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बर्फ की मशीनों के जरिए हिमखंड को बचाएगा स्विट्जरलैंड

जेनेवा । ग्रीन हाउस गैसों की वजह से वातावरण का तापमान तेजी से बढ़ता जा रहा है। दुनियाभर के वैज्ञानिक और पर्यावरणविद् ग्लोबल वॉर्मिंग के दुष्परिणामों के बारे में लगातार सचेत कर रहे हैं, लेकिन विश्व समुदाय इस बात को लेकर कितना गंभीर है इसका अंदाजा पेरिस समझौते पर फंसे पेच को ही देखकर लगाया जा सकता है। जैसा कि स्विट्जरलैंड का मोर्टारथ्स ग्लेशियर बहुत तेजी से पिघलता जा रहा है।
पिछले 157 साल के दौरान यह हिमखंड करीब तीन किलोमीटर तक पीछे हट गया है। यहां के लोगों का डर है कि यही हाल रहा, तो जल्द ही यह पूरा ग्लेशियर ही खत्म हो जाएगा। परेशान लोगों ने यूट्रैक्ट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक योहान्नस उरलमन्स से सहायता की मांग की है। पिछले हफ्ते आयोजित यूरोपियन भूगर्भ सम्मेंलन में उरलमन्स ने यह ग्लेशियर बचाने की एक योजना लोगों के सामने रखी। यह योजना काफी हैरान करने वाली तो है ही, साथ ही इस पर काफी खर्च भी आएगा। वैज्ञानिकों के मुताबिक, ग्लेशियर पर कुछ सेंटीमीटर मोटी कृत्रिम बर्फ की एक परत चढ़ाई जाएगी, जो कि सूर्य की तेज किरणों से इस हिमखंड की हिफाजत करेगी। अनुमान है कि ऐसा करने से अगले 20 साल के अंदर ग्लेशियर करीब 800 मीटर और लंबा हो जाएगा।
इस योजना पर अमल करने के लिए स्थानीय लोगों को बर्फ बनाने वाली करीब 4,000 मशीन की जरूरत पड़ेगी। इस योजना पर काम शुरू करने से पहले लोगों ने यही तरीका एक अन्य हिमखंड पर इस्तेमाल करने का फैसला किया है। इसके लिए फंड जमा किया जा रहा है। अगर यह तरीका कारगर साबित होता है, तो उम्मीद है कि स्विट्जरलैंड सरकार उरलमन्स के प्लान को साकार करने के लिए जरूरी भारी-भरकम खर्च करने को तैयार हो जाएगी। (एजेंसी)

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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