह वर्षाजल पर निर्भर यहां की खेती किसानों की आय का प्रमुख साधन है।  अदरक, मिर्च, हल्दी, झंगोरा, मंडुवा और मटर प्रमुख उपज हैं। जंगली जानवरों से फसल की सुरक्षा बड़ा टास्क है।

यहां रविवार को सुरकंडा माता के मंदिर में भंडारे का आयोजन था। महिलाएं मंदिर परिसर में भजन कीर्तन कर रही थीं। छोटे बच्चे मंदिर परिसर और खाली खेत में खेल रहे थे। कुछ बुजुर्ग आपस में बातें कर रहे थे। मंदिर के पास खाली खेत में टाट पट्टी बिछाकर भोजन परोसा जा रहा था।

सबकुछ व्यवस्थित चला। युवाओं ने भोजन,पानी परोसने का जिम्मा बखूबी निभाया। भोजन बहुत स्वादिष्ट था। भोजन के बाद लोग पत्तलों और गिलास डस्टबीन में इकट्ठा कर रहे थे। मैंने वहां आसपास एक भी पत्तल बिखरा हुआ नहीं देखा। सामुदायिक व्यवस्था वाला यह आय़ोजन वाकई कमाल का था। इसी तरह मैंने पौड़ी गढ़वाल जिला के सिलोगी में भी इसी तरह बहुत शांति और व्यवस्थित तरीके से भोजन किया था।

कुछ ही देर में हम बच्चों के साथ मुलाकात कर रहे थे। इससे पहले मैंने एक बच्चे से कहा था कि क्या और बच्चे भी यहां आ सकते हैं। तभी एक बच्चे ने कहा, अंकल थोड़ा सब्र करो। सब खाना खाने के बाद ही आएंगे। इतना कहकर वो बच्चों को बुलाने वहां पहुंच गया, जहां भोजन किया जा रहा था।

हुआ भी यही कि बच्चों ने आराम से भोजन किया और फिर तकधिनाधिन कार्यक्रम में शामिल हुए। उन्होंने ध्यान से हमारी बात सुनी और अपनी बात कही।  मुझे उस बच्चे से यह सीखने को मिला कि सब्र बहुत जरूरी है, कोई भी कार्य हड़बड़ाहट या जल्दबाजी में नहीं करना चाहिए। अगर हम बच्चों को भोजन से पहले ही तकधिनाधिन कार्यक्रम में शामिल करते तो वो ध्यान से हमें नहीं सुनते और न ही अपनी बात कहते।

मंदिर परिसर के पास खाली जगह पर तकधिनाधिन कार्यक्रम में बच्चों के साथ बड़े भी शामिल हुए। बुजुर्ग सरस्वती देवी जी ने हमें सनगांव के अतीत में ले जाते हुए बताया कि पहले यहां सुविधाएं नहीं थीं। उन्होंने डीएवी कालेज से बीए किया था और गांव में सुविधाओं की कमी के बाद भी बच्चों को शिक्षित बनाया। उनकी चार बेटियां सन गांव से करीब 16 किमी. दूर भोगपुर पढ़ने जाती थीं। गांव में बिजली नहीं थी। बत्ती वाले लैंप जलाकर रोशनी की जाती थी।

पानी भी एक किमी. दूर स्रोत से लाना पड़ता था। छुट्टी के एक दिन पहले स्रोत से पानी भरकर इकट्ठा किया जाता था। भोगपुर तक जाने में दो नदियों को पार करना पड़ता था। पानी में भींगकर स्कूल पहुंचे बच्चों को स्कूल में कहा जाता था कि घर जाओ। वहीं घरों में बच्चों को कहा जाता था कि स्कूल जाओ।

एक बार उनकी बेटी नदी में बह गई थी। गांववालों ने बड़ी मुश्किल से उसको बचाया। तीन बेटियों ने इंटरमीडियेट किया और एक बेटी ने एमए किया है। सभी बेटियां अपने घरों में खुश हैं। बेटियों को शिक्षित बनाना चाहिए। बेटियां पढ़ी लिखी होंगी तो उनका जीवन खुशहाल होगा। मैंने भी यहीं आकर डीएवी कालेज से बीए किया था। पहले सनगांव में रहकर शिक्षा पाने के लिए बहुत संघर्ष करना होता था।

अब तो यहां बहुत सुविधाएं हैं, बिजली है, पानी है। बेटे की बहू को भी पढ़ाया। मैं चाहती हूं कि हर बेटी स्कूल जाए, खूब पढ़ाई करे। बहू तो मुझसे कुछ न कुछ पूछती रहती है और मैं उनकी मदद करती हूं। बहू को एप्लीकेशन लिखना सिखाया है। हिन्दी से इंगलिश में ट्रांसलेशन में उनकी मदद करती हूं। मैं चाहती हूं कि हर बेटी पढ़े लिखे और जीवन में तरक्की करे।

तकधिनाधिन सरस्वती देवी जी को तहेदिल से सलाम करता है। सरस्वती देवी जी ने हमें पोयम Cocks crow in the morn सुनाई –

Cocks crow in the morn
To tell us to rise,
And he who lies late
Will never be wise;
For early to bed
And early to rise,
Is the way to be healthy
And wealthy and wise.

इस कविता का हिन्दी में अनुवाद सुनाया- मुर्गा सुबह बांघ देता है और बच्चों को सुबह उठाने के लिए कहता है।  वो कहता है कि बच्चों उठो, जल्दी उठो। जो देरी से उठते हैं, वो कभी बुद्धिमान नहीं हो सकते। बुद्धिमान होने के लिए बच्चों को सुबह जल्दी उठना जरूरी है। सुबह जल्दी उठने वाले बुद्धिमान और स्वस्थ होते हैं।

हमने बच्चों से पूछा कि पेड़ घूमने क्यों नहीं जाता। बच्चों ने कहा, उसके पैर नहीं होते। पेड़ जड़ों से जकड़ा होता है। पेड़ घू्मने जाएगा तो लोगों को डराएगा। हमने कहा कि अगर पेड़ घूमने जाता तो लोग उस पर सवार होकर घूमने जाते। सनगांव से देहरादून जाने के लिए पेड़ पर बैठ जाते और वो देहरादून की सैर कराकर ले आता। इस बात पर बच्चे खूब हंसे। हमने पूछा कि पेड़ हमें क्या देता है।

बच्चों की प्रतिक्रिया से लगा कि वो यह सवाल सुनना चाहते थे, तभी तो सभी ने एक साथ जवाब देना शुरू कर दिया। किसी ने कहा, हवा, किसी ने कहा, फल, किसी ने कहा, आक्सीजन और किसी ने जवाब दिया- जड़ीबूटी। हमने सवाल को बदला और  पूछा, अगर पेड़ घूमने जाता तो बच्चे बोले, हमें हवा, फल, आक्सीजन कौन देता। बच्चों को कहानी पेड़ घूमने क्यों नहीं जाता, सुनाई।

हमें नैतिक कृषाली ने एक कहानी सुनाई, जिसमें छोटी चिड़ियों का दल अपने से बड़ी चिड़िया की बात नहीं मानता और दाना चुगने के लिए जमीन पर बैठ जाते हैं। सभी चिड़िया शिकारी के जाल में फंस जाती हैं। उनका मित्र चूहा जाल काटकर उनको मुक्त कराता है। इसके बाद छोटी चिड़ियों का दल अपने से बड़ों की बात मानने का संकल्प लेती हैं।

रिया शर्मा ने महान कवि सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” की रचना सुनाई-

अभी न होगा मेरा अन्त
अभी-अभी ही तो आया है
मेरे वन में मृदुल वसन्त-
अभी न होगा मेरा अन्त

हरे-हरे ये पात,
डालियाँ, कलियाँ कोमल गात!

मैं ही अपना स्वप्न-मृदुल-कर
फेरूँगा निद्रित कलियों पर
जगा एक प्रत्यूष मनोहर।

हमने बच्चों को बाल कविता हाथी पहने पेंट और हथिना पहने मैक्सी… सुनाई।तकधिनाधिन कार्यक्रम में  वंदना, श्रीष, रवि शर्मा, नैतिक कृषाली, पूजा, रीतू, प्रिया, आकांक्षा, मनीषा आदि बच्चे शामिल हुए। सन गांव के बच्चों से संवाद यादगार रहा।  थैंक्यू बच्चों, आप खूब पढ़ो और जीवन में तरक्की करो। तकधिनाधिन के अगले पड़ाव पर फिर मिलेंगे, तब तक के लिए बहुत सारी खुशियों और शुभकामनाओं का तकधिनाधिन।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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